80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज क्यों दे रही हैं, सरकार? 80 Crore Beneficiary

80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज क्यों दे रही हैं, सरकार? 80 Crore Beneficiary

भारत सरकार गरीबो के उत्थान के नाम पर 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दे रही हैं। सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना को लेकर विपक्ष समेत देश के कई बुद्धिजीवी अक्सर सवाल करते रहते हैं आखिर सरकार क्यो खजाने को लूटा रही हैं? इतने लोगों को अन्न वितरण करने का अर्थ क्या है?

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी समेत कई काबीना (कैबिनेट) मंत्री भी स्वीकार करते हैं कि भारत सरकार 80 करोड़ भारतीयों को विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत 5 किलो प्रतिमाह मुफ्त अनाज का वितरण करती है। मुफ्त अनाज लेने वाले परिवारों की संख्या भी प्रतिवर्ष बढ़ रही है, ऐसा कई रिपोर्ट में उल्लेख देखने को मिलता है। 

क्या लगते हैं मुफ्त अनाज वितरण पर आरोप? 


कभी-कभार तो इस मुद्दे को लेकर बहस इतनी बढ़ जाती है कि विपक्ष सीधे आरोप लगा देता है कि भारत में गरीबी बढ़ गई है, सरकार इतने लोग को अन्न पेट भरने के लिए दे रही हैं। विपक्ष और सरकार के विरोधी इतने में ही नहीं रुकते वो आगे यह भी कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में गरीबो की संख्या बढ़ गई है। साथ ही कई लोग सरकार पर बेरोजगारी का हवाला दे बताते हैं कि सरकार ऐसा इसलिए कर रही है ताकि बेरोजगार किसी आन्दोलन पर उतारु ना हो। विपक्ष के नेता और सरकार कि नीतियों के आलोचक इसे सरकार की विफलता को छुपाने के लिए जनता को दिया जाने वाला लोभ (जिससे जनता सरकार की आलोचक ना बने) करार देते हैं।

सरकार के आलोचक कहते हैं कि सरकार द्वारा दिया जाने वाला मुफ्त अनाज सरकारी खर्च को बढ़ाता है, जो करदाताओं के साथ अन्याय है। आलोचकों के मतों को शब्दों में पिरोए तो मुफ्त अनाज का वितरण ना सिर्फ सरकारी खजाने पर भार है बल्कि देश की कार्य क्षमता के उचित उपयोग के विपरित है। मुफ्त अनाज वितरण की योजनाओं से लोग मुफ्त का राशन पा लेते हैं जिसके कारण वो ना मेहनत मजदूरी करना चाहते हैं और ना ही रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लोगों में काम के प्रति नकारात्मक भाव पैदा कर उन्हें आलसी बना दिया है। सरकार द्वारा किए जाने वाले इस फिजूल खर्च से ढांचागत विकास पर विपरीत असर हुआ है। मितव्ययी योजना यूँ ही चलती रही तो आने वाले समय में अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर होगा। 


क्यो दिया जाता है मुफ्त अनाज - 


भारत सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत दिया जा रहा है। भारत के संसद द्वारा कानून पारित हकदार लोगों को बेहद सस्ती दर गेंहू 2/- किलो और चावल 3/- किलो (जो सरकार द्वारा परिवर्तन योग्य है) देने का अधिनियम पारित किया गया। संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) द्वारा बहुमत से पारित किये जाने के पश्चात्‌ भारत के महामहिम राष्ट्रपति की मुहर के बाद 12 सितंबर, 2013 को अधिनियम बन गया। महामहिम के हस्ताक्षर उपरांत राजपत्र जारी कर यह संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत भारतीय हकदार नागरिको का अधिकार बन गया है। 

खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अनुसार सरकार द्वारा निर्धारित की गई दर (जो न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम) से हकदार को सरकार द्वारा अनाज वितरण किया जाना कानून रुप से अनिवार्य है। अनाज वितरण में उच्चतम दर निर्धारित है, किंतु न्यूनतम नहीं। खाद्य सुरक्षा विधेयक, हकदार को भोजन का अधिकार देता है। ऐसे में एक कल्याणकारी सरकार का उत्तरदायित्व है कि वह हकदार के अधिकारों की रक्षा करे। हकदार को संविधान के अनुच्छेद 21 से प्राप्त 'भोजन के अधिकार' के तहत सरकार द्वारा मुफ्त अनाज का वितरण किया जाता है। 

80 करोड़ आबादी को मुफ्त अनाज क्यों? 


खाद्य सुरक्षा विधेयक के अनुसार भारत देश की 75% ग्रामीण और 50% शहरी आबादी को खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत लाभान्वित लिए जाने का (विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित कर) कानून बना दिया गया। भारत में अंतिम जनगणना वर्ष 2011 में संपन्न हुई ऐसे में उस समय कुल हकदारों की संख्या (वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार) कुल ग्रामीण आबादी (83.31 करोड़) मे से 75% आबादी 62.5 करोड़ (लगभग) और कुल शहरी आबादी (37.7 करोड़) में से 50% आबादी 18.85 करोड़ को लाभान्वित किया जाना सुनिश्चित किया गया। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रो के अनुपात के अनुसार कुल लाभांवित आबादी 81.35 करोड़ थी। वही से यह आंकड़ा 80 करोड़ का आया है। यह अधिक जटिल हो गया है तो सारणी से आप समझ सकते हैं। 

सारणी - वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार (आबादी करोड़ों में) 
क्षेत्र  कुल आबादी (करोड़ों में)  लाभार्थी (%)  लाभार्थी (संख्या) 
ग्रामीण  83.31 75% 62.50
शहरी  37.70 50% 18.85
भारत  121.1 - 81.35

खाद्य सुरक्षा अधिनियम में लाभांवित जनसंख्या के आधार पर ही 80 करोड़ का आंकड़ा सामने आता है। इसे हम आसान भाषा में एक उदाहरण से समझ सकते हैं, यह उदाहरण काल्पनिक है जो महज आपको बेहतर तरीके से समझाने के लिए दिया गया है। अगर भारत की कुल जनसंख्या 120 करोड़ है उसमे से 100 करोड़ ग्रामीण और 20 करोड़ शहरी है तो ऐसे में ग्रामीण का 75% यानी 75 करोड़ (100 करोड़ का 75%)और शहरी का 50% यानी 10 करोड़ (20 करोड़ का 50%) लाभार्थी होंगे इसका अर्थ हुआ कुल 75+10 =85 करोड़ लाभार्थी होंगे। 

वर्तमान में 2011 के बाद से जनगणना नहीं हुई है, कई अनुमान के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 135 करोड़ से पार हो गई है ऐसे में लाभार्थियों की संख्या अब बढ़कर 100 (अनुमानित) करोड़ के पार हो जानी चाहिए थी लेकिन जनगणना नहीं होने से अब तक लाभार्थी अब भी 2011 की जनगणना के अनुसार ही है। 

निःशुल्क वितरण क्यों? 


यहां यह प्रश्न उठाया जाना लाजिमी है कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 एक बड़ी तादाद को 'भोजन का अधिकार' प्रदान करता है, लेकिन निःशुल्क भोजन का नहीं। अधिनियम के अनुसार खाद्यान्न का मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम होना चाहिए। ऐसे में निःशुल्क वितरण किए जाने के पीछे सरकार की निम्नलिखित मंशा हो सकती है। खाद्य सुरक्षा अधिनियम एक तरफ अधिकतम मूल्य (न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम) पर जोर देता है लेकिन न्यूनतम मूल्य पर जोर नहीं देता है, ऐसे में सरकार नें लाभार्थी परिवारो के लिए इसे निःशुल्क कर दिया गया, जो कानून (विधेयक) की सीमा का लाभ है। 
  • न्यूनतम मूल्य का जिक्र नहीं होना - खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 में न्यूनतम मूल्य का जिक्र नहीं करता है, ऐसे में इसका मूल्य शून्य तक भी लाया जा सकता है। यह कानून की सीमा से उत्पन्न एक अवसर है, जिसे भुनाया जा सकता है। 
  • राजनैतिक लाभ की प्राप्ति - न्यूनतम मूल्य के ना होने से राजनीतिक दल (सत्ताधारी दल) राजनैतिक लाभ उठाने के लिए इसके मूल्य को कम से कम कर अवसर का लाभ लेना चाहते हैं। पहले यूपीए की सरकार गेंहू 2/- प्रति किलो और चावल 3/- प्रति किलो के अनुसार वितरित करती रही। सत्ता के परिवर्तन के बाद एनडीए ने अवसर (न्यूनतम मूल्य ना होने का लाभ) का लाभ प्राप्त करने के लिए इसे निःशुल्क कर दिया। 
  • लोगों को बेहतर तरीके से आकर्षित करना - निःशुल्क वितरण किए जाने से सभी लाभार्थी इसका लाभ उठाने में कामयाब आसानी से हो सकते हैं, कुछ मूल्य रखे जाने की दशा मे शत-प्रतिशत लाभार्थियों द्वारा लाभ उठाने में शंका की उत्पत्ति होती है। 

निःशुल्क वितरण अनुचित हो सकता है लेकिन एक जनतांत्रिक देश में सभी दल कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए आक्रमक और उत्साहित होते हैं इसी के चलते इसे निःशुल्क कर दिया गया है। साथ ही शत-प्रतिशत लाभार्थी इसका लाभ उठाए और स्टॉक ना बचे यह भावना भी प्रबल हो सकती है। खैर, इसे हम आपकी समझ पर छोड़ते हैं कि सरकार कि आखिर निःशुल्क वितरण की क्या मंशा हो सकती है? लोक कल्याण, कानून की सीमाओं से राजनैतिक लाभ की प्राप्ति। 

क्या निःशुल्क अनाज वितरण उचित है? 


कानून की सीमाओं के चलते सरकार द्वारा निःशुल्क वितरण किया जा रहा है, लेकिन इसे लेकर आलोचक और समालोचक अपने-अपने तर्क देते हैं, जो यूँ है -
  • आलोचक - सरकार द्वारा फिजूल खर्च किया जा रहा है। सरकार का एक मात्र उदेश्य मतदाताओं को रिझाना है, इसके अतिरिक्त इसका कोई मतलब नहीं है। 
  • समालोचक - मुफ्त अनाज वितरण से, व्यक्ति विशेष का खाद्यान्नों पर खर्च कम हुआ है। इसी का परिणाम है कि भारत में गरीबी 5% के नीचे चली गई है। व्यक्ति की खर्च योग्य आय बढ़ी है, जिससे बाजार मांग और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है। 

अर्थव्यवस्था पर इसके अपने प्रभाव है, जो सरकार की नीतियों के अनुरुप हो सकते हैं। लोक कल्याण और लाभार्थियों के आक्रमक स्वरूप को देखा जाए तो निःशुल्क किए जाने से योजना का लाभ लेने के लिए अधिक उत्साहित नजर आते हैं, जो एक लोक कल्याणकारी सरकार के लक्ष्य प्राप्ति में सहायक है। 

निःशुल्क अनाज वितरण पर राजनीति क्यों? 


निःशुल्क अनाज वितरण किया जाना कानूनी रूप से ठीक नहीं है, लेकिन अनुचित भी नहीं है। सरकार इसे एक लोककल्याणकारी योजना के रुप में प्रस्तुत करती है और गरीब कल्याण के उदाहरण के तौर पर पेश करती है। वहीं दूसरी ओर, विपक्ष इसे अपव्यय करार देता है। विपक्ष ढांचागत विकास में अड़ंगे के तौर पर गिना सरकार की नाकामी को दर्शाने की कोशिश करता है। ठीक इसी तरह के ब्यान और विचार सरकार समर्थकों और विरोधियों के है। 

मुफ्त खाद्यान्न वितरण के चलते सत्ताधारी दल को पिछले कई चुनाव में लाभ मिला है। वोटर खुलकर सरकार की उपलब्धियों में इस योजना को गिनाता है। मुफ्त अनाज वितरण योजना ने मतदाता के मन में सत्ताधारी दल के लिए सकारात्मक भाव उत्पन्न किए हैं, जो विपक्षी दलों पर भारी पड़ रहे हैं। विपक्षी सरकार को नाकाम कह सकते हैं लेकिन लोककल्याणकारी योजनाओं के चलते यह साबित नहीं कर पा रहे। दूसरी ओर, घटती गरीबी रेखा के नीचे के परिवारो की संख्या ने विपक्ष में खलबली मचा दी, ऐसे में इस तरह के प्रश्न उठाना लाजिमी है। 

एक विशेष धड़ा इस बात को लेकर चिंतित हैं कि बाजार में खाद्यान्न मांग पहले की तुलना में अधिक स्थिर है, ऐसे में मूल्यों के उच्चावचन से होने वाला अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा है। वही देखा जाए तो सरकार द्वारा पहले की अपेक्षा अधिक खाद्यान्न वितरण किए जाने से एमएसपी पर खरीद में भी इजाफा हुआ है, ऐसे में राजनीतिक प्रश्न उठना लाजिमी है। 

मुफ्त अनाज लेने वाले सभी गरीब हैं? 


जब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 पारित किया गया तब लाभार्थी वर्ग की कई योग्यता रखी गई यथा - 
  • अंत्योदय अन्न योजना के परिवार, 
  • प्राथमिक परिवार, 
  • गरीबी रेखा के नीचे के परिवार और 
  • अन्य - विधवा, विकलांग और 60 वर्ष से अधिक आयु वाले मुखिया के परिवार। 

ये सभी परिवार ग्रामीण जनसंख्या का 75% और शहरी जनसंख्या का 50% जनसंख्या तक के हो सकते हैं। ऐसे में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारो के अतिरिक्त अन्य प्राथमिक परिवारो को सम्मिलित किया गया है इसलिए हम यह नहीं कह सकते हैं कि यह महज गरीब परिवारो के लिए हैं। 

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के अनुसार इसके लाभार्थी योग्यता के मुकाबले संख्या बल पर अधिक जोर देता है। अधिनियम के अनुसार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारो के अतिरिक्त योग्य परिवार चयनित कर उन्हें लाभ दिया जा रहा है। 

अन्य प्रश्न - 


प्रश्न - राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम कब लागू हुआ? 

उत्तर - राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 12 सितंबर, 2013 को लागू हुआ। 

प्रश्न - राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 में अधिकतम कितनी जनसंख्या शामिल की जा सकती है? 

उत्तर - राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 में ग्रामीण कुल जनसंख्या की 75% आबादी और शहरी क्षेत्र की कुल आबादी की 50% जनसंख्या कवर की जा सकती हैं। 

प्रश्न - राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 में क्या मुफ्त अनाज दिया जा सकता है? 

उत्तर - राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अनुसार अनाज का कोई न्यूनतम मूल्य निर्धारित नहीं है। ऐसे में निःशुल्क अनाज वितरण संभव है? 

प्रश्न - राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 में क्या अन्न का कोई मूल्य वसूला जा सकता है? 

उत्तर - राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अंतर्गत फिलहाल सरकार निःशुल्क अनाज वितरण कर रही है किन्तु सत्कार चाहे तो मूल्य वसूल कर सकती है क्योंकि अधिनियम के अनुसार मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम होना चाहिए। ऐसे में जब यह योजना यूपीए सरकार द्वारा लागू की गई तब गेंहू 2/- किलो और चावल 3/- किलो वितरित किया जाता था। 

प्रश्न - क्या 80 करोड़ लोगों को निशुल्क गेंहू देना अनुचित है? 

उत्तर - राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अनुसार सरकार द्वारा निश्चित की गई दर (न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम जो शून्य भी हो सकती हैं) पर प्राप्त करना उनका भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार अधिकार है। 

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