महंगाई पर निबंध - बढ़ती महंगाई

महंगाई पर निबंध - बढ़ती महंगाई

महँगाई एक जटिल समस्या है, जो वस्तुओ और सेवाओं को महँगा कर देती हैं। क्रेता वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करने के लिए पहले कि अपेक्षाकृत अधिक मूल्य चुकाने के लिए बाध्य होता है। महंगाई बाजार की उस अवस्था को कहा जाता है जब वस्तुओ और सेवाओं का मूल्य एक निश्चित समय में बढ़ जाता है। महंगाई के कारण विक्रेता वस्तु और सेवाओं का मूल्य बढ़ने के कारण इसे मुद्रास्फीति भी कहा जाता है क्योंकि इस वक़्त मुद्रा का मूल्य वस्तुओ कि तुलना में कम हो जाता है।

महंगाई पर निबंध - बढ़ती महंगाई


महँगाई कि अवस्था में वस्तुओं कि कीमत में बढ़ोतरी हो जाती है, जिसके कारण उपभोक्ता को वस्तु क्रय करने के लिए पहले से अधिक मूल्य चुकाना होता है। महंगाई का सीधा असर उपभोक्ता कि जेब के साथ उसकी जीवनशैली और उपभोग कि प्रकृति पर भी पड़ती हैं। महंगाई का असर उन लोगों पर सर्वाधिक होता है, जिन्हें पूर्व निर्धारित, नियत (fix) वेतन मिलता है। आय के मुकाबले में महंगाई के बढ़ जाने से उपभोक्ताओं को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है और सरकार के सामने भी महंगाई को नियंत्रित करने कि विकट समस्या उत्पन्न हो जाती हैं। 

महँगाई का अर्थ और अवधारणा -


जब किसी देश में वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य एक निर्धारित समय में सामान्य से अधिक हो जाता है, वस्तुएं क्रय करने और सेवाओं का उपभोग करने के लिए पहले कि तुलना में अधिक मूल्य का भुगतान करना होता है। यह वह स्थिति होती है, जब मुद्रा शक्ति वस्तुओं और सेवाओं को क्रय करने के लिए घट जाती है। इसे अर्थशास्त्र कि भाषा में मुद्रास्फीति भी कहा जाता है। महँगाई सकारात्मक (positive) और नकारात्मक (negative) दोनों प्रकार कि हो सकती हैं। नकारात्मक महंगाई वह होती है जब वस्तुओ और सेवाओं का मूल्य कम हो जाता है और मुद्रा कि क्रय शक्ति में वृद्धि हो जाती है। दूसरी और सकारात्मक महंगाई में वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में वृद्धि और मुद्रा के क्रय शक्ति में कमी होती हैं।

सामन्यतः जब महंगाई कि बात होती है तो हम इसका अर्थ सकारात्मक महंगाई से ही करते हैं अर्थात्‌ हम महंगाई को मूल्यों कि बढ़ोतरी और मुद्रा कि शक्ति में कमी के रूप में व्यक्त करते हैं। महंगाई को सामन्यतः हम बढ़ती महंगाई के तौर पर देखते हैं। बढ़ती महँगाई में वस्तु का मूल्य तेजी से बढ़ता है। आजकल मौद्रिक मूल्यों कि अवधारणा के चलते महंगाई ऊपर कि ओर (एक दीर्घकालिक काल में) ही जाती है। मूल्य घटने कि बजाय बढ़ने कि प्रकृति के कारण महंगाई को भी सकारात्मक महंगाई के रुप में देखा जाना हमारी प्रवर्ती हो गई है और महंगाई का अर्थ भी महँगा होने से ही लगाया जाने लगा है, इस कारण बढ़ते मूल्यों कि समस्या को हम महंगाई कहते हैं।

बढ़ती महंगाई के कारण -


महँगाई कि दर हमेशा वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य वृद्धि के साथ बढ़ती ही जाती है। बढ़ती महंगाई अथवा वस्तुओ और सेवाओं के मूल्य कई कारणों से बढ़ते हैं। बढ़ती महंगाई के कारणों/कारको को देखा जाए तो कुछ कारण निम्नलिखित है -

  1. मूलभूत उत्पादों कि कमी - उत्पाद को बाजार में विक्रय योग्य बनाने अथवा उपभोग योग्य बनाने के लिए मूलभूत उत्पाद और सुविधाएं जैसे कच्चा माल, परिवहन, विद्युत आपूर्ति और जल इत्यादि की कमी के कारण बाजार में आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं कि कमी हो जाती है, जिससे उत्पाद का मूल्य बढ़ जाता हैं। इसे आप कमी का प्रतिफल भी कह सकते हैं। 
  2. कम कारोबारी गतिविधियां - जब किसी विशेष वस्तु अथवा सेवा की किसी निश्चित समय काल में कारोबार अथवा उत्पादन में कमी आती है, ऐसी स्थिति में वस्तु की बाजार मांग आपूर्ति की तुलना में अधिक हो जाती है। ऐसी स्थिति से बाजार में उत्पन्न हुई परिस्थितियों के उपरांत  बाजार में महंगाई कि स्थिति पैदा हो जाती है। 
  3. मुद्रा के मूल्य में कमी - मुद्रा के मूल्य में कमी होने से उसकी क्रय शक्ति कम होने लगती है, जिससे महंगाई बढ़ती है। मुद्रा के मूल्यों में कमी मुद्रा कि अधिक आपूर्ति किए जाने से अथवा अंतराष्ट्रीय बाजारो के उच्चावचन के कारण भी हो सकती है। जैसे डॉलर के मुकाबले में रुपये का मूल्य कम होने से विदेश से आयात होने वाली वस्तुओं खासतौर से कच्चे तेल का मूल्य बढ़ जाता है जिसका असर सभी वस्तुओ और सेवाओं पर होता है। 
  4. उच्च कर - जब कभी सरकार किसी उत्पाद पर करों की दरों में वृद्धि कर देती है, तब उपभोक्ता को उत्पाद का क्रय करने के लिए अधिक मूल्यों का भुगतान करना पड़ता है। बढ़े हुए करो की दर वस्तु अथवा सेवाओं का मूल्य बढ़ा देता है जो वस्तुओ को महंगी कर देता है। सरकार जिन वस्तुओ की कमी होती है उनकी बाजार मांग को पूरा करने के उदेश्य से राशनिंग कर देती हैं। 
  5. दीर्धकालिक अवधि - लंबी अथवा दीर्घकालिक अवधि में समय के साथ मुद्रा का मूल्य (Time Value of Money) घटता है, जिससे मुद्रा के मुकाबले में उत्पादों का मूल्य बढ़ जाता हैं। 
  6. असंतोष - युद्ध अथवा असंतोष कि स्थिति में वस्तुओं अथवा सेवाओं का परिवहन, उत्पादन और आपूर्ति संभव नहीं हो पाती है। असंतोष के चलते महंगाई का होना लाजिमी है। बाजार का वैश्वीकरण होने से वैश्विक असंतोष मूल्यों को वैश्विक स्तर पर प्रभावित कर महंगाई को बढावा देते हैं। 
  7. प्राकृतिक आपदा - प्राकृतिक आपदा जैसे अकाल, बाढ़, भूकम्प और भूस्खलन उत्पादों कि आपूर्ति पर विपरीत प्रभाव डालता है, जिससे उनके मूल्यों में वृद्धि हो जाती हैं। 
इसके अतिरिक्त भविष्य में मूल्य बढ़ने कि उम्मीद के साथ उत्पादों के मूल्य बढ़ जाते हैं। बाजार में तेजी कि संभावना और उत्पादन में कमी का अंदेशा मात्र अल्पकालिक अवधि में महंगाई को बढ़ा देने में सहायक होते हैं। बढ़ती जनसंख्या महंगाई को पूरी तरह से प्रभावित करती है क्योंकि यह मांग को बढावा देती है, जिसके कारण महंगाई भी उसके समानुपातिक अथवा अधिक तेजी से बढ़ती है। 

महँगाई बढ़ने के नुकसान/ महंगाई बढ़ने के प्रभाव 


महँगाई बढ़ने से ग्राहक को वस्तु का क्रय करने और उपभोक्ताओं को वस्तु का उपभोग करने के लिए अधिक मूल्य चुकाना होता है। दीर्घकालीन समय में बाजार में महंगाई बढ़ती है, किंतु एक निश्चित सीमा अथवा आय के मुकाबले में महंगाई के अधिक बढ़ जाने से यह बाजार को विपरीत तरीके से प्रभावित करती हैं। जिससे उसका उपभोग और क्रय प्रभावित होता है, जिससे बाजार, ग्राहक देश, उपभोक्ता वर्ग और अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित नुकसान होते हैं - 

  1. आर्थिक विकास पर विपरीत प्रभाव - किसी देश में महंगाई होने से निवेश पर विपरीत प्रभाव होता है। जब निवेश प्रभावित होता है तो नए उद्योग धंधे स्थापित नहीं होते हैं और ना ही नए रोजगारों का सृजन होता है, जिससे देश का आर्थिक विकास विपरीत तरीके से प्रभावित होता है। 
  2. भूखमरी - जब देश में महंगाई के कारण नए उद्योग धंधे स्थापित नहीं होते हैं तो लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो जाता है। रोजगार संकट के चलते लोगों कि क्रय शक्ति समाप्त हो जाती है और देश में भूखमरी की स्थिति पैदा हो जाती है। 
  3. केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी - लोगों के पास महंगाई के दौर में अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए धन नहीं होता है, जिसके कारण वो अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए उधार लेने को बढावा देते हैं, जिससे ऋण मांग बढ़ जाती है। 
  4. पलायन - जब महंगाई कि मार होती है तो रोजगार संकट होने लगता है। रोजगार कि तलाश में लोग घर बार छोड़कर पलायन करने लगते हैं। भारत जैसे बड़े देश में ग्रामीण शहरो कि ओर तो शहरो और छोटे राज्यों के लोग रोजगार कि तलाश में अन्य राज्यों को चले जाते हैं। छोटे देशों के नागरिक रोजगार कि तलाश में अन्य देशों में चले जाते हैं। 
  5. जीवन स्तर - नौकरी पेशा वर्ग को दोहरी मार पड़ती हैं महंगाई में वृद्धि के कारण। एक तरफ तो बाजार में उत्पादों का मूल्य बढ़ जाता है, दूसरी तरफ बाजार में उत्पाद मांग कम होने से उनके पारिश्रमिक में कटौती होने लगती है। इससे उन्हें महंगाई कि दोहरी मार के कारण अपने उपभोग को घटाना पड़ता है, जिसका प्रभाव उनके जीवन स्तर पर होता है। 
  6. उत्पादन में कमी - जब लोगों के सामने रोजगार संकट हो, पलायन करने को मजबूर हो उस दशा में लोगों कि क्रय शक्ति क्या रह जाती है। लोग भूखमरी को विवश हो वो कुछ क्रय नहीं कर सकते तो उद्योग उत्पादन क्यों करेगा? उद्योग कि क्षमता से कम उत्पादन वस्तु का मूल्य और बढ़ा देता है, जिसके कारण उत्पादन पूरी तरह से बाधित हो जाता है। 
  7. सरकारी राजस्व कमी से सेवाओं में कटौती - जब लोगों के पास रोजगार नहीं हो उद्योग धंधे पूरी तरह से प्रभावित हो। ऐसे समय में सरकार का विभिन्न करो से होने वाला राजस्व घटने लगता है, घटते राजस्व और आर्थिक बोझ के तले सरकारे अपने नागरिकों को दी जाने वाली सेवाओं और सुविधाओं में कटौती करने लगती है। सरकार द्वारा दिए जाने वाले अनुदान बंद कर दिए जाते हैं। 

महँगाई से उत्पन्न होने वाले संकट के चलते रोजगार कि कमी होने से समाज और देश में गरीबी बढ़ने लगती हैं। उधारी के चलते लोग आर्थिक बोझ में दबने लगते हैं और रोजगार कि तलाश में पलायन को मजबूर हो जाते हैं। पलायन करने से सामाजिक जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है। बच्चे शिक्षा लेने से वंचित रह जाते हैं, असाक्षरता को बढावा मिलता है। राजस्व का नुकसान झेल रही सरकार अनुदान कटौती करने लगती हैं, जिससे देश में मूलभूत सुविधाएं कम होने लगती है। 

महँगाई को रोकने के उपाय - 


जब बाजार में अत्यधिक महंगाई बढ़ जाती है, तब सरकार महंगाई को रोकने के लिए विभिन्न प्रयास करती है। मांग को और उत्पादन को बढावा देने के लिए विभिन्न प्रकार के अनुदानों के अतिरिक्त उद्योग धंधे स्थापित करने के लिए उद्यमियों को सस्ती दरों पर ऋण देना और करो में कटौती कर मांग को बढावा देना, जिससे सरकारी राजस्व और रोजगार और मूलभूत सुविधाओं का विस्तार हो इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जाते हैं - 

  1. वित्तीय सुधार - महंगाई से निपटने के लिए सरकार वित्तीय पद्धति में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाती है। बैंक दर में कमी, ऋण प्रक्रिया को आसान करना और करो का सरलीकरण। सरकार महंगाई को रोकने के लिए निवेश और बैंकिंग संबंधी नियमो को आसान करती है, जिससे निवेश को बढावा मिल सके और नए रोजगारों का सृजन हो सके। 
  2. उत्पादन को बढावा - सरकार रोजगार को बढावा देने के लिए नए उद्योग धंधे स्थापित करे या पहले से स्थापित बंद पड़े उद्योगों को पुनर्जीवित कर उत्पादन को बढ़ाए, जिससे नए रोजगार सृजन हो सके। 
  3. जागरूकता - महंगाई के दौर में खासतौर से उस समय जब बाजार मांग उत्पाद आपूर्ति से अधिक हो उस समय सरकार उचित उपभोग करने के लिए जागरुकता का अभियान चलाये, जिससे मांग आपूर्ति में संतुलन स्थापित कर मूल्यों को नियंत्रित किया जा सके। भारत सरकार पेट्रोल-डीजल के उचित उपभोग के लिए और विभिन्न राज्यों कि सरकारे बिजली उपभोग को कम करने के लिए बिजली बचाओ नाम से इस तरह के अभियान चलाती हैं। 
  4. सरकार द्वारा अनुदान और प्रोत्साहन - सरकार ऐसे वक्त में उपभोक्ताओं को क्रय के लिए प्रोत्साहित करने के लिए अनुदान देती है, ताकि मांग को बढ़ाया जा सके। दूसरी ओर उद्योगों को भी अनुदान दे उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करती हैं, जिससे नए रोजगार का सृजन और लोगों कि आय में वृद्धि हो सके। 
  5. मांग आपूर्ति संतुलन - बाजार मांग और आपूर्ति को संतुलित करने के लिए सरकार कदम उठाती है। अधिक आपूर्ति से मूल्यों में गिरावट होने से पारिश्रमिक में कमी होती है और अधिक मांग से मूल्य बढ़ जाते हैं जिससे क्रय क्षमता प्रभावित होती। दोनों ही स्थिति महंगाई को नियंत्रित नहीं कर पाती ऐसे में सरकार दोनों में संतुलन स्थापित कर आय को बढ़ाने के लिए जोर देती है। 
  6. करो में कमी - जब लोगों के पास काम-धंधे और आय के स्त्रोत नहीं हो उस समय लोगों कि क्रय क्षमता भी कम हो जाती है। ऐसे में इस वक्त सरकार करो में कमी कर लोगों को अत्यधिक क्रय करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे मांग और आपूर्ति में संतुलन स्थापित कर उत्पादन को बढावा दे रोजगार सृजन किया जा सके। 
  7. मुद्रा मूल्य का नियन्त्रण - मुद्रा के मूल्यों में गिरावट होने से अथवा मुद्रा कि क्रय शक्ति में कमी होना ही महंगाई को बढावा देती है। ऐसे में सरकार इस समय मुद्रा का नियंत्रित मूल्य बनाकर महंगाई को कम कर सकती है। 

महँगाई को रोकने के उदेश्य से सरकार उत्पादन, रोजगार को बढावा देने के लिए विभिन्न प्रकार कि योजनाओं को ला मांग और आपूर्ति में संतुलन स्थापित करती हैं। 

महँगाई वर्तमान समय में वैश्विक समस्या है, महंगाई के चलते दुनिया में प्रतिवर्ष हज़ारो लोग मौत के मुँह में समा रहे हैं। भुखमरी और सुविधाओं के अभाव के कारण। हमारी असीमित आवश्यकताओं को सीमित संसाधनो से पूरा करने के लिए और महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार को विभिन्न प्रकार कि योजनाओं को बनाकर प्रत्येक व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यकताओं (रोटी, कपड़ा और मकान) को पूरा करने के लिए जोर देना चाहिए। 

वैश्विक स्तर की समस्याओं के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को निदान के लिए प्रयास करने चाहिए और समाधान निकालना चाहिए। युद्ध और अशांति का निपटारा भी किया जाना चाहिए, युद्ध के समय युद्ध के मैदान में होने वाली मौतों से अधिक मौतें बढ़ी हुई महंगाई और सुविधाओं के अभाव में भूखमरी से हो जाती है। सरकार के अलावा प्रत्येक नागरिक का भी कर्तव्य है कि वो संसाधनो का उचित उपभोग करे।

महंगाई हमेशा बढ़ती हुई क्यों होती है? 


महंगाई हमेशा बढ़ते हुए क्रम में ही नजर आती है। किसी भी वस्तु का (कुछ तकनीकी अपवाद को छोड़कर) मूल्य एक दशक पूर्व था उसके मुकाबले में आज अधिक है। खासतौर से अचल संपत्ति का मूल्य प्रतिवर्ष बढ़ता है। उदाहरणार्थ देखे तो जो प्लॉट आपने एक दशक पूर्व 10 लाख रुपये मे खरीदा उसका मूल्य वर्तमान में बढ़कर 15-20 लाख के मध्य हो गया है। ऐसा बाजार द्वारा मुद्रा का मूल्य बनाये रखने के लिए होता है। 

महंगाई के बढ़ने के कारण ही बैंक आपको आपकी जमा धनराशि पर ब्याज देता है ताकि आपके द्वारा जमा की गई राशि का मूल्य बाजार कीमतों के अनुरूप बना रहे। ठीक उसी प्रकार से एक व्यावसायी भी जो प्रतिफल अर्जित करता है, उस प्रतिफल पर करो के भुगतान से पूर्व शुद्ध प्रतिफल को ज्ञात करके करो का भुगतान करता है ताकि ह्रास और बाजार दरों में कोई अन्तर उत्पन्न ना हो। 


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