अर्थशास्त्र क्या है? Arthshastra kya hai? in hindi

अर्थशास्त्र क्या है? Arthshastra kya hai? in hindi

अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जो विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग से संबंधित है। वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए निवेश पर सर्वोत्तम (उपलब्ध विकल्पों में से सबसे अधिक) प्रतिफल (return) पाने के लिए राष्ट्र, सरकार, निगम, व्यवसाय और व्यक्ति द्वारा लिए जाने वाले निर्णय में अध्ययन करता है। संक्षिप्त में आप इसे न्यूनतम संसाधनो अधिकतम लाभ प्राप्ति का विज्ञान कह सकते हैं।

अर्थशास्त्र क्या है? Arthshastra kya hai? in hindi

अर्थशास्त्र दो शब्दों की संधि है - अर्थ+शास्त्र। अर्थ का अर्थ धन से है और शास्त्र का अर्थ वैज्ञानिक रुप से अध्ययन से है। अतः अर्थशास्त्र का अर्थ ऐसे विषय या अध्ययन से है, जो धन का अध्ययन करता हैं।

अर्थशास्त्र क्या है? 


इसे समझने के लिए पहले हम इसकी परिभाषा और परिभाषा के क्रमागत विकास को एक नजर में समझ लेते हैं। 

क्र. स.  अर्थशास्त्री  व्याख्या आलोचना 
1 क्लासिकल 
(एडम स्मिथ) 
धन का विज्ञान  धनी और निर्धन का विभाजन 
2 मार्शल, हिक्स, स्टुअर्ट मिल  कल्याण का विज्ञान  भौतिक पहलुओं का व्याख्यान 
3 लॉर्ड रॉबिन्स  दुर्लभता तथा चयन का विज्ञान  निर्णय तक सीमित 
4 सैम्यूल्सन  संवृद्धि तथा विकास का विज्ञान  कल्याण और पर्यावरणीय सुरक्षा 
5 बीसवीं सदी के अंत के अर्थशास्त्री  धारणीय विज्ञान  -


शुरुआत में अर्थशास्त्र को महज धन का विज्ञान माना जाता था। आधुनिक अर्थशास्त्र के पिता कहे जाने वाले एडम स्मिथ ने इसे धन का विज्ञान माना था लेकिन आगे चलकर कल्याणकारी अर्थशास्त्रियों ने महज धन का विज्ञान मानने से इंकार करते हुए आलोचना की। 

अल्फ्रेड मार्शल, पिगू, हिक्स आदि ने इसे कल्याण का अर्थशास्त्र मानते हुए मनुष्य के आर्थिक कल्याण पर जोर दिया। इन्होंने धन की तुलना में मानवीय जीवन के कल्याण पर जोर देने के कारण यह धन की अपेक्षा में मानवीय अधिक हो गया। साथ ही मानव के व्यावसायिक जीवन पर जोर देते हुए उसकी भौतिक आवश्यकताओं को उजागर कर उन्हें पूरा करने का विज्ञान माना जिसके कारण उनकी आलोचना करने वालों ने इसे भौतिक पहलू का अध्ययन कहकर आलोचना की।

1932 में रॉबिन्स ने अपनी पुस्तक 'Essay on Nature and Significance of Economic Science' मे अर्थशास्त्र को दुर्लभता तथा चयन का विज्ञान मानते हुए कहा कि मनुष्य की आवश्यकता को भौतिक और अभौतिक तरीकों में भिन्न किया जाना उचित नहीं है। आवश्यकता तीव्र और मंद हो सकती है। मनुष्य की आवश्यकता पूर्ति के लिए सीमित संसाधन उपलब्ध है, उपलब्ध संसाधनो का वैकल्पिक प्रयोग भी सम्भव है। ऐसे में सीमित संसाधनो से चयन करना दुर्लभता का चयन है, उसी के अनुसार मौद्रिक मूल्य है। चयन का विज्ञान कहने के कारण इनकी आलोचना हुई। 

पॉल सैम्युल्सन ने इसे संवृद्धि और विकास का अर्थशास्त्र बताते हुए मानवीय आवश्यकता और संसाधनो की दुर्लभतम उपलब्धता पर जोर देते हुए कहा कि व्यक्ति और समाज अनेक उपयोग में आ सकते हैं। ठीक उसी प्रकार संसाधनों के भी कई प्रयोग संभव है ऐसे में दोनों में सामंजस्य स्थापित कर बेहतर चयन करके उपयोग किया जाना चाहिए ताकि आर्थिक विकास और संवृद्धि को बल मिले। इनकी आलोचना करने वालों ने कहा कि मनुष्य और संसाधनो का इस तरीके से प्रयोग किए जाने से मानवीय कल्याण और पर्यावरण सुरक्षा को क्षति होगी। 

आवश्यकता विहीन अर्थशास्त्र (Wantlessness Economics) 


प्रयागराज (पूर्व नाम इलाहाबाद) विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जे के मेहता भारतीय अर्थशास्त्री के रुप में पहचान रखते हैं। भारतीय दर्शन से प्रभावित होकर उन्होंने पश्चिमी अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण से भिन्न रुप से अर्थशास्त्र को परिभाषित किया। 

प्रोफेसर मेहता ने भौतिक सुख के स्थान पर मानसिक सुख पर बल दिया। उनके अनुसार मनुष्य की आवश्यकता और उन्हें पूरा करने के लिए उपलब्ध संसाधनों में अन्तर है। ऐसे में मनुष्य अधिकतम संतुष्टि और सुख को उस अवस्था में प्राप्त कर सकता है, जब उसकी आवश्यकता न्यूनतम हो। अधिक आवश्यकता पूर्ति नहीं होने के कारण मनुष्य जो उसके पास है उसी में संतोष करे तो उसे अधिक संतुष्टि होगी और उसकी आवश्यकताएं भी कम या ना के बराबर होगी। 

इनकी आलोचना करने वालों ने इन्हें सन्यासी अर्थशास्त्री कहकर पुकारा और कहा कि इस तरह का अर्थशास्त्र महज सन्यासी जीवन में ही सम्भव है। 

उपयुक्त परिभाषा - अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है जो उपलब्ध संसाधनो और मानवीय कल्याण मे सामंजस्य स्थापित करते हुए, संसाधनो का उपयोग इस तरीके से करने का विज्ञान है जिसमें न्यूनतम संसाधनो का उपयोग करते हुए अधिकतम संतुष्टि को प्राप्त किया जा सके। यह व्यक्ति, समाज और उद्योग द्वारा उपभोग और उत्पादन के लिए उपयोग में लिया जाता है। संसाधनो की उपलब्धता के अनुरुप मांग और पूर्ति में सामंजस्य स्थापित कर मूल्य निर्धारण में उपयोग किया जाता है जिससे मानव कल्याण और पर्यावरण की सुरक्षा के साथ आर्थिक विकास संभव हो।

अर्थशास्त्र की शाखाएं - 


अर्थशास्त्र की दो निम्न शाखाएं है - 

  • व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics) 
  • समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics) 

व्यष्टि अर्थशास्त्र - व्यक्ति विशेष के निर्णय से सम्बन्धित अर्थशास्त्र, इसे सूक्ष्म अर्थशास्त्र कहा जाता है। इसमे व्यक्ति विशेष द्वारा वस्तुओ और सेवाओं के क्रय सम्बन्धित निर्णय, व्यक्ति विशेष के विक्रय सम्बन्धित निर्णय, विशिष्ट क्रेता और विक्रेता के मूल्य सम्बन्धित निर्णय एंव विशिष्ट उत्पादक के उत्पादन सम्बन्धित निर्णयों को सम्मिलित किया जाता है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि व्यष्टि अर्थशास्त्र विशिष्ट व्यक्ति, समाज या उद्योग के उत्पादन और उपभोग योग्य निर्णय को लेने में मदद करता है।

समष्टि अर्थशास्त्र - सम्पूर्ण समाज अथवा राष्ट्र का अर्थशास्त्र जिसे आप सम्पूर्ण, विशाल, वृहत या बड़ा अर्थशास्त्र कहा जाता है। राष्ट्रीय आय - व्यय, मुद्रास्फीति, प्रति व्यक्ति आय और राजकोषीय नीति सम्बन्धित निर्णय। यह सभी राष्ट्रीय स्तर पर होते हैं जो संपूर्ण अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करने वाले निर्णय होते हैं। जहां व्यष्टि अर्थशास्त्र किसी उद्योग विशेष के निर्णय से सम्बन्धित होता है, वही समष्टि अर्थशास्त्र देश के सभी उद्योगों के निर्णय से सम्बन्धित है। 

इसे आप उदाहरण से समझे जब आप अपने खर्च और आय का विश्लेषण करे अथवा कोई फर्म अपना विश्लेषण करे तो यह आप यानी व्यक्ति विशेष या फर्म विशेष के आंकड़े होगे को कुल मे एक इकाई मात्र है, इसलिए यह व्यष्टि अर्थशास्त्र है। किंतु जब NSSO या आरबीआई राष्ट्रीय आय व्यय अथवा राजकोषीय नीति संबंधी आंकड़े प्रस्तुत करे या वित्त विभाग द्वारा देश का बजट जारी किया जाए तो यह समग्र आंकड़े है, जो व्यष्टि अर्थशास्त्र है। 

व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर - 


क्र. सं.  अन्तर का आधार  व्यष्टि अर्थशास्त्र  समष्टि अर्थशास्त्र 
1 अध्ययन  सूक्ष्म होने से अर्थव्यवस्था की इकाईयों और व्यक्तिगत आर्थिक क्रियाकलाप का अध्ययन करती हैं।  समग्र अर्थव्यवस्था होने के कारण समग्र अर्थव्यवस्था का अध्ययन कर समग्र योग प्रदर्शित करती हैं
2 क्षेत्र  बड़ा समग्र  छोटा सूक्ष्म 
3 अध्ययन  विशिष्ट फर्म और उपभोक्ता का व्यक्तिगत विश्लेषण  समग्र - राष्ट्रीय आय, विनियोग, कुल राष्ट्रीय व्यय 
4 संबंध  बाजार मूल्य से  राष्ट्रीय आय से 
5  सिद्धान्त  व्यक्ति और इकाई से सम्बन्धित होने के कारण इसे कीमत सिद्धांत कहा जाता है।  संपूर्ण राष्ट्र से संबंधित होने के कारण इसे राष्ट्रीय आय और व्यय सिद्धांत कहा जा सकता है। 
6 परिवर्तन शीलता  ईकाई छोटी होने के कारण अधिक परिवर्तनशील  बड़ी होने से कम परिवर्तनशील 
7 प्रकृति  छोटा होने से सरल  बड़ा होने से विशाल 

अर्थशास्त्र को दो शाखाएं है जो समष्टि और व्यष्टि है। जिनके अन्तर संक्षेप में समझाये गए हैं। 

वास्तविक बनाम आदर्श अर्थशास्त्र - 


वास्तविक अर्थशास्त्र - यह वास्तविकता का वर्णन करता। अतः आप कह सकते हैं, 'क्या है?' प्रश्न का उत्तर देता है। यह आर्थिक जगत में क्या हो रहा है? इसका उत्तर देता है। जैसे भारत में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ रही। ऐसे में हम कह सकते है कि यह अर्थशास्त्र की समस्या को इंगित करता है। यह बताता है कि उद्योग के समक्ष क्या समस्या है? जैसे मजदूरों को कम परिश्रम कर रहे हैं। 

आदर्श अर्थशास्त्र - यह नैतिकता या आदर्श मूल्यों की बात करता है। 'क्या होना चाहिए?' का जबाब देता है। यह आर्थिक जगत में क्या होना चाहिए? का नैतिक मुल्यांकन के आधार पर जवाब देता है। जैसे में बढ़ते उपभोक्ता के कारण मोबाइल टावर पर ट्रैफिक बढ़ रहा है, इसलिए नए टावर तेजी से लगाए जाने चाहिए। ऐसे में हम यह भी कह सकते हैं कि इस तरह का अर्थशास्त्र आर्थिक समस्या की व्याख्या करता है। जैसे - "मजदूरी कम मिलने के कारण मजदूर कम परिश्रम कर रहे हैं। 




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