शेर और शायरी पढ़ना, लिखना, सुनना और करना मनुष्य का स्वभाव है। शायरी मन कि भावनाओं को अल्फाजों में पिरोकर व्यक्त करने के लिए उपयोग में ली जाती रही है। शायर अपने अंदाज में शायरी यूँ पढता है, जिससे सुनने वाले का मनोरंजन भी हो और सार्थक सीख भी ले सके। आपकी खिदमत में पेश है कुछ राजनीतिक शायरी जो युवा नेता, अनपढ़ नेता और सियासत को समर्पित है।
युवा नेता पर शायरी -
आजकल देश में युवा में युवाओं कि राजनीति के क्षेत्र में कमांग तेजी से बढ़ रही हैं। देश के नौजवान, गरीब, मजदूर और किसान मांग कर रहे हैं कि युवाओ को राजनीति में अधिक के अवसर दिए जाएं। युवा जोश परिवर्तन कि आगाज कर सकता है, परिवर्तन प्रकृति का नियम है तो राजनीति में भी परिवर्तन हो और युवाओं को अवसर मिले।
आप भी युवा राजनीति के समर्थक है और चाहते हैं कि देश और प्रदेश की राजनीति के साथ ही स्थानीय निकायों की राजनीति में भी युवाओं को अवसर मिले। ऐसे में आप चाहते हैं कि आपके सोशल मीडिया अकाउंट पर शायरी पोस्ट करे तो आपकी इसी मांग को ध्यान में रखते हुए पेश कर रहे हैं कुछ शायरी -
सबसे पहले आज कि राजनीति में लोकतंत्र को बचाने के लिए युवाओ कि मांग हो रही है। युवा ही लोकतांत्रिक व्यवस्था को बचा सकते हैं अपने मजबूत इरादों के साथ जोश और जुनून के बल से। आवश्यकता होने पर वही क्रांति कर सकते हैं, और अपना खून भी बहा सकते हैं। उसी को लेकर पेश है पहली शायरी -
नया जोश नया जुनून ही फिजा में नई बहार ला सकता है।
मरते लोकतंत्र को युवाओं का जुनून आबाद कर सकता है।।
आजकल राजनीति में एक चलन आम हो गया है। सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद राजनीति में प्रवेश। आप इस हकीकत को तो समझिए कि जिन्हें सरकार यह कहकर घर भेज देती है कि अब आप सरकारी व्यक्ति रहने के काबिल नहीं क्योंकि आपकी उम्र हो गई है, लेकिन वो सरकार बन फिर सरकारी नौकरों को हुक्म देते हैं, इसे आप शायरी में यूँ व्यक्त करे -
सरकारी नौकरी के बाद राजनीति से भी बुजुर्ग आराम करेंगे।
देश के विकास और उन्नति के लिए राजनीति अब युवा करेंगे।।
जो राजनेता है, उनकी उम्र पार हो गई। आँखों से दिखता नहीं, कानो से सुनते नहीं। कमर झुक गई बूढ़ापे में सिर का भार ढोते-ढोते और चल दिये देश का भार उठाने। जिनसे अपना काम नहीं होता वो दूसरों के काम कराने के वादे करते हैं। उन्हें घर बिठा युवाओ को राजनीति में लाने कि आग्रह भरी शायरी -
उम्रदराज कांपते हाथों और झुकती कमर को आराम दीजिए।
राजनीति में जोश व जुनून से भरे युवाओं को अवसर दीजिए।
जो बदलाव और चुनाव कल करना है वो आज ही कर दीजिए।
देश कि सूरत व मूर्त बदलना है तो युवाओं को अवसर दीजिए।।
युवाओ को राजनीति में लाने कि पेशकश खूब होती है। इरादे भी बनाये जाते हैं, नारे भी लगते हैं - अबकी बार होगी युवाओ कि सरकार। लेकिन जैसे ही चुनाव कि चौसर सजती है तो युवाओ को हार का मुँह देखना पड़ता है, ऐसे में मतदाताओं को जोश दिलाने के लिए आप इस शायरी का उपयोग कर इतिहास बता सकते हैं और मतदाताओं को सावधान भी कर सकते हैं कि युवाओं के पास जोश होता है, धनबल नहीं। आप जोश को चुनें वही वही देश की तस्वीर और तकदीर बदलने में समर्थ है। इसके लिए यह शायरी पेश करे -
उगता है सूरज बिखरती है धूप, जग का निखरता है रुप।
धनबल के आगे हारते है सपूत, युवा ही बदलेगा स्वरुप।।
वृद्ध व्यक्ति जो राजनीति में है उनके पास अनुभव है और अनुभव कि बाते। अनुभव होने के नाते उन्हें मतदाताओं कि नस भी दबाना आता है। मतदाताओं कि मांग उन्हें पता होती है, उसी को आधार बनाकर चुनाव प्रचार की योजनाओं का निर्माण कर लम्बे वादे करते हैं और काम करने के इरादे जताते हैं ऐसे मे आप उन्हें ऐसी चिकनी चुपड़ी बातों और वादों से सावधान करने के लिए इस शायरी का उपयोग कर सकते हैं -
कभी वादों से तो कभी इरादों से, खूब सियासत कर ली बातों से।
अब वक़्त है बदलाव का लाओ युवा, पीछा छुड़ा लो जज्बातों से।।
युवा नेता पर शायरी के इस भाग में इतनी ही शायरी है, लेकिन आप आगे भी पढ़ते रहे क्योंकि अनपढ़ नेता पर शायरी और सियासत पर शायरी अभी बाकी है।
अनपढ़ नेता पर शायरी -
भारत कि राजनीति की बात कि जाए तो अनपढ़ नेताओ कि भरमार है। जो अनपढ़ नहीं है, उनका व्यवहार अनपढ़ नेताओ कि भाँति है। हालांकि अनपढ़ लोगों को चुनाव लड़ने से वंचित नहीं किया जा सकता है, भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में। लोकतंत्र कि अपनी सीमाएँ है अपनी मर्यादा है, उसे निभाने के लिए अनपढ़ लोगों को भी चुनाव लड़ने का पूर्ण अधिकार है। अधिक जानने के लिए पढ़े (अनपढ़ नेता)
अनपढ़ नेताओ पर कटाक्ष तो खूब होते हैं लेकिन जब समय आता है, चुनाव का तो अनपढ़ नेताओ कि लाॅटरी ही लग जाती है। पढ़े-लिखे तो दूर-दूर तक नजर ही नहीं आते। जो पढ़े-लिखे होते हैं वो भी सब कुछ भूलकर अनपढ़ कि तरह ही व्यवहार कर मतदाताओं को रिझाते नजर आते हैं।
सबसे पहले बात करते हैं पढ़े-लिखे लोगों और अनपढ़ नेताओ की। जहां बात होती है अनपढ़ नेताओ के राजनीति में क्यो होने कि वहाँ आप इनकी महता और एकाधिकार को सिर्फ इसी से समझ सकते हैं कि राजनीति तो अनपढ़ लोगों के लिए खेल का अखाड़ा है, पढ़े लिखे तो शिक्षक बन रहे हैं। कुछ पढ़े-लिखे है तो सेवानिवृत्ति के बाद तब आते हैं, जब सरकार उन्हें घर भेज देती है, ऐसे में आप अनपढ़ लोगों कि राजनीति को उजागर करते हुए इस शायरी का इस्तेमाल कर सकते हैं
जिन्हें अभिमान है अक्षर ज्ञान होने का वो विद्यालय चला रहे हैं,
जिन्हें नाज है धनबल के होने का वो अनपढ़ नेता देश चला रहे हैं।
अनपढ़ नेता यूँ ही संसद में नहीं पहुंच जाते हैं राजनीति से लोकतन्त्र में उन्हें हम ही भेजते हैं अपने मतदान से। हम बहुत कोशिश करते हैं सोशल मीडिया से लेकर वाद-विवाद के मंच तक। पर नेता राजनीति खेलने में माहिर होते हैं वो मतदाता कि वो नब्ज पकड़ लेते हैं और उन्हें मत देने के मजबूर कर देते हैं। ऐसे में आप अनपढ़ नेता कि जीत के लिए इस शायरी का उपयोग कर सकते हैं।
लेकर झंडा ज्ञान का, हर प्लेटफॉर्म तक जाएंगे।
जब चुनाव आएगा, तो अनपढ़ नेता जीतायेंगे।।
अनपढ़ नेता को जिताकर हम फिर जुट जाते हैं, इस बार ना सही अगली बार जरूर पढ़ा-लिखा। अपने मत को लेकर जनता के सामने जाते हैं तो जनता उस समय वचन देती हैं, इस बार वोट पढ़े-लिखे को अनपढ़ काम के नहीं। लेकिन लोकतंत्र का उत्सव पांच साल के अन्तराल से पुनः लौट आता है और अनपढ़ नेता फिर लंबे चौड़े वादे कर पुनः मत ले जाता है। इसे आप शायरी के माध्यम से इस प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं।
जनता भला-बुरा कहती हैं, अनपढ़ नेता को।
और खुद वोट नही देती, पढ़े-लिखे नेता को।।
अनपढ़ नेता पर शायरी को आगे बढ़ाते हुए युवा और पढ़ी-लिखी पीढ़ी के के दर्द को व्यक्त करते हैं। हालांकि अधिकांश नेताओ के बत्तीसी है ही नहीं। बुढ़ापा खा गया बत्तीस लेकिन व्यंग्य के तौर पर आप ढीढ हंसी पर कटाक्ष करते हुए और युवाओं कि बेरोजगारी कि विकट समस्या को प्रकट करने के लिए आप इस शायरी का उपयोग कर सकते हैं।
चुनाव के पोस्टर में अनपढ़ नेता कि बत्तीसी चमकती है,
सड़क पर पढ़े लिखो कि जमात नौकरी के लिए रोती है।
अनपढ़ नेता पर शायरी कि अंतिम शायरी युवाओ के दर्द को व्यक्त करते हुए लिखी है। जो पढ़े-लिखे नौजवानों के लिए रोजगार कि समस्या है, उसके दर्शाने की कोशिश की है। दूसरी ओर, नेताओं के शौक और राजनीति के केंद्र में रहने कि प्रकृति और प्रवृत्ति को समाहित किया है, इसे आप वर्तमान के दौर को उजागर करने के लिए उपयोग कर सकते हैं।
डिग्री लेकर देश के युवा पकौड़े तल रहे हैं बाजारों में।
अनपढ़ नेता दल बदल घूम रहे महंगी-महंगी कारों में।।
अनपढ़ नेता पर शायरी के बाद सियासत पर शायरी नहीं हो तो राजनीति पर शायरी अधूरी ही रह जाती है। तो सियासत कि शायरी भी ज़रूर पढ़े।
सियासत शायरी -
सियासत रोज रंग बदलती है। कब कौन केंद्र में आता है तो कौन बाहर? नियम तो होते ही नहीं है सियासत के क्योंकि सियासत सिस्टम में तो होती हैं लेकिन सियासत में सिस्टम होता ही नहीं है। ऐसी अनोखी सियासत पर शायरी कुछ यूं कि जा सकती है।
सियासत में सिर्फ नेता ही नहीं खेलता है, मतदाता भी अपना योगदान देता है। पांच वर्ष तक सरकार और नेताओ को कोसने वाला मतदाता, मत आते ही सब भूल सीमा में बंध जाता है। ऐसे सीमा में रहने वाले देश और समाज को छोड़कर अपने स्वार्थ को सर्वोपरी रखने वाले मतदाता पर आप यह शायरी कर सकते हैं -
ना काम पे ना कर्म पे, वोट पड़ेगा सिर्फ जात के नेता पे।
ना ज्ञान पे ना डिग्री पे, वोट पड़ेगा अनपढ़ के निशान पे।
सियासत और सच्चाई का कोई मिलाप नहीं है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि सियासत का सफर शुरु होता है नेता के अच्छे वादों और उसकी अच्छाईयों से लेकिन एक समय बाद सियासतदान घमंड में चूर हो ही जाता है, इसके रंग में घुलने से। ऐसे में रंग बदलने वाले नेताओ के लिए इस शायरी का प्रयोग कर सकते हैं -
सच्चाई और सियासत दो अलग-अलग राहें है।
अच्छाई से निकली घमंड भरी इसकी बांहें है।।
सियासत में आने के बाद सियासतदान कैसे रंग बदल देते हैं? चुनाव से पहले तो सारी अच्छाई उन्हीं कि झोली में होती है लेकिन चुनाव समाप्त होते ही जैसे ही जीत मिल जाती है, उनका रंग-रुप ही बदल जाता है। उनका जमीर ही जबाब दे देता है। सबके दिल में बचने वाले नेताजी सियासतदान होते ही ऐसे-ऐसे खेल खेलने लगते हैं, जिसकी किसी ने सोची भी ना होती हैं। ऐसे रंग बदलने वाले नेताओं के लिए आप इस शायरी का उपयोग कर सकते हैं -
आदमी वो भी नेक था, जमीर उसका ना सस्ता था।
पहले चेहरा एक था, तब उसका हालत खस्ता था।।
अब वो ना तो एक है, ना सबके दिलों में बसता है।
अब उसका खेल एक है, बस सियासती रचता है।।
चुनाव से पहले नेता जी खूब वादे करते हैं। खूब इरादे भी जाहिर करते हैं। लोगों को यकीन दिलाने के लिए लंबे-चौड़े वादों के साथ बताते हैं कि परिस्थितियां भले कैसी भी हो मैं आपके साथ ही रहूँगा। कुछ भी हो जाए जमीर को बिकने नहीं दूँगा, लेकिन ऐसे नेता को एमएलए चुन लेने के बाद जमीर को गिरवी रख राजनैतिक विरोधियों कि गोद में बैठ जाते हैं, ऐसे नेताओं के लिए आप इस शायरी का प्रयोग कर सकते हैं।
आदमी हूँ आम, क्या लगाओगे तुम मेरा दाम।
चुन लो एमएलए तो खुद बता दूँगा मेरा दाम।।
बुरा ना मानो भाई यह सियासत है कुछ भी करा सकती है। सियासत में कुछ गलत होता ही नहीं है, ऐसे में आप नेताजी का समर्थन करने और सियासत को ही जिम्मेदार बताने के लिए इस शायरी का प्रयोग कर सकते हैं।
क्या-क्या करा देता है, सियासती खेल ही बड़ा गज़ब है।
आज यहां कल वहां हैं, इसमे ना तौर-तरीके ना अदब है।।
सियासती खेल बड़ा निराला है, यहाँ कोई किसी का सगा नहीं होता है। कब कौन बदल जाए? कौन कहाँ चला जाए, अपना दल छोड़कर? पता ही नहीं चलता है। राजनीति है यह सब जायज है। यहां आपके और हमारे सम्मान कि बात तो होती ही, लेकिन होता कितना है? आपको क्या बताएं? आप खुद समझदार हैं।
2 टिप्पणियाँ
कुछ शायरी दिल्ली पर भी लिख दीजिए