राजस्थान की आटा-साटा प्रथा : विवाह तय करने की रीति। Aata-Sata Pratha

राजस्थान में विभिन्न प्रकार की प्रथाएं प्रचलन में हैं। सभी प्रथाओं का विभिन्न समाजों में अपना स्थान और महत्व है। ये सभी प्रथा संस्कृति का हिस्सा है तो कई प्रथा बरसों से चली आने के कारण आज भी प्रचलन में हैं। यह कोई स्पष्ट नहीं बता सकता है की कौनसी प्रथा कब से चल रही है और इसका आरंभ कैसे हुआ? क्यों हुआ और इसके क्या उदेश्य थे?

प्रथा पीढ़ियों से चली आ रही ऐसी परंपरा होती है जो लंबे समय तक व्यवहारिक रूप में रहने के कारण लोगों द्वारा अपना ली जाती है और स्थायी हो जाती है। प्रथा का कई पीढ़ियों से सतत पालन होने के कारण यह रिवाज का रुप बन जाती है, जिसके कारण लोग इसका पालन इस उदेश्य से करते हैं की य़ह पीढ़ियों से चल रही है जो हमारी पहचान है और हमारे अस्तित्व की निशानी।

आटा साटा प्रथा -


राजस्थान की विभिन्न जातियों में विवाह के लिए प्रचलित प्रथा है। इस प्रथा का संक्षेप में वर्णन किया जाए तो इसका अर्थ 'बेटी दो बहू लो' से है। आप समझ ही गए होंगे कि अगर किसी को अपने बेटे का रिश्ता तय करना है अथवा विवाह करना है तो पहले से स्थापित परंपरा (लंबे समय तक परंपरा का पालन करने से वह प्रथा का रूप ले लेती है, और स्थायी हो जाती है) है कि पहले आप अपनी बेटी का रिश्ता उस घर में तय कर दीजिए, जहां आपको अपने बेटे का विवाह या रिश्ता तय करना है।

आप समझ ही गए होंगे की 'लड़की के बदले लड़की' देने के रिवाज को आटा साटा प्रथा कहा जाता है। इस प्रथा में लड़के का पिता, भाई या अन्य रिश्तेदार जो भी लड़के का रिश्ता तय करता है तो बदले में लड़की के रिश्तेदार भी अपने लड़के के लिए लड़की की मांग करते हैं। ऐसे में भाई-बहन का रिश्ता एक ही घर में इस उदेश्य से तय होता है कि दोनों घरों के लड़कों का रिश्ता तय हो जाए। कभी-कभी लड़के का रिश्ता तय करने के लिए उसकी भतीजी, भांजी या अन्य किसी रिश्तेदार की लड़की भी दी जाती है। इस प्रकार की शादी का चलन पीढ़ियों से चला आया है।

आटा साटा का केस -


रोशनी नगर के रहने वाले किसान बाबू राम के लड़के की उम्र 20 बरस की हो गई, उसके लिए कोई रिश्ता नहीं आया। जिया लाल को अपने पुत्र मंगनी राम के लिए कोई रिश्ता नहीं आने से चिंता होने लगी। बाबू लाल ने कई जगह अपने पुत्र की शादी के लिए बात चलाई लेकिन कोई बात नहीं बनी। कोई सरकारी नौकरी की मांग करता तो कोई स्थायी व्यवसाय की। जिससे भी बात होती एक ही बात कहते आपका पुत्र किसानी का कार्य करता है, ऐसे में रिश्ता तय नहीं हो सकता है। जब बाबू लाल बूरी तरह से थक गया तो अपने परिचित लोगों को रिश्ते के लिए कहने लगा। जब परिचितों ने बात आगे बढ़ाई तो सामने एक ही बात आई हम हमारी बेटी का रिश्ता बाबू लाल के बेटे से कर सकते हैं लेकिन बदले में हमे भी हमारे बेटे के लिए रिश्ता चाहिए।

यह बात बाबू लाल को बताई की आपके बेटे का रिश्ता पड़ौस के गॉव में हो सकता है, लेकिन बदले में उन्हें भी अपने बेटे के लिए लड़की चाहिए। यह सुनकर बाबू लाल के मुँह का रंग फीका पड़ने लगा, उसे लगा यह तो आटा साटा है ऐसा रिश्ता वो भी करेगा। लेकिन ईन बातों में दो वर्ष का समय बीत गया। उसके पुत्र मंगनी राम की उम्र 22 साल की हो गई, कोई रिश्ता तय नहीं हुआ। अब कई रिश्ते की बात तो होती लेकिन इस वज़ह से आगे नहीं बढ़ पा रही थी की सामने वाले (लड़की वालों) साफ बोल देते लड़की के बदले में हमे भी लड़की चाहिए। लेकिन बाबू लाल की उलझन अलग थी उसके पास कोई लड़की नहीं थी। आखिर में बाबू लाल के साले ने अपनी लड़की मंगनी राम के विवाह के आटे में देने की बात स्वीकार की तो मंगनी राम का विवाह हुआ। एक साल बाद बाबू लाल के साले ने भी अपनी लड़की का विवाह मंगनी राम के साले से कर दिया।

आटा साटा के कारण -


जैसा की आपको पूर्व में ही बता दिया कि आटा-साटा एक प्रथा है, जो सदियों से चली आ रही है। इसके कई कारण तब भी रहे होंगे और आज भी कुछ कारण है, जिसकी वज़ह से आज भी प्रचलन में हैं। आइए कुछ कारणों की चर्चा करते हैं, लेकिन आप ध्यान रखे कारण सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के है -
  • घटती ल़डकियों की जनसंख्या - आज किसी भी प्रदेश जा आंकड़ा उठाकर देख लीजिए 50 साल पहले के मुकाबले में लड़कियों की (प्रति 1000 लड़कों) जनसंख्या कम हो रही है। राजस्थान और हरियाणा में लड़कियों की जनसंख्या प्रति 1000 के मुकाबले 800 के आसपास आ गई है। 2021 की जनगणना अब तक हुई नहीं है, ऐसे में आंकड़ा आया नहीं है लेकिन विभिन्न सर्वे एजेंसी बता रही है कि 0-14 वर्ष की आयु में और अधिक गिरावट देखने को मिल सकती है, ऐसे में बहू लाना मुश्किल काम हो रहा है, तो व्यक्ति लड़की के बदले लड़की चाहते हैं, जिसके कारण अब बेमेल आटा साटा भी देखने को मिल जाता है। अगर लड़कियों की जनसंख्या यूँ ही घटती रही तो आने वाला समय और भी अधिक आटा साटा को कुरुप बनाता जाएगा। 
  • अपने लड़के के विवाह के लिए निश्चिंत होना - लड़कियों की घटती जनसंख्या के बीच वो परिवार जिनके पास लड़किया है, अपने लड़के के विवाह के लिए निश्चिन्त होना चाहते हैं लड़की के बदले में लड़की लेकर। परिवारो और समाज की इस तरीके निश्चिन्तता के चलते आटा साटा पहले से अधिक बढ़ने के साथ विकराल हो गया है। 
  • दहेज का झंझट खत्म - इसे आप आटा साटा का मुख्य लाभ भी कह सकते हैं। आटा साटा में भाई बहन दोनों का रिश्ता एक ही परिवार में होने से दहेज का दबाब समाप्त हो जाता है। अगर एक पक्ष दहेज के लिए दबाव बनाता है तो दूसरा पक्ष भी दहेज के लिए दबाब बना सकता है, ऐसे में दोनों एक-दूसरे का दबाव समझ दहेज के लिए लड़की को प्रताड़ित नहीं कर सकते हैं। हो सकता है इसी मूल भाव को केंद्र में रखते हुए आटा साटा की शुरुआत हुई हो जो आज भी चल रही हो। हर कोई इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हो सकता है, किंतु दहेज से सम्बन्धित को मामले दर्ज हो रहे हैं वो तो यही बता रहे हैं कि दहेज एक विकराल समस्या बन गई है समाज के सामने। 
  • रिश्ते में रिश्ता - यह तो हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि 'लड़की पराया धन है' इसका अर्थ यह नहीं की लड़की किसी को भी दे दी जाए। कहीं भी लड़की का रिश्ता कर देना लड़की को मौत से मिलाने जैसा हो सकता है, ऐसे में आटा साटा रिश्ते में रिश्ता है, जो लड़की के भविष्य को कुछ हद तक सुकून देने वाला है, अगर एक पक्ष लड़की को प्रताड़ित करता है तो दूसरा पक्ष यह कहकर उसे शांत करा सकता है कि मत भूलों आपकी बेटी भी हमारे परिवार में आती है। 
  • परिवार के प्रति अधिक समर्पण - आजकल परिवारो में बुजुर्ग सदस्यों की दुर्दशा हो रही है, उसका कारण सही जगह रिश्ते नहीं किया जाना। आटा साटा प्रथा मे बहू अपने ससुराल पक्ष के प्रति अधिक समर्पित होती है, जिसका कारण 'एक हाथ लो दूसरे हाथ दो' जैसा हैं। इस भाव के चलते बहू में इस बात का संकोच रहता है अगर उसने अपने सास ससुर के साथ बुरा बर्ताव किया तो उसके माता पिता के साथ भी ऐसा ही व्यवहार होना है। इस बात को नकारने वाले इसे संस्कार से जोड़ सकते हैं किन्तु सत्यता यह भी है 'भय बिन प्रीत कहाँ?' 
  • अत्याचार मे कमी - अदला बदली का रिश्ता कई बदले के भाव से भरा हुआ होता है। अगर कोई व्यक्ति जिसका विवाह आटा साटा से हो रखा है तो अपनी पत्नी को प्रताडित करने से पहले अपनी बहन के बारे में जरुर सोचता है, उसे इस बात का एहसास होता है जैसा व्यवहार वो पत्नी के साथ रखेगा वैसा ही व्यवहार उसकी बहन के साथ होना है। पुराने ज़माने में महिलाओ पर होने वाले अत्याचार में कमी के उदेश्य से ऐसे रिश्ते तय किए जाते थे, वर्तमान में भी आटे साटे का यह उदेश्य हो सकता है। धन मिले या ना मिले सुख तो मिले उदेश्य को ध्यान में रख ऐसे रिश्ते तय किए जाते हैं। 
  • भविष्य में संपति के लिए पारिवारिक कलह का ना होना - आजकल कई परिवार संपति विवाद के दंश को झेल रहे हैं। बहन ही अपने भाई पर संपति का मुक़दमा दर्ज कर देती है, ऐसे मुकदमों का उदेश्य कुछ भी हो लेकिन भाई और बहन दोनों को कोर्ट कचहरी के चक्कर में भारी भुगतान करना होता है। आटा साटा में ऐसे मुकदमे इसलिए नहीं होते क्योंकि एक पक्ष ने मुक़दमा किया तो दूसरा भी कर देगा। 

आटा साटा सदियों से चली आ रही प्रथा है। इसकी शुरुआत महज लड़के के विवाह तक सीमित नहीं थी, लड़की का भविष्य भी ध्यान में रखा जाता था, तो लड़के के परिवार द्वारा अपना हित भी। कई बार किसी परिवार में नई वधु आती है तो अपनी ननद का रिश्ता अपने भाई से कराने का दबाब भी बनाती है जो देखने में आटा-साटा लगता है लेकिन होता नहीं है। ऐसे कई कारण होते हैं, जो ऐसे रिश्तों को बढावा देते हैं। 

क्या आटा साटा कोई कुरीति है?


देश का मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग सदियों से चली आ रही प्रथा को कुरीति ठहराते रहते हैं। कई बार आटा-साटा को तलाक का जिम्मेदार ठहराया जाता है। कई लोग आटा-साटा को लड़कियों की आत्महत्या करने का जिम्मेदार ठहराते है। याद आता है कि नागौर में एक लड़की द्वारा आटा-साटा को जिम्मेदार मान कुए में कूदकर आत्महत्या कर ली थी। उसने आत्महत्या करने के पूर्व एक लेख लिखा और बताया की कैसे इस कुरीति ने उसकी जिन्दगी को नर्क बना दिया है, वो जीना नहीं चाहती है इसलिए आत्महत्या कर रही है। इस मामले के बाद मीडिया के साथ विभिन्न सोशल साइट्स पर प्रथा पर तीखी आलोचना देखने को मिली। 

हालांकि आंकड़ों की बात की जाए खासतौर से राजस्थान में महिला उत्पीड़न और आत्महत्या की तो उसमे आटा-साटा देखने को नहीं मिलता है दहेज हत्या के मामले अन्य प्रकार के मामलों की तुलना में अधिक देखने को मिलते हैं, जिस आप नीचे की टेबल में देख सकते हैं। 
 
उपर्युक्त आंकड़े राजस्थान राज्य के गृह विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं। आंकड़ों के मुताबिक दहेज हत्या सर्वाधिक है। पति और रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के मामले भी प्रतिवर्ष बढ़ रहे हैं। इन आंकड़ों के आटा-साटा का कोई मामला देखने को नहीं मिल रहा है। 

अगर बिखरते परिवारो की बात की जाए तो सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश बी आर गवई और संजय करोल की बेंच मान चुकी है कि अरेंज मैरिज के मुकाबले में लव मैरिज अधिक असफल है और रिश्ते ज्यादा टूट रहे हैं। इस बात से स्पष्ट है कि आटा-साटा अरेंज मैरिज हैं जो लव मैरिज के मुकाबले में अधिक सफल और स्थायी है। 

क्यो होती है आटा साटा की आलोचना?


आटा-साटा को कुरीति के रुप में प्रचारित कर जिसकी जो आलोचना हो रही है वो पूर्णतः व्यर्थ नहीं है इसके कुछ कारण है, जो इसे कुरीति बना रहे हैं, जो निम्नलिखित है - 
  • कई बार अधिक आयु के लड़के से विवाह - कई बार अदला बदली में ऐसे रिश्ते तय हो जाते हैं, जिसमें लड़की के मुकाबले में लड़के की आयु अधिक होती है। जब लड़के की आयु अधिक होती है तो कई लड़कियां इसका विरोध भी करती है तो कई जहर का घूंट पी लेती है। सर्वथा अधिक आयु के लड़के नहीं होते हैं लेकिन कभी-कभी ऐसे रिश्ते तय हो जाते हैं जो उपयुक्त नहीं होते हैं। 
  • बाल्यकाल में रिश्ते तय कर देना - कई बार बालिकाओं के बाल्यकाल में रिश्ते तय हो जाते हैं, जो रिश्ते बाल्यावस्था में तय होते हैं वो कई बार पद और प्रतिष्ठा के बदल जाने के बाद या किसी परिवार के पिछड़ जाने के बाद आगे निकल जाने वाले को बराबरी के नहीं लगते। ऐसे ही कई बार बालिकाएं पढ़ लिख लेती है और लड़के अनपढ़ ही रह जाते हैं या विपरीत। दोनों ही अवस्था में एक पक्ष इस रिश्ते को स्वीकार करने को तैयार नहीं होता परिणामस्वरूप आटा-साटा दुखदायी हो जाता है। 
  • रिश्ते के बाद मनमुटाव का होना - कई बार रिश्ता तय तो हो जाता है लेकिन किसी कारणवश दोनों परिवारो में कोई मनमुटाव हो जाता तो इसका प्रभाव रिश्ते पर भी आता है। 

आटा-साटा का रिश्ता परिवारो द्वारा समाज के मध्य तय होता है ऐसे में रिश्ता तो दो परिवारो की सहमति मात्र से तय हो जाता है किन्तु इसे तोड़ना दो परिवारो तक सीमित नहीं रहता है जिसके कारण दोनों परिवारो और वर वधु की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। ना चाहते हुए भी रिश्ता निभाना होता है, जब बेमन जो रिश्ते जिंदगी भर निभाए जाए वो व्यक्ति के मन और जीवन पर बोझ बन जाते हैं। ऐसा बोझ कुरीति नहीं होगा तो क्या होगा? 

निष्कर्ष -


आटा-साटा का रिश्ता एक तरफ परिवार के लड़के के विवाह को सुनिश्चित करता है जिसके कारण उन घरों के लिए वरदान है, जिनके घर लड़की पैदा हुई है। ऐसे में लड़की किसी और के परिवार के वंश को आगे बढ़ाने के साथ ही आपने पिता के परिवार का अस्तित्व रखने में भी अहम भागीदारी निभाती है। ऐसे तय होने वाले रिश्ते समाज और परिवार को बेटी के अस्तित्व और महत्व का पाठ पढ़ाते हैं। आज सरकार बेटी बचाने के लिए कई योजनाएं संचालित कर रही तो समाज भी एक योजना का संचालन कर रहा है, बेटी नहीं बचाओगे तो बहू कहाँ से लाओगे? 

ऐसे रिश्ते तय करने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है तो इसे रोका जाना आपके और हमारे वश में नहीं है। समाज भी आज चाहकर इसे पूरी तरह से समाप्त तो नहीं कर सकता, किन्तु इतना तो अवश्य कर सकता है कि रिश्ते तय करते समय लड़के और लड़की की उम्र का ख्याल रखे ताकि जोड़ी बेमेल नहीं लगे और उम्र को लेकर किसी प्रकार का मनमुटाव ना हो। साथ ही मनमुटाव की स्थिति में समाज को भी थोड़ी ढील देनी चाहिए। 

वर्तमान समय में लड़कियों की घटती जनसंख्या चिंताजनक विषय है। लड़कियों के पास लड़कों के मुकाबले में अधिक विकल्प है। ऐसे में समाज को उनके अस्तित्व और उनके महत्व को समझना चाहिए। उनके पास भरपूर विकल्प के बावजूद उन्हें देखती आँखों के कुए में नहीं धकेलना चाहिए। सभी को महिलाओं का सम्मान करना चाहिए साथ ही लड़की को भी अपने ससुराल और ससुराल के लोगों को दिल से अपना मान कर्म करना चाहिए ताकि लोगों में बढ़ती दूरीयो को कम किया जा सके और चली आ रही परंपरा का भी निर्वाह किया जा सके। 

अन्य प्रश्न -


प्रश्न - आटा साटा प्रथा क्या है?

उत्तर - आटा-साटा लड़की के बदले लड़की यानी किसी लड़के (वर) का विवाह किसी लड़की (वधु) से किए जाने पर लड़के (वर) की बहन या कोई रिश्तेदार की लड़की का लड़की (वधु) के भाई से विवाह या रिश्ता तय कर दिया जाना है। इसे आप संक्षेप में बेटी दो और बहू लाओ कह सकते हैं। 

प्रश्न - आटा साटा प्रथा कहाँ पायी जाती है?

उत्तर -आटा-साटा प्रथा राजस्थान में पायी जाती है। 

प्रश्न - लड़की के बदले लड़की देने की प्रथा क्या कहलाती है?

उत्तर -लड़की के बदले लड़की यानी किसी लड़के की शादी करने के लिए लड़की के भाई को भी लड़की देने की प्रथा को आटा-साटा प्रथा कहा जाता है। 

प्रश्न - क्या आटा साटा में विवाह अनपढ़ लड़के से होता है?

उत्तर -आटा-साटा प्रथा मे किसी लड़की का विवाह किसी अनपढ़ लड़के से ही हो यह आवश्यक तो नहीं है। ऐसा देखने को मिल सकता है, इस कारण इसकी आलोचना करने वाले इसे अनपढ़ लड़के से विवाह की बात कहकर आलोचना करते हैं। 

प्रश्न - आटा साटा में क्या वृद्ध व्यक्ति से विवाह कराया जाता है?

उत्तर - आटा-साटा प्रथा में विवाह वृद्ध से ही होता है ऐसा निश्चित नहीं है किंतु इसके आलोचक प्रति हजार एक मामला इस प्रकार का ढूंढ कर इसकी आलोचना जरूर करते हैं। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ