किसी भी देश पर कर्ज बढ़ जाना चिंता का विषय होता है। जब किसी देश पर कर्ज बढ़ता है तो उस देश के नागरिकों पर सरकारें अधिक कर लगा देती है, ताकि अधिकाधिक राजस्व वसूली से ऋणों का पुनर्भुगतान किया जा सके।
अगर भारत पर कर्ज तेजी से बढ रहा है तो यह बढ़ता हुआ कर्ज चिंता का विषय है। भारत का विपक्ष हमेशा बढ़ते हुए कर्ज के आरोप लगाते रहता है, ऐसे में सबके मन में बढ़ते हुए कर्ज का सवाल जरूर आता है। ऐसे में हमें इसकी वास्तविकता की जांच अवश्य कर लेना चाहिए।
कर्ज का अर्थ -
"कर्ज" का अर्थ होता है उधार ली गई राशि, जिसे किसी व्यक्ति, संस्था या बैंक से एक निश्चित समय के लिए लिया जाता है और जिसे बाद में वापस करना होता है, अक्सर ब्याज (interest) सहित। उदाहरण: राम ने घर बनाने के लिए बैंक से कर्ज लिया।कर्ज चुकाने की समयसीमा छह महीने है।
यह शब्द आमतौर पर आर्थिक लेन-देन और वित्तीय जिम्मेदारियों से जुड़ा होता है।
सरकार पर कर्ज का अर्थ -
किसी भी देश की सरकार जब अपने खर्चों को पूरा करने के लिए अपनी आमदनी (राजस्व) से अधिक खर्च करती है, तो उस अंतर को पूरा करने के लिए उसे उधार लेना पड़ता है। इस उधारी को ही सरकारी कर्ज (Government Debt) कहा जाता है। सरकार यह कर्ज घरेलू स्रोतों से ले सकती है, जिसे आंतरिक कर्ज कहते हैं, या फिर विदेशी संस्थाओं से, जिसे बाह्य कर्ज कहा जाता है।
कर्ज के प्रकार
1. आंतरिक कर्ज (Internal Debt):
यह वह कर्ज होता है जो सरकार देश के भीतर से लेती है, जैसे कि वाणिज्यिक बैंकों, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), बीमा कंपनियों, पेंशन फंड्स या आम जनता से। इसके लिए सरकार विभिन्न प्रकार की सरकारी प्रतिभूतियाँ (Government Bonds) जारी करती है।
2. बाह्य कर्ज (External Debt):
यह कर्ज सरकार विदेशी देशों, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं जैसे विश्व बैंक (World Bank), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), या विदेशी निवेशकों से लेती है। यह कर्ज अक्सर डॉलर या अन्य विदेशी मुद्राओं में होता है।
कर्ज लेने के कारण
सरकारों के कर्ज लेने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे:
- बजट घाटा (Fiscal Deficit): जब सरकार की आय उसकी व्यय से कम होती है, तो उसे घाटे को पूरा करने के लिए कर्ज लेना पड़ता है।
- विकास कार्यों के लिए: सड़क, पुल, रेल, स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली आदि क्षेत्रों में बड़े निवेश की आवश्यकता होती है, जिसके लिए सरकार कर्ज लेती है।
- आपातकालीन खर्च: प्राकृतिक आपदा, युद्ध, महामारी जैसी परिस्थितियों में अतिरिक्त धन की आवश्यकता होती है।
- सब्सिडी और कल्याणकारी योजनाएँ: गरीबों को सब्सिडी, किसानों को सहायता और रोजगार योजनाओं के लिए भी सरकार को कर्ज लेना पड़ सकता है।
किसी भी देश की सरकारों द्वारा उपर्युक्त सभी कारणों से ऋण लिया जा सकता हैं।
भारत सरकार पर कर्ज -
भारत सरकार पर कर्ज का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है, जो देश की आर्थिक स्थिरता और विकास की दिशा में महत्वपूर्ण संकेतक बन चुका है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत सरकार पर कुल कर्ज 185.27 लाख करोड़ रुपये तक पहुँचने का अनुमान है, जो 2018-19 के 93.26 लाख करोड़ रुपये से लगभग दोगुना है।
भारत सरकार पर विदेशी कर्ज -
भारत सरकार पर विदेशी कर्ज वह ऋण होता है जो देश ने अन्य देशों, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं (जैसे विश्व बैंक, IMF, एशियन डेवलपमेंट बैंक आदि) या विदेशी निवेशकों से लिया होता है। यह कर्ज आमतौर पर डॉलर, यूरो या अन्य विदेशी मुद्राओं में होता है और इसका उपयोग देश के विकास कार्यों, आधारभूत संरचना, स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक सुधारों के लिए किया जाता है।
वित्त वर्ष 2023-24 में भारत सरकार पर कुल विदेशी कर्ज लगभग 5.37 लाख करोड़ रुपये था, जो कुल सरकारी कर्ज का एक छोटा लेकिन महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। विदेशी कर्ज की विशेषता यह होती है कि यह अक्सर कम ब्याज दर पर मिलता है, लेकिन इसमें मुद्रा विनिमय दर का जोखिम (exchange rate risk) जुड़ा होता है।
भारत सरकार पर कर्ज 2010 से 2025 तक कर्ज
वर्ष | विदेशी कर्ज (US$ बिलियन) | GDP के प्रतिशत के रूप में कर्ज |
---|---|---|
2010 | 260.9 | 18.5% |
2011 | 317.9 | 18.6% |
2012 | 360.8 | 21.1% |
2013 | 409.4 | 22.4% |
2014 | 446.2 | 23.9% |
2015 | 474.7 | 23.8% |
2016 | 484.8 | 23.4% |
2017 | 471.0 | 19.8% |
2018 | 529.3 | 20.1% |
2019 | 543.1 | 19.9% |
2020 | 558.4 | 20.9% |
2021 | 573.7 | 21.2% |
2022 | 615.5 | - |
2023 | 646.8 | 18.7% |
2024 | 663.8 | - |
भारत सरकार का विदेशी कर्ज 2010 से 2024 तक लगातार बढ़ा है, जो देश की विकासात्मक आवश्यकताओं, वैश्विक वित्तीय परिवर्तनों और आंतरिक आर्थिक नीतियों का परिणाम है। यह वृद्धि विशेष रूप से बुनियादी ढांचे, सामाजिक कल्याण योजनाओं और अन्य विकासात्मक परियोजनाओं के लिए वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता को दर्शाती है।
वर्ष 2010 से देखा जाए तो भारत सरकार पर लगातार कर्ज बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2010 में भारत सरकार पर कुल $260.9 बिलियन था। जो पूर्ववर्ती सरकार के बदलाव यानी 2014 तक बढ़कर $446.2 बिलियन हो गया। यह उसके बाद भी लगातार बढ़ते हुए वर्ष 2024 के अंत तक $663.8 बिलियन हो गया।
ऐसे में अगर राशि को ध्यान में रखते हुए बात की जाए तो भारत सरकार पर लगातार कर बढ़ा है।
अर्थशास्त्र जैसे विषय की बात की जाएं तो वह खासतौर से कर्ज को राशि की बजाय जीडीपी के आनुपातिक रूप से व्यक्त करते हुए उसके घटने और बढ़ने को देखता है। ऐसे में भारतीय सरकार पर बढे हुए कर्ज को जीडीपी के आनुपातिक देखे तो लगभग वर्ष 2010 के समानुपातिक बना हुआ है। वर्ष 2010 से लेकर वर्ष 2016 तक लगातार बढ़ता गया उसके बाद यह कम होने लगा और वर्तमान में कम हो रहा है।
भारत पर क्या वास्तव में कर्ज बढ़ा है?
भारत पर बढ़े हुए कर्ज का निष्कर्ष निकालने के लिए हमें तो तरह से अध्ययन करने की आवश्यकता है, जो निम्न हैं।
- राशि के अनुसार- अगर राशि के हिसाब से देखा जाए तो भारत सरकार पर वर्ष 2010 के बाद से लगातार खर्च बढ़ता जा रहा है प्रतिवर्ष राशि में बढ़ावा देखने को मिला है।
- जीडीपी के अनुपात में - जीडीपी और विदेशी ऋणों का अनुपात देखा जाए तो फिर 2010 से 2016 तक लगातार बड़ा है उसके बाद इसमें गिरावट आई है ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है की ऋण बढ़ा है।
उपर्युक्त के अनुसार अर्थशास्त्र की भाषा में बात की जाए तो ऋणों में कोई बड़ा बदलाव या भारी बढ़त देखने को नहीं मिलती है।
क्यों लग रहा है ऋण बढ़ने का आरोप?
भारत सरकार पर कर्ज का पिछले कुछ वर्षों में ऋण सेवा अनुपात से देखा जाएं तो वृद्धि देखने को मिली है, जिसके कारण भारत पर जो ऋण है उसे बढ़ा हुआ बताया जा रहा है, विपक्ष भी इसी अनुपात को ध्यान में रखते हुए आरोप लगाता है । जिसे आप इस सारणी के जरिए देख सकते है।
भारत का विदेशी ऋण सेवा अनुपात यह संकेत करता है कि देश ने अपनी विदेशी ऋणों की सेवा में सुधार किया है, हालांकि कुछ वर्षों में इसमें वृद्धि देखी गई है। यह आर्थिक नीतियों, वैश्विक वित्तीय परिस्थितियों और घरेलू आर्थिक सुधारों के प्रभाव में रहा है।
सरकार पर कर्ज के प्रभाव
सरकारी कर्ज का देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से प्रभाव पड़ सकता है:
सकारात्मक प्रभाव:
- यदि कर्ज को उत्पादक परियोजनाओं में लगाया जाए, तो यह आर्थिक विकास को गति देता है।
- आधारभूत संरचना (Infrastructure) के विकास से नौकरियों का सृजन होता है।
- शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण में निवेश से देश की मानव पूंजी मजबूत होती है।
नकारात्मक प्रभाव:
- यदि कर्ज अत्यधिक हो जाए, तो सरकार की आय का बड़ा हिस्सा केवल ब्याज चुकाने में चला जाता है।
- इससे देश की राजकोषीय स्थिति कमजोर होती है और विदेशी निवेशक देश की आर्थिक स्थिरता पर संदेह कर सकते हैं।
- अधिक बाह्य कर्ज मुद्रा पर दबाव डाल सकता है और विदेशी मुद्रा भंडार घटा सकता है।
भारत पर विदेशी ऋण राशि बढ़ने के कारण -
भारत का विदेशी ऋण 2010 से 2024 तक लगातार बढ़ा है, जो विभिन्न आर्थिक, संरचनात्मक और वैश्विक कारकों का परिणाम है। इस अवधि में ऋण में वृद्धि के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
- बुनियादी ढांचा निवेश और विकास योजनाएं - भारत सरकार ने बुनियादी ढांचे, जैसे सड़क, बंदरगाह, ऊर्जा, और डिजिटल अवसंरचना में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। इन परियोजनाओं के लिए वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता को पूरा करने हेतु विदेशी ऋण लिया गया। विशेष रूप से, कोविड-19 महामारी के बाद आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए भी विदेशी ऋण का उपयोग बढ़ा है।
- मुद्रा विनिमय दर में उतार-चढ़ाव - भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ है, जिससे डॉलर-निर्दिष्ट ऋणों की सेवा लागत बढ़ गई है। उदाहरण के लिए, 2024 के अंत में डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट ने ऋण सेवा लागत में वृद्धि की।
- वैश्विक ब्याज दरों में वृद्धि - अमेरिका और अन्य विकसित देशों में ब्याज दरों में वृद्धि ने विदेशी ऋणों की लागत बढ़ा दी है। इससे भारत को अधिक महंगे ऋणों का सामना करना पड़ा है, जिससे कुल ऋण राशि में वृद्धि हुई है।
- वित्तीय घाटा और राजकोषीय दबाव - सरकार के उच्च व्यय, जैसे सामाजिक कल्याण योजनाएं, सब्सिडी, और रक्षा खर्च, ने वित्तीय घाटे को बढ़ाया है। राजस्व में वृद्धि अपेक्षित स्तर तक नहीं हो पाई, जिसके कारण विदेशी ऋण पर निर्भरता बढ़ी है।
- विनिमय दर प्रभाव (Valuation Effect) - डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट ने विदेशी ऋण की भारतीय रुपये में मूल्य को बढ़ा दिया है, जिससे कुल ऋण राशि में वृद्धि हुई है। 2024 की चौथी तिमाही में इस प्रभाव ने $12.7 बिलियन की वृद्धि की।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी - निजी कंपनियों ने भी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए विदेशी ऋण लिया है। इन कंपनियों के ऋणों की सेवा के लिए सरकार को भी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, जिससे कुल विदेशी ऋण में वृद्धि होती है।
निष्कर्ष -
भारत का विदेशी ऋण बढ़ने के पीछे बुनियादी ढांचा निवेश, मुद्रा विनिमय दर में उतार-चढ़ाव, वैश्विक ब्याज दरों में वृद्धि, वित्तीय घाटा, और निजी क्षेत्र की भागीदारी जैसे कारक जिम्मेदार हैं। हालांकि कुल ऋण राशि में वृद्धि हुई है, लेकिन ऋण-से-जीडीपी अनुपात में सुधार हुआ है, जो आर्थिक स्थिरता की ओर संकेत करता है।
कर्ज किसी भी सरकार के लिए एक आवश्यक वित्तीय साधन है, लेकिन इसका प्रबंधन अत्यंत सावधानी से करना होता है। कर्ज को सही जगह पर निवेश किया जाए, तो यह देश के विकास में सहायक हो सकता है। लेकिन यदि यह केवल घाटे की भरपाई के लिए लिया जाए और बिना किसी दीर्घकालीन योजना के खर्च किया जाए, तो यह देश की आर्थिक स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है। इसलिए जरूरी है कि सरकारें कर्ज का उपयोग सोच-समझकर करें और दीर्घकालिक वित्तीय अनुशासन बनाए रखें।
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