हर कोई अपने को दूसरों से अलग दिखाने के लिए अपने नाम के साथ कोई ऐसा टाइटल चाहता है जिससे उसकी शिक्षा और काम कि पहचान हो सके। एक वकील अपने नाम के पहले एडवोकेट (Adv.) और एक चिकित्सक अपने नाम के पहले डॉक्टर (Dr.) टाइटल का प्रयोग कर अपनी शिक्षा और पेशे को प्रदर्शित करता है।
य़ह चलन वर्षों से चला आ रहा है। यह सिर्फ डॉक्टर और एडवोकेट तक ही सीमित नहीं है। यह इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट आदि भी अपने नाम से पूर्व पेशेवर टाइटल का उपयोग करते हैं। यह उन्हें पेशे के साथ पहचान देते हैं। यह सभी टाइटल शिक्षा से प्राप्त किए जाते हैं जो उस पेशे से संबंधित होती है।
कैसे प्राप्त किए जाते हैं शिक्षा से टाइटल -
शिक्षा से टाइटल प्राप्त करने के लिए उस क्षेत्र में शिक्षा हासिल करनी पड़ती है। सभी क्षेत्रों में नाम से पूर्व टाइटल लगाने के लिए उचित मापदंड है, लेकिन सभी क्षेत्रों कि शिक्षा के मापदंड समरूप नहीं है। इंजीनियर, डॉक्टर (चिकित्सक) और एडवोकेट में ग्रेजुएशन कि उपाधि लेने के बाद नाम से पहले टाइटल लगा दिया जाता है तो वही चार्टर्ड अकाउंटेंट में ग्रेजुएशन के बाद सी. ए. की उपाधि लेने के बाद यह टाइटल जोड़ा जा सकता है।
ऐसा ही एक टाइटल है डॉ। डॉ टाइटल चिकित्सक भी उपयोग में लेते हैं किन्तु समान्य तौर पर इसका इस्तेमाल पीएचडी करने के बाद होता है। डॉ टाइटल का उपयोग सभी संकाय और विभाग कि शिक्षा में होता है। इसके लिए आपको परास्नातक के बाद एक और उपाधि लेनी होती है पीएचडी।
डॉ टाइटल का चलन -
चिकित्सा (मेडिकल) में ग्रेजुएशन करने के बाद आमतौर से डॉ टाइटल का उपयोग शुरु कर दिया जाता है। हालाँकि ग्रेजुएशन के बाद अपने नाम से पूर्व डॉ शब्द का इस्तेमाल किया जाना गलत है। इसके लिए कोई नियम नहीं है कि ग्रेजुएशन के बाद डॉ शब्द का इस्तेमाल करे लेकिन नोबल प्रोफेशन और बरसों से चली आ रही परंपरा के कारण ऐसा कर रहे हैं। ऐसा सिर्फ चिकित्सक में ही नहीं अपितु गोवा में एलएलबी करने के बाद पुर्तगाली कानून के तहत वकील अपने नाम के आगे डॉ टाइटल का उपयोग करते रहे हैं।
देश प्रतिष्ठित हिन्दी भाषा के 'दैनिक भास्कर' अखबार ने चिकित्सा क्षेत्र में डॉ टाइटल के लिए एक आरटीआई डाली हालांकि उसका लिखित जबाब नहीं मिला किन्तु मध्य प्रदेश के एमसीआई प्रेसिडेंट ने टेलीफोन पर बताया कि एमबीबीएस बैचलर डिग्री है, डॉक्टरेट नहीं। ऐसे में, एमबीबीएस, बीएएमएस बीयूएमएस आदि के बाद डॉ शब्द के इस्तेमाल किए जाने का कोई नियम नहीं है। किंतु बरसों से चली आ रही परंपरा के कारण एमसीआई और अन्य संबधित कौंसिल में पंजीयन के बाद बैचलर डिग्रीधारी भी डॉ का उपयोग करते हैं।
कौन लगा सकता है डॉ टाइटल?
डॉ टाइटल सही हिसाब से वही लगा सकता है, जिसने पीएचडी की हो। पीएचडी का अर्थ है डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (Doctor of Philosophy) यानी डाक्टरेट। जिसने डॉक्टरेट की हो वही अपने नाम से पहले डॉक्टर शब्द का इस्तेमाल कर सकता है ठीक वैसे ही जैसे किसी ने इंजीनियरिंग कर रखी है तो नाम से पहले Er. (इंजीनियर) टाइटल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
सीधा सा हिसाब-किताब है जिसने डॉक्टरेट कर रखी है वहीं डॉ टाइटल का ईस्तेमाल कर सकता है। इसके बावजूद भी अगर पीएचडी के बाद भी डॉ टाइटल लगाने कि अनुमती सरकारी विभाग ही दे दे तो इसे आप क्या कहेंगे? लेकिन यह सही है कि डॉक्टरेट करने के बावजूद भी लोग डॉ टाइटल का उपयोग नहीं कर सकते हैं, ऐसा फरमान जारी हुआ राजस्थान में।
कौन नहीं लगा सकते पीएचडी के बाद डॉ टाइटल
राजस्थान में 3 सरकारी नर्स जिन्होंने पीएचडी कर ली है, और सरकारी अस्पताल में नौकरी कर रहे हैं। अपने नाम से पहले डॉ टाइटल लगाने के लिए राजस्थान सरकार से अनुमती मांगने के लिए प्रस्ताव भेजा था। राजस्थान राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने नर्स को पीएचडी के बावजूद डॉक्टर टाइटल लगाने कि अनुमती नहीं दी है। यह फरमान राजस्थान स्वास्थ्य विभाग के नर्सिंग कर्मियों पर लागू रहेगा।
नर्सिंग कर्मियों द्वारा पीएचडी करने के बाद सरकार को भेजे प्रस्ताव का सरकार द्वारा ठुकरा देने का नर्सिंग एसोसिएशन, राजस्थान ने विरोध किया है। नर्सिंग कर्मी एसोसिएशन का कहना है कि इस आदेश से नर्सिंग कर्मी हतोत्साहित होंगे और भविष्य में उनके द्वारा पीएचडी करने पर विपरीत असर होगा। उच्च शिक्षा पाने का उन्हें जब कोई महत्व नहीं मिलेगा तो उच्च शिक्षा कि प्राप्ति क्यों करेंगे?
स्वास्थ्य विभाग का यह आदेश उच्च शिक्षा प्राप्ति में बाधक बनने के साथ ही नर्सिंग कर्मियों में शोध में रुचि कम करेगा। आने वाले समय में शोध करने वालों की संख्या शून्य भी हो सकती है। सरकार के ऐसे आदेश के बाद कोई क्यों उच्च शिक्षा कि प्राप्ति करेगा।
स्वास्थ्य विभाग का दोहरा रवैय्या निंदनीय -
एक तरफ जहां चिकित्सा विभाग एमबीबीएस, बीएएमएस बीयूएमएस करने वाले चिकित्सकों को जहां मात्र ग्रेजुएशन के बाद ही डॉ टाइटल कि ना सिर्फ अनुमति देता है, बल्कि सरकारी आदेश में भी उन्हें डॉ से सम्बोधित करता है, अगर वही विभाग नर्सिंग कर्मियों द्वारा डॉक्टरेट डिग्रीधारियो को डॉ टाइटल लगाने से मना कर रहा है। यह दोहरा रवैय्या एक तरफ चिकित्सकों को टाइटल पाने के लिए शोध करने कि इच्छा को पूरा करने के लिए रोक रहा है तो दूसरी तरफ नर्सिंग कर्मियों द्वारा टाइटल के लिए शोध कार्य पूरा कर उपाधि पाने के बाद भी टाइटल का ईस्तेमाल करने का अधिकार नहीं देने के कारण शोध कार्य करने से रोक रहा है।
चिकित्सा विभाग कि बजाय सरकार द्वारा इसके लिए शिक्षा विभाग के साथ मिलकर एक आयोग बनाये जाने की आवश्यकता है जो सही से निर्णय ले सके और शोध कार्यो को बढावा देने के लिए सही फैसले लेने के लिए समर्थ हो अगर चिकित्सा विभाग इस प्रकार से फैसले लेगा तो आने वाले दिनों में नर्सिंग कर्मियों में शोध के प्रति आकर्षण कम होगा, जिससे नवाचार ना के बराबर हो जाएगा और कार्य में नवीनता, कौशल और आधुनिकीकरण में कमी आएगी।
अन्य राज्यों द्वारा इस आदेश का अनुचरण किए जाने से नर्सिंग डॉक्टरेट कराने वाले विश्विद्यालय पर भी विपरीत प्रभाव हो सकता है। आने वाले दिनों में नर्सिंग महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में शोध अनुभव वाले शिक्षको कि दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। सरकार को ऐसे आदेश बिना उच्च शिक्षा विभाग और शोध एजेसियों के सलाह के नहीं लेने चाहिए खासतौर से उस वक़्त जब विभाग पहले से ही नियमो से बंधा हुआ नहीं हो।
आवश्यक प्रश्न उत्तर -
प्रश्न: हिन्दी में पीएचडी कि फुल फॉर्म क्या है? Full form of PhD in hindi?
उत्तर : डॉक्टर ऑफ फिलोसाॅफी हिन्दी में इसे विद्यावाचस्पति की उपाधि कहते हैं।
प्रश्न: पीएचडी को हिन्दी में क्या कहते है?
उत्तर: डॉक्टर ऑफ फिलोसाॅफी यानी पीएचडी को हिन्दी में विद्यावाचस्पति की उपाधि कहते हैं।
प्रश्न: कौन पीएचडी करने के बाद भी नाम से पहले डॉ नहीं लगा सकता है?
उत्तर : राजस्थान सरकार के नर्सिंग कर्मी पीएचडी करने के बावजूद भी अपने नाम से पहले डॉ टाइटल का प्रयोग नहीं कर सकते हैं।
प्रश्न: अपने नाम से पहले डॉ कौन लगा सकता है है?
उत्तर : जिसने किसी विषय में मास्टर्स कि डिग्री करने के बाद डॉक्टरेट/डॉक्टर ऑफ फिलोसाॅफी हिन्दी में इसे विद्यावाचस्पति की उपाधि कहते हैं जिसने यह उपाधि ली हो, वही व्यक्ति अपने नाम से पहले डॉ टाइटल लगा सकता हैं।
प्रश्न: क्या ग्रेजुएशन के बाद नाम से पहले डॉ लगाना सही है?
उत्तर : यह बिल्कुल गलत है नाम के पहले डॉक्टर वही लगा सकता है जिसने डॉक्टर ऑफ फिलोसाॅफी किया हो। लेकिन एमबीबीएस करने के बाद चिकित्सक नाम से पहले डॉ लगा लेते हैं, जो नियमानुसार सही नहीं है।
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