भारत में जातिगत जनगणना। जातिगत जनगणना के फायदे और नुकसान। Caste Census

भारत में जातिगत जनगणना। जातिगत जनगणना के फायदे और नुकसान। Caste Census

जातिगत जनगणना का भारतीय राजनीति का एक चर्चित मुद्दा अब पूरा होने जा रहा है। भारत की जनगणना के साथ जातिगत जनगणना की मांग लम्बे समय से भारतीय विपक्षी पार्टियों द्वारा की जाती रही हैं। सत्ता पक्ष का जातिगत जनगणना पर क्या रुख है, इसे कभी स्पष्ट नहीं किया किन्तु कभी इसमें अपनी रुचि भा नहीं दिखाई। ऐसे में जातिगत जनगणना का मुद्दा अधिक चर्चित होता गया।
भारत में जातिगत जनगणना। जातिगत जनगणना के फायदे और नुकसान। Caste Census

जातिगत जनगणना के लेकर बुधवार यानी 30 अप्रैल, 2025 को भारत सरकार के केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि आज सरकार की राजनीतिक मामलों हुई कैबिनेट कमेटी की बैठक में सरकार ने जातिगत जनगणना कराए जाने का फैसला किया है। अश्विनी वैष्णव के ब्यान के बाद यह पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है कि भारत सरकार जातिगत जनगणना को लेकर स्पष्ट है। साथ ही अश्विनी वैष्णव ने बताया कि जातिगत जनगणना का कार्य जनगणना के साथ ही होगा।

जातिगत जनगणना का अर्थ -


जातिगत जनगणना का अर्थ है एक ऐसी जनगणना प्रक्रिया जिसमें देश या क्षेत्र की जनसंख्या को नागरिकों की जाति के आधार पर गिना और वर्गीकृत किया जाता है। यह जनगणना का हिस्सा होती है, जिसमें व्यक्तियों की सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय जानकारी के साथ-साथ उनकी जाति या उप-जाति से संबंधित डेटा भी एकत्र किया जाता है। 

भारत में अंतिम बार 1931 में जातिगत जनगणना हुई थी, उसके बाद एकबार फिर जातिगत जनगणना की शुरुआत होने जा रही है।

जातिगत जनगणना क्या है?


जातिगत जनगणना एक ऐसी विशिष्ट प्रक्रिया है जिसमें किसी देश या क्षेत्र की जनसंख्या की गणना करते समय उस क्षेत्र विशेष में निवास करने वाले लोगों की जाति या सामाजिक समूह के आधार पर भी जानकारी एकत्र करना होता है। साथ ही इस प्रक्रिया के दौरान किसी विशेष अथवा स्पष्ट जाति समूह के लोगों (जन) की संख्या का पता करना होता है। भारत में जनगणना प्रत्येक 10 वर्ष के अंतराल से होती होती है, जिसमें आमतौर पर जनसंख्या, लिंग, आयु, शिक्षा, रोजगार आदि के आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं। किंतु आने वाले समय में इसके अतिरिक्त जनगणना में इनके साथ-साथ प्रत्येक व्यक्ति की जाति या उप-जाति की जानकारी भी दर्ज की जानी है। इसी जानकारी को एकत्रित करने की प्रक्रिया जातिगत जनगणना कहलाती हैं।

जातिगत जनगणना का उद्देश्य जाति की जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए सामाजिक-आर्थिक नीतियां बनाना, आरक्षण लागू करना, और विभिन्न जातियों की स्थिति का आकलन करने में मदद करना है। भारत में 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान आखिरी बार पूर्ण जातिगत जनगणना हुई थी। इसके बाद, 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) की गई, लेकिन इसके आंकड़े पूरी तरह सार्वजनिक नहीं किए गए।

जातिगत जनगणना एक संवेदनशील और विवादास्पद मुद्दा है, क्योंकि कुछ लोग इसे सामाजिक समानता और नीति निर्माण के लिए जरूरी मानते हैं, जबकि अन्य इसे जातिवाद को बढ़ावा देने वाला मानते हैं।

जातिगत जनगणना के मुख्य उद्देश्य : -


भारत में जातिगत जनगणना किए जाने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हो सकते है। इन्हीं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने आजादी के बाद पहली बार जाती आधारित जनगणना का निर्णय लिया है।
  1. सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन : - विभिन्न जातियों की आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक स्थिति को समझना।
  2. नीति निर्माण : - सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने के लिए सरकारी योजनाओं और आरक्षण नीतियों को अधिक प्रभावी बनाना।
  3. संसाधन वितरण : - संसाधनों और विभिन्न सामाजिक, राजनैतिक और अन्य अवसरों का उचित आवंटन किया जाना। विभिन्न जातियों के मध्य अवसरों का सामाजिक सामंजस्य स्थापित किया जाना।
  4. जातिगत असमानताओं का अध्ययन : समाज में मौजूद असमानताओं को कम करने के लिए डेटा-आधारित उपाय करना।
जातिगत जनगणना के इसके अतिरिक्त उद्देश्य भी हो सकते है, जिनमें खासतौर से क्षेत्र विशेष में किसी जाति के सटीक आंकड़ों का पता लगाकर ऐसी नीतियों का निर्माण किया जाना जिससे विकास योजनाओं का लक्षित क्रियान्वयन किया जा सके। साथ ही जातियों को सरकारी योजना, नौकरी के अलावा राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी प्राप्त हो सके, जिससे सामाजिक न्याय की स्थापना की जा सके।

जातिगत जनगणना के फायदे -


भारत जैसे विशाल देश में जातिगत जनगणना के प्रमुख फायदे निम्नलिखित हैं।
  1. सटीक आंकड़ों पर आधारित नीति निर्माण – इससे सरकार को यह समझने में मदद मिलती है कि किन जातियों को किस क्षेत्र में मदद की जरूरत है।
  2. सामाजिक न्याय की स्थापना – पिछड़ी जातियों की वास्तविक स्थिति जानकर उन्हें आरक्षण, शिक्षा और रोजगार में सही लाभ दिया जा सकता है।
  3. वंचित वर्गों की पहचान – जो जातियां अब तक सरकारी योजनाओं से वंचित रही हैं, उन्हें चिन्हित कर लाभ पहुंचाया जा सकता है।
  4. संसाधनों का उचित वितरण – योजनाओं और फंड का वितरण जातिगत जनसंख्या के आधार पर अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
  5. राजनीतिक प्रतिनिधित्व में सुधार – इससे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि सभी जातियों को उचित राजनीतिक भागीदारी मिले।
  6. सामाजिक असमानता को कम करना – इससे समाज में व्याप्त असमानताओं की गहराई से पहचान होती है, जिससे सुधारात्मक कदम उठाए जा सकते हैं।
  7. शोध और अध्ययन में सहायक – समाजशास्त्री, नीति-निर्माता और शोधकर्ता जातिगत आंकड़ों के आधार पर समाज की संरचना को बेहतर समझ सकते हैं।
जातिगत जनगणना के उपर्युक्त सभी फायदे विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा बताएं जाते रहे हैं, उन्हीं को ध्यान में रखते हुए इन्हें सम्मिलित किया गया है। हालांकि इसके कुछ संभावित नुकसान भी हो सकते है, ऐसे में इस पहलू पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक हो जाता हैं।

जातिगत जनगणना के नुकसान


जातिगत जनगणना किए जाने से कुछ नुकसान या चुनौतियाँ निम्नलिखित हो सकते हैं।
  1. सामाजिक विभाजन को बढ़ावा – जातिगत पहचान को उजागर करने से समाज में जातिवाद की भावना और तनाव बढ़ सकता है।
  2. राजनीतिकरण की संभावना – राजनीतिक दल जातिगत आंकड़ों का उपयोग वोट बैंक की राजनीति के लिए कर सकते हैं, जिससे लोकतंत्र कमजोर हो सकता है।
  3. भेदभाव की आशंका – आंकड़ों के आधार पर कुछ जातियों को अधिक लाभ और दूसरों को कम मिलने से असंतोष और भेदभाव की भावना पैदा हो सकती है।
  4. गलत या भ्रामक डेटा – लोग जानबूझकर अपनी जाति गलत बता सकते हैं, जिससे आंकड़ों की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठता है। बिहार की जातिगत जनगणना के बाद यह देखने को मिला भी था।
  5. प्रशासनिक बोझ और लागत – जातिगत जनगणना करना तकनीकी रूप से जटिल और खर्चीला कार्य है, जिससे संसाधनों पर बोझ पड़ता है।
  6. गोपनीयता का हनन – जाति जैसी संवेदनशील जानकारी के लीक होने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे सामाजिक तनाव उत्पन्न हो सकता है।
  7. विकास बनाम पहचान – विकास के बजाय जातिगत पहचान को प्राथमिकता देने से समावेशी नीति निर्माण प्रभावित हो सकता है।
जातिगत जनगणना के समय लोगों द्वारा गलत या भ्रामक जानकारी देने से गलत जाति दर्ज होने की संभावना बढ़ जाती हैं। जिसके कारण राष्ट्र का अनावश्यक प्रशासनिक बोझ और अधिक खर्च बढ़ जाता हैं। दूसरी तरफ समाज में विकास की बजाय पहचान की राजनीति को बढ़ावा देखने को मिल सकता है। ऐसी राजनीति की उत्पत्ति हो सकती है जो सामाजिक एकता में बाधा बन सकती है। ऐसे संभावित नुकसान 5का भी अंदेशा लगाया जा रहा है।

जातिगत जनगणना के संबंध में अन्य प्रमुख तथ्य -

  • भारत में जातिगत जनगणना अंतिम बार 1931 में ब्रिटिश शासन के तहत पूर्ण रूप से की गई थी।
  • स्वतंत्रता के बाद, 1951 से जातिगत जनगणना बंद कर दी गई, और केवल अनुसूचित जाति (SC) व अनुसूचित जनजाति (ST) की गणना की जाती रही।
  • 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) की गई, लेकिन जाति से संबंधित आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए।
  • हाल ही में, बिहार ने 2023 में अपनी जाति-आधारित जनगणना कराई, जिसके परिणाम जारी किए गए।

निष्कर्ष -


जातिगत जनगणना एक ऐसा विषय है जो समाज की जमीनी सच्चाई को उजागर कर सकता है, लेकिन इसके साथ-साथ यह सामाजिक सामंजस्य को चुनौती भी दे सकता है। यदि इसे निष्पक्ष, गोपनीय और उद्देश्यपूर्ण तरीके से किया जाए, तो यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता हैं।

अन्य प्रश्न -


प्रश्न - जातिगत जनगणना को अंग्रेजी में क्या कहते हैं?

उत्तर - जातिगत जनगणना को अंग्रेजी में caste census कहते हैं 

प्रश्न - caste census meaning in hindi 

उत्तर - caste census को हिंदी में जातिगत जनगणना कहा जाता है, जिसका अर्थ क्षेत्र विशेष के लोगों की जातियों के अनुसार गणना किए जाने से है।

प्रश्न - caste census क्या होता है?

उत्तर -Caste census एक ऐसी जनगणना होती है जिसमें लोगों की जाति संबंधी जानकारी एकत्र की जाती है, ताकि सामाजिक और आर्थिक स्थितियों का मूल्यांकन किया जा सके।

प्रश्न - जातिगत जनगणना कब होगी?

उत्तर - भारत में जातिगत जनगणना की प्रक्रिया 2025 की शुरुआत में शुरू होने की संभावना है, और इसके आंकड़े 2026 तक प्रकाशित होने की उम्मीद है । हालांकि, जातिगत जनगणना को लेकर अभी तक कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया गया है ।

प्रश्न - caste census means kya hota hai?

उत्तर - Caste census का मतलब है जनगणना में लोगों की जाति से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करना।

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