पिछले दिनों नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने राष्ट्रीय घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण का हवाला देते हुए दावा किया कि भारत में गरीबी 5% से नीचे आ गई हैं। उन्होंने यह दावा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा अगस्त 2022 से जुलाई 2023 के बीच किए गए सर्वेक्षण के आधार पर दिया। साथ ही उन्होंने रंगराजन समिति द्वारा निर्धारित की गई गरीबी की परिभाषा का भी जिक्र किया।
नीति आयोग की आधिकारिक मीटिंग में नीति आयोग के सीईओ द्वारा जारी किए गए आंकड़े के बाद सोशल मीडिया से धरातल पर लोग पूछने लगे क्या यह वाकई संभव है कि भारत में गरीबी की दर 5% से नीचे चली जाए। हालांकि कई लोग इसे नकारते भी नजर आ रहे हैं कि भारत में गरीबी 5% से नीचे नहीं जा सकती है। ऐसे में भारत में गरीबी एक बार फिर ज्वलंत मुद्दा बन गई है, आंकड़ों के कारण ना कि किसी अन्य कारण से।
भारत में गरीबी में अद्वितीय गिरावट -
भारत में गरीबी के आंकलन के लिए समय-समय पर विभिन्न समितियां बनाकर गरीबी के प्रतिशत को जानने को कोशिश की गई विभिन्न समितियों द्वारा दिए गए आंकड़े को एक नजर में देख लेते हैं -
वर्ष | समिति | शहरी निर्धनता प्रतिशत | ग्रामीण निर्धनता प्रतिशत | कुल निर्धनता प्रतिशत |
---|---|---|---|---|
1993-94 | डीटी लकड़ावाला | 32 | 50.7 | 45 |
2004-05 | तेंदुलकर समिति | 26 | 42 | 37 |
2009-110 | - | 21 | 34 | 30 |
2011-12 | रंगराजन समिति | 14 | 26 | 22 |
2022-23 | - | 4.6 | 7.2 | 4.5-5% |
वर्ष 1993-94 में डीटी लकड़ावाला समिति ने भारत में कुल गरीबी 45% थी, जो 2004-05 में घटकर 37% रह गई। वर्ष 2011-12 में कुल गरीबी का अनुपात 22% रह गया, जो आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन समिति ने पाया था। हाल ही में घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (2022-23) के आधार पर गरीबी का जो आंकड़ा सामने आया वह महज 4.5-5% है। ऐसे में भारत में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या 5% के आसपास या उससे भी नीचे आ गई हैं।
आज से लगभग 30 वर्ष पहले भारत की करीब आधी आबादी (45%) गरीबी रेखा के नीचे थी जो तीन दशक बाद घटकर महज 5% के नीचे आ गई है। जहां आज से 30 वर्ष पूर्व प्रत्येक 2 में से एक व्यक्ति के गरीब होता था, वही आज प्रत्येक 20 में से एक व्यक्ति गरीब रह गया है।
गरीबी का निर्धारण कैसे होता है?
आगे बढ़ने से पहले हमे यह अवश्य देख लेना चाहिए कि भारत में गरीब किसे कहा जाता है और अब तक गरीबो की संख्या को किस आधार पर निर्धारित किया जाता रहा है और वर्तमान में गरीबी को किस आधार पर निर्धारित किया गया।
गरीबी कि परिभाषा निर्धारण समितियां -
- वाई के अलाग (Y K Alag) समिति - योजना आयोग द्वारा वर्ष 1979 में वाई के अलाग के निर्देशन में एक गरीबी का निर्धारण करने के लिए एक समिति का गठन किया गया। समिति ने ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रति व्यक्ति 2400 कैलोरी और शहरी क्षेत्रों के लिए 2100 कैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन का निर्धारण किया गया।
- सी रंगराजन समिति (2011) - आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन के निर्देशन में गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए समिति का गठन किया गया, समिति ने ग्रामीण क्षेत्रों में 2155 कैलोरी प्रतिव्यक्ति /प्रतिदिन और ग्रामीण क्षेत्रों में 2090 कैलोरी प्रतिव्यक्ति /प्रतिदिन का निर्धारण किया।
इसके अतिरिक्त विभिन्न समितियों का गठन गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए किया गया, जिन्होंने प्रतिव्यक्ति कैलोरी के साथ प्रतिमाह व्यय की राशि का निर्धारण किया, जो निम्न है
वर्ष | समिति | ग्रामीण (रुपये/प्रतिमाह ) | शहरी (रुपये/प्रतिमाह ) |
---|---|---|---|
1993-94 | लकड़ावाला समिति | 115 | 166 |
2004-05 | तेंदुलकर समिति | 446.68 | 587.89 |
2011-12 | रंगराजन समिति | 972 | 1407 |
विभिन्न समितियों द्वारा प्रतिव्यक्ति/प्रतिमाह खर्च तय किया गया। अगर कोई परिवार उस समय के दौरान प्रतिव्यक्ति इतनी राशि खर्च करने में सक्षम था तो वह गरीबी रेखा से ऊपर था। इस निर्धारित राशि से कम राशि खर्च करने वाले परिवार गरीबी रेखा में थे। इसके साथ ही प्रतिव्यक्ति निर्धारित की गई कैलोरी को भी हमेशा ध्यान में रखा गया।
किस आधार पर भारत में गरीबी 5% से नीचे पहुंची?
अब आते हैं मूल मुद्दे पर क्या भारत में गरीबी 5%से नीचे चली गई है? तो हम विभिन्न मापदंड देखते हुए बात करते हैं कि क्या यह वाकई संभव हो गया है।
कैलोरी - वर्तमान में नीति आयोग द्वारा कैलोरी से संबंधित कोई आंकड़ा जारी नहीं करते हुए महज इतना बताया कि लोगों का कुल व्यय में खाद्य सामग्री का व्यय कम हो गया है इसके लिए नीति आयोग की तरफ से आंकड़ा भी जारी किया गया। वर्ष 1999-2000 में कुल खर्च में अन्न पर खर्च ग्रामीण और शहरी क्षेत्रो क्रमशः 22.2% और 12.4% था जो वर्तमान में घटकर ग्रामीण क्षेत्रों का 4.9% और शहरी क्षेत्रों में 3.6% रह गया है।
व्यय - नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने अगस्त 2022 से जुलाई 2023 के बीच किए गए घरेलू उपभोक्ता सर्वेक्षण के आंकड़ों को जारी करते हुए बताया कि भारत में शहरी क्षेत्रो में औसत मासिक व्यय प्रतिव्यक्ति रुपये 3510 और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिव्यक्ति रुपये 2008 है। साथ ही यह भी बताया गया है वर्तमान में केवल 5% से भी कम परिवार रह गए हैं जिनका शहरी क्षेत्रो मे मासिक व्यय प्रति व्यक्ति रुपये 2087 और ग्रामीण क्षेत्रो में प्रतिव्यक्ति रुपये 1441 से कम है और यही 5% से कम जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर है।
वर्तमान में नीति आयोग ने तेंदुलकर और रंगराजन समिति का हवाला देते हुए मासिक व्यय को शहरी क्षेत्रो में 2087 रुपये प्रतिव्यक्ति और ग्रामीण क्षेत्रो में 1441 रुपये प्रतिव्यक्ति मानते हुए यह आंकड़ा जारी किया है, जो परिवार प्रतिव्यक्ति इतनी आय खर्च करने में असमर्थ हैं, उन परिवारो की कुल जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या की 5% से भी कम है, और इसे ही गरीबी की रेखा से नीचे माना गया है।
ध्यान दे - इस समय भारतीय स्टेट बैंक ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में के लिए प्रतिव्यक्ति मासिक व्यय सुरेश तेंदुलकर समिति की सिफारिशों को आधार मानते हुए 1622 और 1929 रुपये प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह तय किया।
कैसे कम हुई भारत में गरीबी?
भारत सरकार द्वारा गरीबों को गरीबी की रेखा से ऊपर उठाने के लिए पिछले कुछ बर्षों में कई कारगर कदम उठाए गए जिनके कारण भारत में गरीबी की दर घटकर 5% से भी कम रह गई हैं। ये कदम सभी को निश्चित कैलोरी में भोजन उपलब्ध कराने से संबंधित हों या व्यय योग्य आय बढ़ाने से संबंधित हों। इसके लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों में से कुछ निम्नलिखित है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना - भारत सरकार द्वारा 80 करोड़ लोगों को प्रतिव्यक्ति 5 किलो गेंहू या चावल प्रतिव्यक्ति निःशुल्क अथवा गेंहूं 2/- रुपये प्रति किलो और चावल 3/-रुपये प्रति किलो प्रतिमाह दिया जा रहा है। इससे कई परिवारो को संबल मिलने के साथ ही निश्चित कैलोरी में भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित हुई है।
- मनरेगा - महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के माध्यम से प्रत्येक परिवार को एक वर्ष में न्यूनतम 100 दिवस का रोजगार सुनिश्चत हुआ है, जिसके कारण व्यय योग्य आय में वृद्धि हुई है।
- प्रधानमंत्री जन धन योजना - लाभार्थियों को सीधे खाते में सब्सिडी, पेंशन और स्वास्थ्य बीमा की राशि दिए जाने से लोगों को संबल मिला।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास - खासतौर से 10 वीं और 12 वीं पास स्कूल छोड़ने वाले युवाओं को कौशल सम्बन्धित प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार के लिए कौशल प्रदान किया जिससे उन्हें रोजगार प्राप्ति।
- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि - खासतौर से लघु और सीमांत किसानो को खाद और बीज के लिए प्रतिवर्ष रुपये 6000/- का आर्थिक सहयोग किये जाने से उन्हें समय पर खेती करना संभव हुआ।
- प्रधानमंत्री आवास योजना - आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को प्रधानमंत्री आवास योजना में मकान बनाने के लिए सरकार द्वारा सहयोग दिए जाने से उनकी वास्तविक और खर्च योग्य आय में वृद्धि हुई है।
- ढांचागत विकास खर्च - सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के विकास ने एकतरफ जीवन को आसान किया तो दूसरी ओर लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कराएं।
उपर्युक्त योजनाओं के अतिरिक्त सरकार द्वारा सस्ती दरों पर ऋण और स्टार्ट-अप योजनाओं को धरातल पर उतारा जिसके कारण रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है।
तो क्या 5% ही रह गई गरीबी -
अगर सर्वेक्षण और पूर्व में किए गए सर्वेक्षण के तरीकों और गरीबी के मापने के आधार को देखा जाए तो भारत में गरीबी 5% से भी नीचे आ गई है। इस बार गरीबी को मापने के पैमाने बिल्कुल वही रखे गए जो पूर्व में सरकार रखती आई है। इस बार भी कैलोरी के साथ व्यय को पैमाने में शामिल किया गया तथा बास्केट में पूर्व की भांति ही सवाल रखे गए। परिवर्तन किया मूल्यों के बदलाव का।
लेकिन यहां सवाल उठता है कि क्या आज भी सालो पहले का फार्मूला कितना कारगर है? तकनीकी के बदलाव और विकास की होड़ के बावजूद भी अगर उसी पैमाने पर गरीबी का आंकलन करे जो पद्धति आज से 40 साल पहले उपयोग में ली गई हो या 10 साल पहले तो यह महज तुलनात्मक अध्ययन ही हो सकता है, ना कि समय और परिस्थितियों के बदलाव के बाद सही मायने में गरीबी का आंकलन।
गरीबी पर विजय की कहानी बताते तथ्य -
भारत में गरीबी को अभिशाप माना जाता रहा है और आज भी अभिशाप ही माना जा रहा है लेकिन कुछ बर्षों (30 वर्ष) के अन्तराल के बाद हर दो में से एक गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने की मजबूरी से निकल आज प्रत्येक 20 में से 1 व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा है। वही दस साल पहले के आंकड़ों से तुलना करे तो प्रत्येक 100 में से 22 लोग गरीबी में दबे हुए थे वहाँ आज महज 5 लोग ही दबे हुए हैं, ऐसे में देखते हैं आखिर वो कौनसे कारक रहे जिनकी बदौलत भारत में जीवन सुनहरा होता चला गया -
- ग्रामीण क्षेत्रो में विकास और खपत की रफ्तार बढ़ी - पिछले कुछ वर्षो में भारत के ग्रामीण क्षेत्रो में विकास की रफ्तार बढ़ने से लोगों द्वारा अपने व्यय किए जाने के पैटर्न को बदल दिया परिणामस्वरूप गरीबी पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
- गांवों का सर्वांगीण विकास - ढांचागत सुविधाओं का निर्माण और विकास के साथ डिजिटल क्रांति ने लोगों को दी जाने वाली सब्सिडी, पेंशन और अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं का विस्तार किया फलस्वरूप व्यय योग्य आय में वृद्धि हुई जो गरीबी के कुचक्र में फंसे लोगों को निकालने में सहायक सिद्ध हुई।
- भोजन के अलावा अन्य चीजों पर खर्च बढ़ा - भोजन खासतौर से अन्न का हिस्सा कुल खर्च में घटकर 5% से भी नीचे आ गया, इसके पीछे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक का योगदान रहा। अन्न खर्च की कमी से वास्तविक आय में वृद्धि हुई जिसे अन्य आवश्यक चीजों पर खर्च को बढावा दिया जिससे निवेश और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई।
- दूध फल सब्जियों पर अधिक खर्च - पहले जहां खाद्य पदार्थों में व्यय का अधिकांश हिस्सा अन्न और दालों पर ही खर्च हो जाता लेकिन वर्तमान में दूध, फल और सब्जियों पर भी खर्च ने अपना स्थान बना लिया जिसके कारण व्यय विस्तृत और विविध हुआ जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिली।
जब एक तरफ व्यय को बढ़ावा मिलता है तो दूसरी तरफ बाजार में निवेश परिणामस्वरूप उत्पादन में वृद्धि होती है। बाजार मांग बढ़ने के साथ ही नए रोजगारों का सृजन आसान हो जाता है। साथ ही सरकार के विकास के प्रयास और सरकारी खर्च को बढावा (खासतौर से ग्रामीण इलाक़ों मे) क्षेत्रीय विकास और सामंजस्यपूर्ण विकास में कारगर साबित हुआ।
आवश्यक प्रश्न -
प्रश्न: घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण किसके द्वारा किया जाता है?
उत्तर: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा किया जाता है।
प्रश्न: गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए बनी कोई तीन समितियां कौनसी थी?
उत्तर: टीडी लकड़ावाला, सुरेश तेंदुलकर और सी रंगराजन।
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