ओरण भूमि, देव भूमी और गोचर के महत्त्व और संकट Oran Bhoomi

ओरण भूमि, देव भूमी और गोचर के महत्त्व और संकट Oran Bhoomi

अक्सर आपने अपने गॉव में खाली पड़ी भूमि देखी होगी। ऐसी भूमि ना तो कोई उसकी जुताई करता है और ना ही कोई  उसमे घर होता है। सर्दी गर्मी बरसात हर ऋतु में एक जैसा ही स्वरुप लिए यह धरती होती है, बस पशु-पक्षियों और वन्यजीवों का घर। ऐसी खाली जमीन के बारे में गॉव के लोगों से पूछो इसे कोई जोतता क्यों नहीं? तो जबाब मिलता है, यह ओरण है।

ओरण भूमि के महत्त्व और संकट

 
ऐसी ओरण भूमि ना सिर्फ पशु-पक्षियों को विचरण के लिए स्थान देती है बल्कि पारिस्थितिक तंत्र को बचाए रखने में भी अपनी महती भूमिका निभाती हैं। इसी कारण आपने अक्सर देखा होगा कि जो वनस्पतियाँ आपके खेत में नहीं है वो उस ओरण भूमि में है। ऐसी ओरण भूमि के जानते हैं कुछ रोचक तथ्य - 

ओरण क्या है? 


ओरण का अर्थ संरक्षित भूमि से है। ऐसी भूमि या जमीन जो चारागाह के लिए छोड़ रखी है, जिस पर ना कोई घर बना सकता है और ना ही जुताई कर सकता है। यह भूमि देवी-देवताओं के नाम से छोड़ दी गई सेटलमेंट के समय। इस भूमि का उपयोग पशु-पक्षियों के चारागाह के तौर पर होता है। इसे ओण, ओवण और ओरांस भी कहा जाता है। 

ओरण भूमि क्या है? 


ऐसी भूमि जो देवी-देवताओं के प्रति अपार श्रृद्धा व्यक्त करते हुए लोक कल्याण हेतु 'ऊऋण' कर देना। यह भूमि ग्रामीणों द्वारा देवी-देवताओं के लिए संकल्पित कर चारागाह के रूप में छोड़ी हुई होती है। इस भूमि का उपयोग मानवीय आवश्यकता कि पूर्ति के लिए नहीं किया जाता है। इस भूमि मे खेती करना या घर बनाना तो दूर की बात है, यहाँ से चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी तक नहीं ली जाती है। ओरण भूमि के वनों को पूरी तरह से सुरक्षित रखने के लिए ग्रामीण किसी भी वानस्पतिक झाड़ी या पेड़ कि अनावश्यक पत्ती तक नहीं तोड़ते है और ना ही यहां विचरण करने वाले पशु-पक्षियों का शिकार। 

कुछ लोग कहते हैं कि तथ्यों के आधार पर ओरण शब्द कि उत्पत्ति संस्कृत के 'अरण्य' शब्द से हुई है। हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि राजस्थान में जो भूमि सीधी और सपाट होती है, उसे रण कहते हैं। ऐसे में हो सकता है कि देवी-देवताओं को समर्पित यह भूमि 'ओम् रण' से से अपभ्रंश हो ओरण हो गई हो। 

ओरण भूमि देवी-देवताओं को समर्पित किए जाने जा उदेश्य लोगों में भय की उत्पत्ति किया जाना भी रहा है। इस भय और समर्पण को मजबूती देने के लिए इस भूमि में एक छोटा सा मंदिर या थान बना दिया जाता था। इसके कारण अधिकांश गांवों में फैली ओरण भूमि को उन्हीं देवता कि भूमि के नाम से संबोधित किया जाता। उदाहरण के लिए बाड़मेर के नागाणा गॉव में फैले ओरण को नागणाराय माता या नागणेची माता ओरण कहा जाता है। इसी प्रकार विभिन्न गॉवो में भोमियाजी, मामा जी, पाबूजी और अन्य लोक देवता के ओरण है। देवी-देवता को समर्पित इस ओरण भूमि से लकड़ी काटना पूरी तरह से प्रतिबंधित करने और आखेट को निषिद्ध करने के लिए देवी-देवताओं का भय स्थापित किया गया। इस क्षेत्र से उचित नहीं माना जाता था, अगर कोई भूल से लकड़ी काट लेता तो उससे बना औजार उन्हीं देवी-देवताओं के मंदिर या थान पर चढ़ा दिया (समर्पित) जाता है।  कुल मिलाकर इस भूमि का उपयोग केवल चारागाह के लिए ही होता अन्य कोई उपयोग संभव नहीं। 

ओरण भूमि का महत्व - 


सदियों से देवी-देवताओं को समर्पित कर ओरण के लिए भूमि को चारागाह के रुप में संरक्षित किए जाने की परंपरा चली आ रही हैं। ओरण भूमि का उपयोग सार्वजनिक होने के साथ ही वन्यजीव के लिए होने के कारण यह मरुभूमी कि प्राकृतिक, भौगोलिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों को सुदृढ़ करने में अपनी महती भूमिका निभाता है। इसके अतिरिक्त इसके आर्थिक और सामाजिक महत्व भी है। 

पारिस्थितिकि तंत्र का बचाव - 


राजस्थान मरूभूमि का हिस्सा है, वनस्पतियों का अभाव पाया जाता है। ऐसे में गांवों के आसपास जहां नाडी और तालाब होते हैं, उसके आसपास के क्षेत्रों को ओरण घोषित कर लोक देवी-देवताओं को समर्पित कर दिया। लोगों में उस विशेष भूमि के प्रति श्रद्धा का भाव पैदा कर दिया गया। लोग इस भूमि के वानस्पतिक उद्यान और यहां स्वच्छंद विचरण करने वाले वन्य-जीव के प्रति उदार हो गए, जिसके चलते यह क्षेत्र ग्रामीणों के लिए पूजनीय हो गए। यहां वन कटाई और आखेट स्वेच्छापूर्वक प्रतिबंधित हो गया। आज भी लोग ओरण भूमि को उसी नजर से देखते हैं। लोगों कि भावना और श्रद्धा आज जैव-विविधता को सरंक्षण प्रदान कर रही हैं। 

ग्रामीण आत्मनिर्भरता - 


ओरण सार्वजनिक भूमि होती है। इसका उपयोग चारागाह के रुप में हमेशा से होता रहा है। ग्रामीण अपने पालतू पशु हमेशा से इस भूमि पर चराते रहे हैं। पशुपालन में ओरण का हमेशा से उपयोग रहा है। एक तरफ चारागाह के रुप में भूमि का उपयोग होता रहा तो दूसरी तरफ इस भूमि पर नाडी और तालाब या कुए और बावड़ी आदि बना देने से जल कि उपलब्धता आसान हो जाती। ऐसे क्षेत्र में जलकुंड बनाये जाने से उसे वर्षा के जल से भरे जाने में समस्या का सामना नहीं करना पड़ता और ना ही आज भी ग्रामीणों कि तरफ से अतिक्रमण जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा हैं। पहले के जमाने में इसी आत्मनिर्भरता का ध्यान रखते हुए लोग अपनी बेटी का विवाह दूसरे गॉव में करते समय ओरण भूमि का भी ध्यान रखते थे। गांव में अधिक ओरण भूमि होने का अर्थ यह होता था कि गॉव के लोगों के पास आय के स्त्रोत भरपूर है तथा गॉव में जलापूर्ति के लिए स्त्रोत भी उपलब्ध हैं। 

दुर्लभ प्रजातियों का सरंक्षण - 


वर्तमान समय में कई पशु-पक्षियों, वन्य-जीव और वानस्पतिक पौधों की प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है। ऐसी विलुप्त होती प्रजाति को ओरण भूमि सहारा दे, इन्हें विलुप्त होने से बचा रही हैं। वानस्पतिक पौधे जो औषधियों में उपयोग होते हैं, वो खेतों में हो रहे कृषि कार्यो और विभिन्न रसायनों के उपयोग से नष्ट हो गए हैं, लेकिन ऐसे औषधीय पौधे ओरण में देखने को मिल जाते हैं। ऐसे पौधों में पौष्टिक कि भरपूर मात्रा होती है, उनके सेवन से कई प्रजाति आज भी ज़िन्दा हैं। दूसरी ओर कृषि भूमि पर हो रही तारबंदी और पक्की दीवारों ने वन्यजीवों का खेतों में विचरण समाप्त कर दिया है, उन्हें ओरण चारागाह और पीने के लिए नाडी और तालाबों से पानी उपलब्ध कराता है। 

लघु वन - 


मरूभूमि के ग्रामीण आंचल में ओरण में विशाल वृक्ष पीपल, बरगद, आम, नीम और इमली के अलावा केर, बोरड़ी, खेजड़ी, आक, गुंदी, जाल, कुमट, देशी बबूल, सजानो, रोहिड़ा, कंकेड़ी और गूगरिया आदि के पेड़-पौधे पाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त देशी घास और औषधियों के झाड़ीनुमा पौधों कि भरमार होती है। घट रहे वनक्षेत्र के लिए यह संरक्षित क्षेत्र ऑक्सीजन का काम करते हैं। इन लघु वन में विलुप्त होती प्रजाति आसानी से अपना शरण स्थल ढूंढ लेती है। 

पर्यावरण संतुलन - 


वनों के महत्व तो हम सब जानते ही हैं और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में भी सुना होगा। वैश्विक स्तर पर घट रही वनभूमि ने पर्यावरणविदों कि चिंता को बढा रही हैं। पर्यावरण के जानकार मानते हैं कि इसका संतुलन बिगड़ रहा हैं, जिसके कारण बाढ़, अतिवृष्टि और अनावृष्टि के साथ भूकंप जैसी आपदाएं निरंतर बढ़ रही है। इन्हें रोकने के लिए अधिकतम पेड़ लगाकर पर्यावरण संतुलन स्थापित किया जाना अति आवश्यक है। मरूभूमि में ओरण पर्यावरण संतुलन स्थापित करने के लिए अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। यह वन्य-जीव और वन्य औषधि और वानस्पतिक पौधों को बचाकर जैव-विविधता को संरक्षण प्रदान कर रहा है। 

ओरण भूमि कि विशेष महता है। यह आज भी पशु-पक्षियों और वन्यजीवों के साथ पशुपालन के लिए सहारा बनी हुई है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करती हैं और पलायन को रोकती हैं। आधुनिक समय में भी उन वानस्पतिक औषधियों को संरक्षित कर रही है, जिसकी हमे आवश्यकता है। ओरण भूमि पर खेती नहीं होने से यहाँ उपजाऊ भूमि पायी जाती है जो हवा और पानी के साथ बहकर आसपास के खेतों में चली जाती है, जिससे खेती कि उपज को बढावा मिलता है। 

ओरण भूमि को खतरा - 


ओरण भूमि के महत्त्व और संकट


आज के समय में ओरण के प्रति लोगों कि श्रृद्धा कम किए जाने के कृत्य तेजी से फेल रहे हैं। देवी-देवताओं के प्रति भी आस्था को कमजोर कर जमीन हथियाने के कृत्य जोरों पर है। दूसरी ओर पहले जहां ग्रामीण पगडण्डी के अलावा कोई रास्ता बनाकर वन्यजीवों के स्वच्छंद विचरण में कोई बाधा नहीं बनना चाहते थे वहाँ अब सरकार तीव्र गति कि सड़के बना उनके विचरण में बाधा डाल रही हैं तो कहीं अवैध तरीकों से ओरण भूमि को कृषि जोत में बदला जा रहा है। इससे इसे बचाने का संकट खड़ा हो रहा है। निम्नलिखित खतरे ओरण के सामने खड़े हो रहे हैं - 

अवैध कटाई - 


लोगों में आस्था कि कमी दिनोदिन बढ़ रही है, जिसके चलते पहले जहां लकड़ी तक उठाना गलत माना जाता था वहाँ आजकल लोग पेड़ तक काटकर ले जाते हैं। अवैध कटाई से वन्यजीव बूरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त सरकार सड़कों का जाल बिछाते समय ओरण में भी सड़के बना रही है और अवैध खुदाई भी कर रही है, जिससे इस पवित्र देवभूमि के वनों को नुकसान हो रहा है। लकड़ी कि कटाई के बाद नए पेड़ ना रोपना और लकड़ी का घरेलू उपयोग किए जाने से डर कि भावना समाप्त हो रही है, जो इसके संरक्षण में बड़ी बाधा बनी हुई है। 

अतिक्रमण - 


जहां एकतरफ़ पेड़ों कि कटाई हो रही है वही दूसरी तरफ सरकारी और निजी अतिक्रमण भी इस भूमि पर बढ़ रहा है। अवैध खुदाई और अवैध निर्माण दिनोदिन बढ़ रहा हैं। आजकल सरकार इस भूमि पर जल संरक्षण के लिए बड़े-बड़े प्रोजेक्ट बना रही है। जिससे वाहनों कि आवाजाही बढ़ रही है। शहरो के नजदीक या गांवों के नजदीक ऐसी भूमि पर अस्थायी मकान भी बनाये जा रहे हैं। मानव द्वारा कि जा रहीं इस प्रकार कि क्रिया प्रकृतिक रुप से इनका हुलिया बिगाड़ रही है, जिससे वन्यजीवों के साथ ही वन्य पौधों को नुकसान पहुंच रहा है। 

विकास - 


आधुनिक युग विकास का युग है, विकास मानव के लिए हो रहा है। मानव जीवन को सुखी बनाने के लिए किया जा रहा विकास वन्यजीवों और पौधों के लिए घातक साबित हो रहा है। बिजली के उत्पादन आपूर्ति के लिए बनायी जा रही पवन चक्की और ऊंचे खंबे पक्षियों कि जान ले रहे हैं तो निर्माण के लिए पेड़ों कि कटाई और चारागाह कि कमी को उत्पन्न कर रहे हैं। कई बार ऐसी भूमि पर भी अवैध खुदाई चालू कर दी जाती है जिसके लिए किए जाने वाले ब्लास्ट पशु-पक्षियों को छोड़ कर भागने के लिए मजबूर कर रही हैं। 

य़ह स्थानीय अरण्य स्थल वर्तमान समय में आखेट स्थलों में परिवर्तित हो रहे हैं। यह आखेट किसी तीर, भाले, गोली या अन्य हथियारों से नहीं खेला जा रहा है बल्कि यह आखेट भावनाओ से किया जा रहा है। मनुष्य को इस पवित्र देव भूमि के प्रति आस्थाहीन कर दिया है। मनुष्य में ना पौधों के लिए आस्था बची है और ना ही वन्यजीवों के लिए। मनुष्य विकास और उत्पादन के नाम पर हो कार्य कर रहा है, वो ओरण का विनाश करने के लिए काफी है। यह काम भले विकास के नाम पर ही क्यों ना हो रहे हों लेकिन ओरण और इसके शरणार्थियों के लिए घातक साबित हो रहे हैं।

कई जिलों से वर्तमान में ओरण के महत्व को समझकर इसे बचाने के लिए लोगों के प्रयास सामने आए हैं। लोग इस पवित्र भूमि को बचाने के लिए आन्दोलन कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त सरकार भी पशु-पक्षियों कि बिजली के तारो में उलझकर मृत्यु ना हो इसकी योजना बना रही है। अवैध अतिक्रमण और खनन को रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं। राजस्थान समेत पूरे भारत में सरकार द्वारा आखेट को प्रतिबंधित किया हुआ है। सरकार स्थानीय लोगों और निकायों के साथ मिल कर इस क्षेत्र में वृक्षारोपण के कार्य भी करवा रही है।

ओरण बचाओ आंदोलन -


राजस्थान हाई कोर्ट के ओरण भूमि और गोचर को डीम्ड फॉरेस्ट में बदलने के आदेश के बाद राज्य सरकार नें आदेश की पालना के लिए भूमि के प्रयोग को बदलने के मानस से विज्ञप्ति जारी कर दी। जिसके बाद 15 लाख बीघा देव भूमि के डीम्ड फॉरेस्ट घोषित किए जाने की चिंता साफ पर्यावरणप्रेमियो के चेहरे पर साफ झलक रही हैं। सरकार के आदेश के बाद लोग ओरण को बचाने के लिए सड़कों पर उतर आए। जैसलमेर और नागौर में लोगों ने रैली निकाल विभिन्न अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा।

अन्य प्रश्न -


प्रश्न: ओरण भूमि क्या होती है?

उत्तर: गॉवों में खाली पड़ी वो भूमि जिस पर कृषि कार्य नहीं किया जाता है। इसे देवभूमि मानकर यहां से लकड़ी उठाना तक अवैध माना जाता है, ऐसी भूमि में एक देवता का छोटा थान भी होता है, उसी के कारण इसे देवभूमी कहा जाता है। हिंदी में आप इसे अरण्य कह सकते हैं।

प्रश्न: ओरण बचाओ आंदोलन क्या है? 

उत्तर: राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश के बाद राजस्थान प्रदेश की सरकार भूमि को डीम्ड फॉरेस्ट घोषित कर रही है उसके विरोध के साथ ही ओरण पर हो रहे अतिक्रमण को मुक्त करने के उदेश्य से चलाया गया आंदोलन।

प्रश्न: ओरण भूमि का महत्व क्या है?

उत्तर: परिस्थितिकी तंत्र को बचाए रखने में ओरण का अतुल्य योगदान है। 

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