गोडावण: राजस्थान का राज्य पक्षी Godawan Rajasthan ka Rajya Pakshi

गोडावण को भारतीय तिलोर, सोहन चिरैया, हूकना, सोहन चिड़िया, माल मोरड़ी, तुकदार, येरभूत, घोराड़, मल्धोक, गुरायिन और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian Bustard) आदि नामों से जाना जाता है। जितने इस पक्षी के नाम समान्य भाषा में ठीक उसी प्रकार इसका वैज्ञानिक नाम अर्डियोओटिस/अर्देओटिस नाइग्रिसेप्स (Ardeotis nigriceps) हैं। इनका जीव वैज्ञानिक कुल ओटिडाए (Otididae), गण - नवीन चर्खिया या ओटिडिफोर्मीस (Otidiformes) है, इस गण का यह एकमात्र पक्षी है, जो भारतीय महाद्वीप के राजस्थान प्रांत में पाया जाता है तथा गोडावण का वंश अर्डियोओटिस  (Ardeotis) है। 


गोडावण बेहद शर्मिला पक्षी है, जो घास के मैदानों में पाया जाता है। दिन के उजाले मे य़ह घास मे छुपा रहता है तथा रात में जमीन पर विश्राम करना पसंद करता है। जैसलमेर का मरूभूमि राष्ट्रीय उद्यान कि सेवण घास इन्हें पारिस्थितिकी तंत्र में ढालने में सहयोग करती हैं। यह पक्षी उड़ सकता है, किंतु यह चलना अधिक पसंद करता है। अपनी शारीरिक बनावट से यह शुतुरमुर्ग से समानता रखता है, लेकिन उड़ने वाले पक्षियों में सबसे वजनी पक्षी के रूप में अपनी पहचान भी रखता है। 


हाल ही में यह पक्षी गोडावण भारत के सीमावर्ती देश पाकिस्तान के इलाके में भी नजर आया था, जो अंतर्राष्ट्रीय चर्चा का विषय भी रहा। पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि राजस्थान के डेजर्ट नैशनल पार्क (जैसलमेर) में पाया जाने वाला यह विशालकाय पक्षी अंतर्राष्ट्रीय सीमा को पार कर पाकिस्तान के चोलिस्तान के रेगिस्तान में चला गया। लुप्तप्राय होती विशालकाय कि प्रजाति पाकिस्तान में नजर आना पक्षी विशेषज्ञों ने अधिक सुकून भरी खबर के रूप में नहीं देखा, क्योंकि यह इलाका गोडावण के मूल इलाके से अधिक दूर नहीं है। 

गोडावण (Godawan) कि पहचान - 


सोहन चिरैया अथवा गोडावण भूरे रंग का होता है, जिसके पंखों पर काले, भूरे और स्लेटी रंग के निशान होते हैं। इसकी गर्दन शुतुरमुर्ग कि भाँति लंबी और हल्की भूरे रंग कि होती है, नर कि गर्दन मादा से अधिक सफेद होती हैं। चोंच छोटी होती है तथा माथे पर गहरे स्लेटी रंग का जो काले रंग सा नजर आने वाला किरीट (मुकुट) होता है, जबकि मादा में यह किरीट नर कि अपेक्षाकृत छोटा या होता ही नहीं है। इसकी टांगे लंबी और मज़बूत होती है, जिसके कारण यह तेजी से दौड़ सकता है। टांगों कि मजबूती के कारण ही यह पक्षी उड़ने कि बजाय दौड़ने में अधिक विश्वास करता है। 

एक वयस्क नर गोडावण पक्षी मादा से अधिक विशाल और मजबूत होता है, इसी कारण एक वयस्क नर गोडावण कि लंबाई 110-120 सेंटीमीटर (43-47 इंच) तथा मादा कि लंबाई 90-95 सेंटीमीटर (लगभग 36-37 इंच) होती है। व्यस्क नर का भार 8-18 किलोग्राम होता है तो मादा का वजन 3.5 से 6.75 किलोग्राम होता है। इनकी ऊंचाई 1 मीटर से 1.2 मीटर होती है। इनकी औसत उम्र  सीमा 14-15 वर्ष होती हैं। इसके पंखों का फैलाव 210-250 सेंटीमीटर होता है। 

गोडावण का प्रजनन और घोंसले - 


गोडावण प्रजाति में प्रजनन हेतु ब्रीडिंग का समय मार्च से अक्तूबर तक का होता है। आमतौर पर प्रजनन अगस्त में होता है। इनका ब्रीडिंग काल 3 महीने का होता है, अनुकूल परिस्थितियों को देखकर ही मादा गोडावण प्रजनन के लिए तैयार होती है। सामन्यतः मादा 1 अंडा देती है, लेकिन वर्ष 2020 में राजस्थान में टिड्डी दल के हमले के बाद इन्हें अत्यधिक प्रोटीन युक्त खाना मिलने से कई वर्ष बाद कई मादाओं ने 2-2 अंडे दिए, ऐसे में कहा जाता है कि गोडावण ब्रीडिंग काल के साथ परिस्थितियों के अनुसार अंडे देती और प्रजनन के लिए खुद को तैयार करती है। 


वर्तमान में घट रही इनकी आबादी को देखते हुए सरकार इनके सरंक्षण के लिए कई कदम उठा रही है। 2019 में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, राजस्थान वन विभाग और भारतीय वन्य-जीव संस्थान कि ओर के सहयोग से गोडावण कंजर्वेशन ब्रीडिंग सेंटर की शुरुआत की गई। राजस्थान में पहला प्रजनन केंद्र सोरसन (बारां) तथा दूसरा रामदेवरा, जैसलमेर (सम तहसील सुदासरी) में स्थापित किया गया। 

राजस्थान वन विभाग कर्मचारी मादा गोडावण द्वारा भूमि पर दिए गए अंडे घोंसले से निकाल प्रजनन केंद्र (हेचिंग सेन्टर) ले आते हैं, जहां मशीन से सिकाई की जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि घोंसले में मादा पंखों से सिकाई करती है, किंतु कई बार शिकारी अंडे खा जाते हैं, ऐसा नहीं हो इसलिए घोंसले से अंडे निकाल कृत्रिम सिकाई कर नवजात पैदा किए जाते हैं। अंडे से नवजात चूजे के निकलने में एक महीने का समय लगता है। नवजात पैदा होने के एक वर्ष बाद तक प्रजनन केंद्र में रखा जाता है, उसके बाद जंगल में छोड़ दिया जाता है। इसके कारण प्रति अंडे नवजात पैदा होने के साथ ही जिवित रहने कि संभावना बढ़ी है। पक्षी-विशेषज्ञों को उम्मीद है कि कृत्रिम प्रजनन से संख्या में वृद्धि होगी, क्योंकि कभी-कभार यह भी देखने को मिला है कि जब मादा को घोंसले में अंडा नहीं मिलता है तो वो दूसरा अंडा दे देती है। 


नर पक्षी ब्रीडिंग के दिनों में मादा को आकर्षित करने के लिए नर एक झुंड में एकत्रित होते हैं, उस झुंड को 'लेक' कहा जाता है। मादा को आकर्षित करने के लिए नर गर्दन के साथ शरीर के सफेद पंखों को फूला देता है। इससे उसके सिर का किरीट अधिक फूल जाता है, और शरीर पर काले रंग कि पट्टी पड़ जाती है। लेक में नर अपने प्रतिद्वंद्वी नर से अकड़ता है, छलांगे लगता है और प्रतिद्वंद्वी कि गर्दन दबाकर अपने कौशल को प्रदर्शित करता है। साथ ही अपनी जीभ के नीचे पायी जाने वाली (जो खुल कर बाहर आ जाती है) गुलर कि थैली को फूलाता है, जो फूलकर बाहर आ जाती है और गर्दन तक लटक जाती है। इसके साथ पूंछ के पंखों को पीठ पर मोड़कर जोर-जोर से आवाज करता है। गोडावण पक्षी जमीन पर आराम करना अधिक पसंद करता है, जिसके कारण यह अपना घोंसला भी जमीन पर बनाते हैं। मादा जमीन पर ही अंडे देती है, और अकेले ही अंडे को सेती है। जमीन पर ही ऐसी जगह को चुनते हैं, जहां शिकारी आसनी से नहीं पहुँचे। अ

गोडावण का आहार - 


गोडावण सर्वहारी पक्षी है। यह घास, अनाज के साथ कीट-पतंगों को भी खा जाता है। राजस्थान में यह मुख्यतः गेंहू, ज्वार, बाजरा, मूंग, मोठ आदि अनाज के साथ सेवण घास को शौक से खाता है, इसके साथ कीट भी खाता है। साँप, बिच्छू, छिपकली आदि के साथ टिड्डी को भी खा जाता है। जामुन, बैर, मूंगफली के साथ फली वाली फसलों को भी आसानी से खा सकता है। यह बिना पानी के भी कई दिन तक जिवित रह सकता है, कुछ अध्ययन तो यह तक बताते हैं कि यह अपनी गर्दन ऊपर कर हवा से भी पानी सोख लेता है। 

गोडावण के अन्य नाम और नामकरण के कारण - 


इंडियन ग्रेट बस्टर्ड इसका नामकरण भारतीय महाद्वीप में पाए जाने के साथ विशालकाय शरीर के कारण रखा गया। सोहन चिरैया या सोहन चिड़िया इसके सुनहरे पंखों और शरीर के स्लेटी रंग के कारण रखा गया। यह बादल गरजने के साथ बाघ के गुर्राने के आवाज निकाल सकते हैं इसलिए इसे 'गुरायिन' कहते हैं। हूंक कि आवाज निकालने के कारण इसे हूकना, मोर कि भाँति किरीट से माल मोरड़ी, घोड़े कि तेजी से दौड़ने से घोराड़ तो महाराष्ट्र में हूक को हूम उच्चारित करने से हूमना भी कहा जाता है। इनकी आवाज को 500 मीटर तक सुना जा सकता है। 

राष्ट्रीय पक्षी का प्रस्ताव और राज्य पक्षी - 


भारत का जब राष्ट्रीय पक्षी चुना जा रहा था, उस समय पक्षीविद् सलीम अली ने गोडावण को राष्ट्रीय पक्षी बनाने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन समिति ने उनके प्रस्ताव को इसलिए स्वीकार नहीं किया क्योंकि इसका नाम अंग्रेजी भाषा में था। वर्ष 1981 मे गोडावण को राजस्थान राज्य का राज्य पक्षी चुना गया। 

अस्तित्व संकट - 


गोडावण को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति और प्राकृतिक संसाधन सरंक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature - IUCN) ने लाल डेटा पुस्तिका (Red Data Book) कि रेड लिस्ट में रखा हुआ है। इनकी जनसँख्या तेजी से घट रही है, इसलिए यह विलुप्ति कि कगार पर आ गया है। इनकी जनसंख्या के 5 दशकों के आंकड़ों को देखा जाए तो इनके अस्तित्व संकट को आसानी से समझा जा सकता है। इनकी आबादी वर्ष 1969 में 1960, 1978 में 745 थी जो 2001 में 600 हो गई। 2006 में 300 थी जो 2018 में घटकर मात्र 150 रह गई। 

गोडावण कि जनसंख्या के घटने के कुछ कारण इस प्रकार हैं - 

  • शिकार - इनके शिकार कि ख़बरें समय-समय पर आती रही है। इस कारण शिकार को प्रमुख रुप से इनकी घटती आबादी के लिए जिम्मेदार माना जाता रहा है। 
  • घटते हुए चारागाह - राष्ट्रीय मरूभूमि उद्यान में घटते हुए घास के मैदानों के कारण पाकिस्तान की तरफ जा रहे हैं, तो साथ ही पौष्टिक आहार कि कमी से कुत्ते और अन्य जानवर आसानी से शिकार भी कर रहे हैं। 
  • विद्युत तार - इनके निवास स्थलों के क्षेत्रो में तथा आसपास के क्षेत्रो में पिछले कुछ वर्षों में अत्यधिक विद्युतीकरण होने से यह बिजली के तारो में उलझकर अपनी जान गँवा रहे हैं।
  • कीटनाशक - खेतों में किसानो द्वारा किए जाने वाले कीटनाशक को खा लेने के साथ कीटनाशक से मरे हुए जीवों के भक्षण और कीटनाशक युक्त अनाज खाने से भी इनकी मौत हो रही है। 
  • अंडों का शिकारगोडावण के अंडों को गोह (बडी छिपकली), कौवों, गिद्ध, भेड़िया कुत्ता एवं  नेवलों से भी बड़ा खतरा रहता है। ऐसे में नई प्रजाति उत्पन्न होने से ही रह जाती है। 
  • खनन क्षेत्रो के ब्लास्ट - इनके चारागाह के नजदीक खनन कार्यो के लिए किए जाने वाले ब्लास्ट से ये डरकर दूर भागने का प्रयास करते हैं, जिससे कई बार दुर्घटना से तो कई बार आवासीय इलाक़ों में कुत्तों द्वारा शिकार से मृत्यु हो रही है। 

गोडावण संरक्षण के प्रयास - 


वर्तमान में तेजी घटती सोहन चिड़िया (राजस्थान के राज्य पक्षी) कि जनसंख्या को लेकर अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, भारत सरकार और राजस्थान सरकार काफी गंभीर है। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति और प्राकृतिक संसाधन सरंक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature - IUCN) ने लाल डेटा किताब कि रेड पुस्तिका रख संरक्षित करने के प्रयास कर रहा है। इसके विलुप्ति कि कगार पर होने के कारण भारत सरकार नें भी इसे वन्यजीव अधिनियम 1972 कि अधिसूची 1 में शामिल कर संरक्षित करने का प्रयास कर रही है। वन्यजीव अधिनियम, 1972 कि धारा 9 सी के अंतर्गत गोडावण का शिकार करने वाले व्यक्ति को 10 वर्ष की सजा और 25000 जुर्माना देना होता है।


राजस्थान सरकार नें वर्ष 2013 में 'ग्रेट इंडियन बस्टर्ड प्रोजेक्ट' शुरु किया। जो 2017 में पुनः संशोधित कर प्रजनन केंद्र विकसित किए गए। कृत्रिम प्रजनन केंद्र से अंडों से सुरक्षित चूजे निकालने के बाद 1 साल के होने के बाद (सामन्यतः मादा 1 वर्ष बाद चूजे को अलग कर पुनः प्रजनन के लिए तैयार होती है और नर चूजा 5 साल में प्रजनन योग्य वयस्क होता हैं और मादा 4 वर्ष में वयस्क होती है।) जंगल में छोड़े जाते हैं। साथ ही जिवित गोडावण संरक्षित करने के लिए सेटेलाइट टैग लगा कर इनकी गतिविधियों पर ध्यान रख इन्हें शिकार होने से बचाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। साथ ही सेटेलाइट कि मदद से प्रजनन काल में बेहतर सुरक्षा दी जा सके साथ ही अंडों को आसानी से एकत्रित कर कृत्रिम प्रजनन केंद्र भिजवा इनके कुनबे को बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। 

कहाँ मिलते हैं? गोडावण

कई साल पहले गोडावण 11 राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और ओडिशा राज्यों में पाए जाते थे। वर्तमान में, केवल 6 राज्यों राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में ही बचे हुए हैं। राजस्थान में जैसलमेर जिले के राष्ट्रीय मरूभूमि उद्यान, सोरसन (बांरा) और अजमेर के शोकलियां में बचे हुए हैं। 

राजस्थान के जैसलमेर जिले में 'मरुस्थल राष्ट्रीय उद्यान' के अतिरिक्त इन सभी उद्यानों में भी गोडावण देखने को मिलते हैं, जो निम्नलिखित है - 

  • महाराष्ट्र का ग्रेट इंडियन बस्टर्ड सैंक्चुअरी
  • गुजरात का कच्छ बस्टर्ड अभयारण्य
  • आंध्र प्रदेश का रोलापाडु वन्यजीव अभयारण्य
  • गुजरात का गागा वन्यजीव अभयारण्य

विशेषसंयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूएनईपी (United Nations Environment Programme - UNEP) में विश्व के 138 देश भाग लेते हैं। वर्ष 2020 मे यूएनईपी की बैठक गांधीनगर गुजरात में हुई थी। जिसका शुभंकर चिन्ह गोडावण रखा गया। इस कार्यक्रम में संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोडावण के संरक्षण प्रोजेक्ट पर प्रकाश डाला। इसके संरक्षण को लेकर किए गए कार्यों की प्रशंसा की थी। यह  डेजर्ट नैशनल प्रोजेक्ट (डीएनपी) के लिए गौरव का क्षण था।


आवश्यक प्रश्न -

प्रश्न : राजस्थान का राज्य पक्षी कौनसा है?

उत्तर : गोडावण, सोहन चिरैया।

प्रश्न : गोडावण का वैज्ञानिक नाम क्या है?

उत्तर: इसका वैज्ञानिक नाम अर्डियोओटिस/अर्देओटिस नाइग्रिसेप्स (Ardeotis nigriceps) है। 

प्रश्न : गोडावण प्रजनन केंद्र कहाँ स्थित है?

उत्तर: गोडावण प्रजनन केंद्र सोरसन और रामदेवरा में स्थित है। 

प्रश्न : गोडावण कि संख्या कितनी है?

उत्तर: पक्षी जनगणना 2018 के अनुसार 150 गोडावण है। 

प्रश्न : गोडावण की ऊंचाई कितनी होती है? Godawan ki unchai kitni hoti hai? 


उत्तर: एक वयस्क गोडावण की ऊंचाई लगभग 40 से 48 इंच (1 मीटर से 1.2 मीटर) की होती है है। 

प्रश्न : गोडावण को राजस्थान का राज्य पक्षी कब घोषित किया गया? 

उत्तर: वर्ष 1981 मे गोडावण को राजस्थान का राज्य पक्षी घोषित किया गया।

प्रश्न : गोडावण के पंख कैसे होते है?

उत्तर: गोडावण के पंख हल्के भूरे (पीले) रंग के होते हैं जिनमे काले धब्बे होते है। 

प्रश्न : राजस्थान का सबसे बड़ा पक्षी कौनसा है?

उत्तर: गोडावण राजस्थान का सबसे बड़ा पक्षी है। 

प्रश्न : गोडावण राजस्थान का राज्य पक्षी क्यों है?

उत्तर: गोडावण विलुप्त होती प्रजाति का पक्षी है, इस विलुप्त होती प्रजाति को संरक्षण देने के लिए 1981 में इसे राजस्थान का राज्य पक्षी चुना। 

प्रश्न : गोडावण हैचिंग सेंटर (केंद्र) कहाँ स्थित है?

उत्तर: गोडावण प्रजनन केंद्र और हैचिंग सेंटर रामदेवरा में स्थित है। 

प्रश्न : गोडावण संरक्षण के लिए कौनसा पार्क बनाया गया है, जो कहाँ स्थित है?

उत्तर: गोडावण संरक्षण के लिए राष्ट्रीय मरु उद्यान, जैसलमेर बनाया गया। जो राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर जिले में फैला हुआ है। 

प्रश्न : गोडावण कौनसा पक्षी है, कहां पाया जाता है?

उत्तर: गोडावण राजस्थान का राज्य पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड है जो जैसलमेर जिले में राष्ट्रीय मरु उद्यान में पाया जाता है। 

प्रश्न : गोडावण का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर: गोडावण का दूसरा नाम ग्रेट इंडियन बस्टर्ड है अन्य नाम सोन चिड़िया, हुकना, माल मोरड़ी और तिलोर आदि है। 

प्रश्न : गोडावण का संरक्षण किया जाना क्यों आवश्यक है?

उत्तर: गोडावण विलुप्त होने की कगार पर है, इसलिए इसका संरक्षण अति आवश्यक है। 

प्रश्न : गोडावण संरक्षण अधिनियम कब लागू हुआ? 

उत्तर: गोडावण संरक्षण अधिनियम वर्ष 1981 मे इसे राजस्थान का राज्य पक्षी घोषित किए जाने के बाद लागू हुआ। 







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