बिश्नोई समाज : पर्यावरण प्रेमी समाज से क्यों नफरत? Bishnoi Samaj

बिश्नोई समाज : पर्यावरण प्रेमी समाज से क्यों नफरत? Bishnoi Samaj

विष्णु विष्णु तू भण रे प्राणी, इस जीवन के होवै। 
क्षण-क्षण आव घटंती जावे, मरण दिनेदिन आवे।। 
बिश्नोई समाज : पर्यावरण प्रेमी समाज से क्यों नफरत? Bishnoi Samaj

भावार्थ - हे, प्राणी तू विष्णु, विष्णु मंत्र का जाप कर, यह सर्वश्रेष्ठ मंत्र हैं। इस मंत्र से जीवन के कल्याण हो जाएगा। तेरी उम्र दिनोंदिन घटती जा रही है और तेरी मृत्यु का समय नजदीक आ रहा है। जीवन को सफल करने के लिए विष्णु का जाप कर ले प्राणी। 

बिश्नोई समाज - 


बिश्नोई समाज थार के मरुस्थल और उत्तरी भारत में पाया जाने वाला एक पंथ, समुदाय अथवा जाति हैं। मुख्यतः विश्नोई या बिश्नोई समुदाय के लोग बहुलता से राजस्थान और हरियाणा राज्य में बसे हुए हैं। इस पंथ की स्थापना जांभोजी महाराज द्वारा की गई। जांभोजी महाराज द्वारा बताये गये आदर्श जिन्हें 29 नियम कहा जाता है, इन नियमो पर चलने और पालन करने वाले को बिश्नोई कहा जाता है। यह बिश्नोई शब्द की उत्पत्ति नियमो से ही हुई। 29 नियम यानी (20+9) बीस + नौ नियम पालन करने वाले बिश्नोई या विश्नोई। 

विश्नोई समुदाय एक पवित्र समाज है, इस समाज के लोग शत प्रतिशत शाकाहारी होने के साथ ही जीव दया की भावना रखते हैं। इसी भावना के कारण इन्हें प्रकृति का रक्षक और हितैषी जैसी उपमा दी जाती है। समाज में हिंसा को कोई स्थान नहीं है। यह जानकर आपको आश्चर्य हो सकता है कि बिश्नोई समाज जीव और प्रकृति जिसमें वानस्पति शामिल हैं के प्रति भी दयालू होता और दोनों के खिलाफ किसी प्रकार की हिंसा को स्वीकार नहीं करता है। बिश्नोई समुदाय की आदर्श 'मां अमृता देवी' के नेतृत्व में 363 लोगों ने पवित्र खेजड़ी के वृक्ष को बचाने के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए, जो विश्व का सबसे बड़ा प्रकृति बचाओ आन्दोलन है।

बिश्नोई समाज के 29 नियम


बिश्नोई समाज : पर्यावरण प्रेमी समाज से क्यों नफरत? Bishnoi Samaj
साभार : कैलाश काकड़, खारा फलोदी।

विश्नोई समाज के संस्थापक जांभोजी महाराज द्वारा स्थापित किए गए 29 नियमो के पालन से ही इस पंथ की स्थापना हुई। ऐसे में आपको एक बार बिश्नोई समाज के 29 नियमो को जान लेना आवश्यक है। यह 29 नियम निम्नानुसार हैं -  
  1. तीस दिन सूतक रखना।
  2. पांच दिन ऋतुवन्ती स्त्री का गृहकार्य से पृथक रहना।
  3. प्रतिदिन सवेरे स्नान करना।
  4. शील का पालन करना व संतोष रखना। 
  5. बाह्य और आन्तरिक पवित्रता रखना। 
  6. द्विकाल संध्या - उपासना करना।
  7. संध्या समय आरती और हरिगुण गाना। 
  8. निष्ठा और प्रेमपूर्वक हवन करना। 
  9. पानी, इंधन और दूध को छानकर प्रयोग में लेना।
  10. वाणी विचार कर बोलना।
  11. क्षमा और दया धारण करना। 
  12. चोरी नहीं करना
  13. निंदा नहीं करना
  14. झूठ नहीं बोलना। 
  15. वाद-विवाद का त्याग करना। 
  16. अमावस्या का व्रत रखना
  17. विष्णु का भजन करना
  18. जीव पर दया करना या जीव दया का पालन करना। 
  19. हरे वृक्ष नहीं काटना
  20. काम क्रोध जैसे अजर को वश में करना।
  21. स्वयँ द्वारा रसोई बनाना। 
  22. थाट अमर रखना। 
  23. बैल बधिया नहीं कराना (बैल को नपुसंक ना करना) 
  24. अफीम का सेवन ना करना। 
  25. तम्बाकू का सेवन नहीं करना। 
  26. भांग नहीं पीना। 
  27. मद्यपन नहीं करना। 
  28. मांस नहीं खाना। 
  29. नीले वस्त्र के साथ ही नील का भी त्याग करना।
उपर्युक्त सभी नियम विभिन्न समाज के साहित्य के साथ ही विभिन्न समाज के व्यक्तियों द्वारा दिखाए गए साक्ष्य के आधार पर लिए गए हैं। किसी शब्द की वर्तनी की त्रुटि की दशा में आप जिम्मेदार व्यक्ति की भांति हमे जानकारी दे इसे त्रुटि रहित करने में अपनी भूमिका का निर्वहन करेंगे।

बिश्नोई समाज का पर्यावरण के प्रति समर्पण - 


बिश्नोई अथवा विश्नोई समाज का पर्यावरण और प्रकृति को बचाने के लिए महत्वपूर्ण योगदान है। इस समाज की पहचान ही प्रकृति को बचाए रखने के लिए हैं। पर्यावरण और प्रकृति की रक्षा के लिए इनके योगदान को आप निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं - 
  • वृक्ष बचाओ - विश्नोई समुदाय का हमेशा से ही पेड़ों को बचाने के लिए अहम योगदान रहा है। खेजड़ी के वृक्षो को बचाने के लिए मां अमृता देवी समेत 363 लोगों का बलिदान समाज को पर्यावरण बचाने का संदेश देने के लिए व्यर्थ नहीं गया। आज भी बिश्नोई समाज पेड़ बचाने में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। आज भी पेड़ के लिए जान देने के मामले देखने को मिल जाते हैं। पेड़ बचाने और पेड़ को नुकसान ना हो इस उदेश्य को ध्यान में रखते हुए आज भी बिश्नोई समाज के लोग बकरी नहीं पालते है। ना पेड़ की शाखाओं को काटते हैं। जब राजमार्ग या अन्य उदेश्य से पेड़ों की कटाई होती है तो पेड़ बचाने के लिए बिश्नोई समाज सामने आता है। कटाई आवश्यक होने की दशा में काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या के मुकाबले में दुगुनी संख्या में वृक्षारोपण करवाने के लिखित आश्वासन भी लेते हैं। हाल ही में, राजस्थान में सोलर ऊर्जा के लिए काटे जाने वाले पेड़ों को बचाने और काटे गए पेड़ों की ऐवज में दुगुनी संख्या में पेड़ लगाने का आश्वासन लिया था। 
  • चिंकारा और हिरण - बिश्नोई समाज का हिरण के प्रति हमेशा से झुकाव रहा है। हिरण और चिंकारा के प्रति अनोखा प्रेम हैं। विश्नोई समाज के घरों के आसपास हिरणों के झुंड का स्वच्छन्द विचरण देखने को मिल जाता है। इसे कुत्तों और शिकारियों से बचाने के लिए समुदाय के युवाओ का पहरा भी देखने को मिल जाना आम बात है। दुर्घटना के शिकार हिरण को बचाने के लिए सरकारी सेवाओं से पहले समाज के युवाओ की तत्परता इन्हें बचाने के लिए देखने को मिलती है। बिन मां के हिरण के बच्चों को पालतू जानवर की तरह पाले जाने के नज़ारे भी आम हैं। 
  • जानवर और पंछी - राजस्थान प्रदेश की गर्मी के मौसम में मानव के शरीर की चमड़ी जला देने वाली गर्मी से तो आप भलीभाँति परिचित होंगे ही। इन गर्मी के दिनों में जलाशयों में पानी सूख जाता है। वन्य-जीव पानी के लिए त्राहिमाम करने लगते हैं। इस समय इन्हें बचाने के लिए समुदाय के लोग सामने आते हैं। जगह-जगह जलाशयों में पानी की व्यवस्था के साथ चारे की व्यवस्था वन्यजीवों के लिए की जाती है तो वही पंछी बचाने के लिए पेड़ों पर पानी के सिंके डाले जाते हैं। 
कुल मिलाकर कहा जाए तो विश्नोई समुदाय का प्रकृति और वन्य जीवों के लिए जिस प्रकार का प्रेम है, ऐसा प्रेम दुनिया की अन्य जातियों में देखने को मिलना संभव नहीं है। कोई समुदाय (विश्नोई समुदाय को छोड़कर) ऐसा होना भी असंभव प्रतीत होने जैसा भी नहीं है कि उसके शत प्रतिशत मानने वाले शाकाहारी हो। किसी समुदाय के 300 से अधिक लोग एकसाथ पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिए हो, ऐसा उदाहरण मिलना असम्भव है। पेड़ों और वन्यजीव को बचाने के लिए आन्दोलन के स्थान पर पहरा देने का कार्य आज के ज़माने में असम्भव प्रतीत होने वाला कार्य है, किंतु विश्नोई समुदाय के ग्रामीण इलाकों में ऐसा देखा जाना आम बात है। 

बिश्नोई समाज निशाने पर - 


आजकल विश्नोई समुदाय को खासतौर से तस्करी और नशे के नाम से निशाने पर लिया जाना आम बात है। मीडिया द्वारा विश्नोई समाज के किसी युवा की गिरफ्तारी पर 'विश्नोई गैंग' कहा जाना आम बात हो गई है। मीडिया द्वारा इस तरह की उपमा दिए जाने के बाद समुदाय के प्रति वैचारिक बैर भाव रखने वालों द्वारा सोशल मीडिया पर समुदाय को टार्गेट किया जाना भी आम बात है। विभिन्न जाति और समुदाय में असामाजिक तत्वों की भरमार है, जो बिना किसी भाव के भी ऐसा नेरेटिव चलाने वालों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बिश्नोई समुदाय को बदनाम करने का कार्य शुरु कर देते हैं। 

हालाँकि मैं नशे और तस्करी को बिश्नोई समुदाय द्वारा किए जाने के बात को सही नहीं ठहरा रही हूँ, यह पूरी तरह से विश्नोई सम्प्रदाय के खिलाफ हैं। विश्नोई समुदाय के नियमो के खिलाफ हैं। अफीम और तंबाकू का नशा करने का अर्थ आप पूरे 29 नियमो का पालन नहीं कर रहे हैं अर्थात् आप जांभोजी महाराज द्वारा बताई हुई राह पर ही नहीं है। आप स्वयँ सोचे एक तरफ कहा गया है, बिश्नोई वो है जो 29 नियमो का पालन करे। अगर आप पूरे 29 नियमो का पालन नहीं करते हैं तो आप किस श्रेणी में अपने आप को देखते हैं। 

समुदाय को पूरी तरह से देखा जाए तो अच्छाई के कई अनूठे उदाहरण आज भी देखने को मिल रहे हैं। खासतौर से पर्यावरण और वन्यजीव को बचाने के सम्बंध में। कुछ लोगों की बदौलत पूरे समाज को टार्गेट कर देना कदापि उपयुक्त नहीं हो सकता है। पूरे समाज को बदनाम करने का अर्थ है कि ऐसा करने वाला मानसिक कुंठा से पीड़ित है या आचरण अनुचित है। हमे तो विश्नोई समाज ग्लोबल वार्मिंग के दौर में एक आदर्श समाज लगता है जो ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के लिए अपनी महती भूमिका को निभा रहा है। 

बिश्नोई समाज से सीखे - 


बिश्नोई समाज ग्लोबल वार्मिंग और वातावरण में आ रहे बदलाव के दौर में एक आदर्श समुदाय है, जो सदियों से पर्यावरण के प्रति सचेत रहा है। ऐसे आदर्श समुदाय से आज के दौर में बहुत कुछ सीखा जा सकता है। आज के दौर में आप विश्नोई समुदाय से निम्नलिखित बातों को सीख सकते हैं। ये सीख ना सिर्फ आपको बल्कि पूरे विश्व के लिए वरदान से कम नहीं है। 
  • पर्यावरण की रक्षा - विश्नोई समुदाय वृक्ष से लेकर वन्यजीव के प्रति जिस तरीके का भाव रखता है, उससे आप बहुत कुछ सीख सकते हैं। खासतौर से इस समय में वातावरण में बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं और विभिन्न वैश्विक संघठन पेड़ लगाने के लिए अपील कर रहे हैं। लेकिन बिश्नोई सम्प्रदाय सदियों से इस कार्य को बिना किसी सरकारी सहयोग के तन-मन से करता आया है। समुदाय के इस कार्य से सभी सीख ले सकते हैं। 
  • जैव विविधता को बनाये रखना - पर्यावरण असंतुलन और ग्लोबल वार्मिंग के बाद जैव-विविधता का सिमटना भी एक वैश्विक चिंताजनक विषय है। पेड़, प्रकृति और वन्य-जीव के बचाव से विश्नोई समाज इसे बचाने के लिए अपनी अहम भूमिका निभाता आया है। समुदाय के इस समर्पण भाव से ना सिर्फ कोई जाति समुदाय या राष्ट्र बल्कि पूरी मानवता जैव-विविधता को बचाने के लिए सीख ले सकती है। 
  • मन को साफ रखना - विश्नोई समुदाय को गुरु जम्भेश्वर भगवान द्वारा दिखाई गई राह को काम, क्रोध, नशा आदि से दूर रखने के साथ बहस को भी उचित नहीं मानती है। बैर भाव को उचित नहीं मानती है, उन सभी नियमो से भी खूब सीखा जा सकता है। 
समुदाय और समुदाय के नियमो द्वारा प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा के लिए जो कदम लिए जाते रहे हैं, वो वर्तमान समय में एक आदर्श निर्देशिका है। समुदाय के आदर्शों का पालन करते हुए सामाजिक और वैश्विक चुनौतियों से आसानी से निपटा जा सकता है।

यह लेख बाह्य लेखिका द्वारा लिखा गया। यह विचार उसके मन के भाव हैं। लेखिका वर्तमान समय में उठ रहे सामाजिक द्वेष भाव से विचलित हैं। इस बैर भाव के दौर में बिश्नोई समाज के कुछ आदर्शों को आपके सामने पेश करने का प्रयास किया है। समाज और समुदाय लोगों के सभी कार्यो को शब्दों मे समेट पेश नहीं किया जा सकता है। कुछ कार्यो को ही शब्दों में पिरोकर आपके सामने पेश किया है।

लेखिका परिचय -
बिश्नोई समाज : पर्यावरण प्रेमी समाज से क्यों नफरत? Bishnoi Samaj

मैं नंदिनी चक्रवर्ती, कोलकाता पश्चिम बंगाल कोलकाता की निवासी हूं। मैंने कल्याणी विश्वविद्यालय से एम. ए. और रविन्द्र भारती से बी एड की शिक्षा हासिल की है। पेशे से मैं एक शिक्षिका हूँ और मेरी रुचि पर्यावरण और वन्य-जीव में हमेशा से रही है। मेरी रूचि के कारण मेरा विश्नोई सम्प्रदाय मेरा आदर्श है।। मैं दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने के संघर्ष कर रहे स्वयंसेवकों में से एक हूँ, जिसकी रुचि लिखने के साथ ग्राफिक्स डिजायन में भी हैं।

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2 टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
बहुत ही अच्छा लिखा है बहन आप ने बहुत बहुत धन्यवाद
बेनामी ने कहा…
आपने बहुत ही सुन्दर लिखा है। सूचनात्मक लेख के लिए धन्यवाद 🙏🏼