मूंग: उत्तम पोषक तत्वों से भरपूर दलहन का परिचय। Moong Dal

मूंग एक दलहनी फसल है। मूंग एशिया महाद्वीप खासतौर से भारत और चीन में उगाई जाने वाली ग्रीष्मकालीन फसल है। दोमट और बलुई मिट्टी मूंग की फसल के लिए उपयुक्त होने के कारण राजस्थान में अधिकाधिक होती है।
मूंग एक दलहनी फसल इसका उपयोग दाल बनाने के लिए किया जाता है इसका पौधा छोटे आकार का होता है। जिसमें एक फली लगती है, जिसमें. मूंग के बीज होते हैं। मूंग का उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने में भी किया जाता है, जिसके कारण बाजार में मूंग की अच्छी खासी मांग होती है।

मूंग का वैज्ञानिक वर्गीकरण -


तथ्य  स्पष्टीकरण 
जगत  पौधा (Plantae) 
कुल  फेबेसिए (Fabaceae
वंश  विग्ना (Vigna) 
जाति  रेडिएटा (Radiata) 
वैज्ञानिक नाम  विग्ना रेडिएटा (Vigna Radiata) 

मूंग कैसा होता है?


मूंग का पौधा छोटा होता है, लेकिन जमीन पर फैला हुआ नहीं होता है। सामन्यतः मूंग के पौधे की ऊंचाई 2-2.5 फीट की होती है। इसके पत्ते हरे रंग के बड़े-बड़े होते हैं जिसके कारण इसकी डंटल भी मजबूत होती है। मूंग की बुवाई के सामन्यतः 45 दिन बाद (पुष्पीकरण वैरायटी पर निर्भर) इसमे फूल लगना शुरु हो जाते हैं। कुछ दिन बाद इसमे हरी फलियां लगती है। जब फलियाँ सूख जाती हैं तो काली हो जाती है। एक फली में 8-15 तक बीज होते हैं, इन्हीं बीज को मूंग कहा जाता है। 
मूंग का दाना हरे रंग का होता है जिसमें एक सफेद लकीर होती है। इसी लकीर से अंकुरण होता है मूंग का दाना बाजरे के दाने से बड़ा होता है। मूंग के दाने की परत जिसे छिलका भी कहते हैं, (भूसी) हरी होती है जिसमें सफेद हल्का पीला गुदा होता है। सामन्यतः मूंग की दाल भी छिलका सहित और रहित दोनों प्रकार की होती है, किंतु बाजारो में छिलका रहित की मांग अधिक होने से यह सफेद हल्की पीली दिखाई देती है। 

मूंग की खेती कब की जाती है -


मूंग एक ग्रीष्मकालीन फसल है, इसलिए सामन्यतः इसकी बुवाई मार्च महीने में की जाती है, किंतु राजस्थान में खरीफ की फसल के दौरान भी उपयुक्त तापमान के बने रहने के कारण इसकी खेती खरीफ के मौसम जुलाई में भी होती है। मूंग के लिए तापमान 20° से 40° सेल्सियस तक उपयुक्त माना जाता है। मूंग की बुवाई के बाद 25° सेल्सियस का तापमान अंकुरण के लिए उपयुक्त है। इसके लिए पहले खेत को कृषि के लिए तैयार कर 45 सेमी की दूरी की कतार और पौधों के बीच 25 सेमी का अन्तर रखकर बुवाई की जाती है। बुवाई के लिए सामन्यतः ट्रैक्टर द्वारा ही किया जाता है।

अच्छी उपज प्राप्त हो इसके लिए ग्रीष्मकालीन फसल 15 मार्च से 15 अप्रैल के बीच और खरीफ की फसल 15 जून से 15 जुलाई के बीच बोनी होती है। भूमि में उपयुक्त नमी के समय बुवाई करने के 4-5 दिन बाद पौधे उग आते हैं। पौधों के उग आने के बाद अगर खेत में खरपतवार उग आए तो उसे साफ किया जाना चाहिए। फली समय से नहीं आए या दीमक लग जाता है तो दवा का छिड़काव भी किया जाता है। हालांकि मूंग की फसल के लिए 65 सेंटीमीटर वर्षा की आवश्यकता होती है, जिसके कारण खरीफ की फसल मानसूनी बरसात से ही पककर तैयार हो जाती हैं।

मूंग का उपयोग -


मूंग का उपयोग दाल के अतिरिक्त कई प्रकार के व्यंजनों को बनाने में किया जाता है। मूंग में कई पोषक तत्व उपलब्ध है, जिसके कारण मूंग की बाजार में अच्छी खासी मांग होती है तो पहले एक बार मूंग में उपलब्ध पोषक तत्वों पर नजर डाल देते हैं। 
पोषक तत्व (प्रति 200 ग्राम उबली हुई)  मात्रा 
कैलोरी  212 ग्राम 
वसा  0.8 ग्राम 
प्रोटीन  14 ग्राम 
कार्बोहाइड्रेट  38 ग्राम 
विटामिन  B1, B2, B3, B5, B6
फाइबर  15 ग्राम 
फोलेट  B9
मैग्नीशियम  RDI का 24%
मैंगनीज  RDI का 30%
आयरन  RDI का 20%
पोटेशियम  RDI का 15%
फास्फोरस RDI का 20%
मैंगनीज  RDI का 30%
जिंक  RDI का 11%

मूंग मे भोजन के आवश्यक तत्वों के साथ कई अतिरिक्त पोषक तत्व उपलब्ध हैं। मूंग में कई पोषक तत्व होने के कारण दाल के अतिरिक्त कई प्रकार की आयुर्वेदिक दवा बनाने में उपयोग किया जाता है। मूंग दाल का उपयोग नूडल्स, केक और जेली बनाने में भी किया जाता है। अस्पतालों में मरीजों के लिए बनाई जाने वाली खिचड़ी में मूंग दाल का उपयोग इसके महत्व के कारण ही होता है। मूंग में विद्यमान पोषक तत्वों के कारण मूंग दाल से विभिन्न उत्पाद बनाये और बेचे जाते हैं। 

मूंग के सेवन के फायदे -


मूंग मे विद्यमान पोषक तत्वों के कारण मूंग के सेवन से व्यक्ति को कई लाभ प्राप्त होते हैं। यही कारण है कि मूंग दाल का सर्वाधिक उपयोग दाल और खिचड़ी में होता है। इसके कुछ फायदे निम्नलिखित है - 

  • पाचन तंत्र को मजबूती - मूंग में फाइबर की उपयुक्त मात्रा होती है, जिससे इसका सेवन व्यक्ति के पाचन तंत्र को मजबूत करता हैं। 
  • हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करना - मूंग में एंटीहाइपरटेंसिव गुण पाया जाता है, जो व्यक्ति के शरीर के ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है।
  • संक्रमण के दौरान और संक्रमण से बचाव - मूंग में संक्रमण के विरुद्ध लड़ने वाले गुण पाए जाते हैं, यही कारण है कि अस्पतालों में मरीज़ को किसी भी प्रकार के संक्रमण और उसके संभावित खतरों से बचाने के लिए मूंग की दाल उपयोग की जाती है।
  • मधुमेह - मूंग में फाइबर की अधिकता और शर्करा की कमी होती है, जो शरीर में शुगर के लेवल को नियंत्रित करने में सहायक होती है। 
  • कोलेस्ट्रॉल - मूंग में पाया जाने वाला विटामिन ई ऐसे एंजाइम को नियंत्रित करता है, जो मानव शरीर में कोलेस्ट्राल की मात्रा को बढ़ा देते हैं।
  • कैंसर - मूंग में पाए जाने वाले कई प्रकार के प्रोटीन जो स्तन कैंसर, ब्लड कैंसर और पाचन तंत्र का कैंसर को फैलने नहीं देते हैं। 
  • सूजन - मूंग daktar मे एंटी इन्फ्लेमेंटरी गुण पाया जाता है, जो शरीर के किसी भी हिस्से की सूजन को कम करने में अधिक क्रियाशील होता है। 
  • एनर्जी - मूंग में भरपूर मात्रा में प्रोटीन और आयरन पाया जाता है, जो मानव शरीर को भरपूर एनर्जी प्रदान करते हैं। 
  • वजन घटाना - मूंग में प्रोटीन और वसा अधिक होने से लंबे समय तक भूख नहीं लगती है, परिणामस्वरूप व्यक्ति कम भोजन करता है जो वजन को घटाने में मदद करता हैं। 

अस्वीकरण - हमारे द्वारा दिए गए सभी लाभ शोध के आधार पर है, किंतु मूंग दाल के सेवन के कुछ नुकसान भी होते हैं। मूंग गुर्दे को अधिक प्रभावित करते हैं, ऐसे में चिकित्सक की सलाह के अभाव में सेवन ना करे। मूंग दाल का सेवन बढ़ा लेने से पूर्व एक बार चिकित्सक से परामर्श अवश्य करे। 

मूंग दाल से घरों में बनाये जाने वाले व्यंजन -


मूंग का उपयोग दाल में सर्वाधिक होता है। मूंग की दाल बनाने के लिए मूंग के दानों को दो समान हिस्सों में काटकर (पीसकर) इसके छिलके को हटा दिया जाता है। हालांकि दाल छिलका सहित भी हो सकती है, जो छिलका रहित के मुकाबले में अधिक प्रोटीन युक्त होती है। छिलका रहित मूंग दाल का उपयोग कई प्रकार के व्यंजनों को बनाने में किया जाता है, आइए कुछ ऐसे लजीज व्यंजन बताए जो मूंग दाल से बनते हैं - 

  • मूंग दाल वड़ा - मूंग की दाल से शानदार वड़ा बनाने के लिए दाल को गिला कर मिक्सी या चक्की से पिसा जाता है। पीसी हुई दाल में मिर्च, हल्दी, प्याज, लहसून और अन्य सब्जी में मिलाए जाने वाले सभी प्रकार के मसालों को डाल कर एक पेस्ट तैयार कर छोटे-छोटे वड़ा बनाकर उबलते तेल में डालकर फ्राई कर लिया जाता है। मूंग दाल के वड़ा घर में बनाये जाने के अतिरिक्त बाजार में चाट भंडार पर भी मिलते हैं। इसे विभिन्न प्रकार का टैस्ट देने के लिए विभिन्न प्रकार की खट्टी और नमकीन चटनी भी बनाई जाती है, इसमे डुबोकर इसे खाया जाता है। 
  • मूंग दाल के लड्डू - मूंग दाल के बेहतरीन लड्डू भी बनते हैं। खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रो में सर्दी के मौसम में बच्चों के लिए मूंग के मनपसंद लड्डू बनाएँ जाते हैं। मूंग दाल के लड्डू में अपनी पसंद के अनुसार ड्राई फ्रूट्स डाले जा सकते हैं, इस कारण इसे मनपसंद लड्डू कहा जाता है। मूंग दाल के लड्डू घी में बनाए जाते हैं। 
  • मूंग दाल का हलवा - मूंग की दाल का हलवा बड़ा लजीज बनता है इस कारण आजकल बेसन के हलवे की जगह मूंग दाल का हलवा लेता जा रहा है। मूंग दाल का हलवा बनाने के लिए देशी घी की आवश्यकता होती है। 
  • मूंग दाल चीला/रोटी - मूंग की दाल को पीसकर पेस्ट बनाकर तवे पर पेस्ट को बराबर मात्रा में इस प्रकार से फैलाए जैसे रोटी बनाई जा रही है। अन्य तरीके में कहे तो जैसे डोसा बनाने के लिए पेस्ट को जैसे तवे पर फैलाया जाता है यूँ ही फैलाकर रोटी बनाई जाती है। इसके लिए पीसी हुई दाल में अपनी पसंद के मसालों को मिला कर पेस्ट तैयार कर तेल से चिकना किए हुए तवे पर लगाकर आवश्यकतानुसार और तेल डालकर रोटी बनाई जाती हैं। इसे कुछ लोग पेन केक कहते हैं तो कई लोग चीलड़ा कहते हैं।
  • मूंग दाल के पकौड़े - मूंग दाल के वड़ा के अतिरिक्त मूंग दाल के पकौड़े भी बनते हैं। मूंग दाल से बढ़िया कुरकुरे पकोड़े बनते हैं, जो प्याज, पालक और मैथी पत्तों के साथ बनाये जा सकते हैं। 

इनके अतिरिक्त मूंग दाल से खिचड़ी और अन्य सब्जी के साथ मिक्स कर सब्जी भी बनाई जा सकती हैं। मूंग दाल को आजकल यूँ ही तल कर मूंग दाल के नाम से बंद पैकेट में बाजार में बेचा जाता है, जिसे बच्चे बहुत पसंद करते हैं। इनके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के मूंग दाल के नूडल्स बाजार में तैयार और तैयार करने योग्य भी बाजार में मिल जाते हैं। राजस्थान प्रदेश में महिलाएं मूंग दाल से वड़िया बनाती है जिसका उपयोग सब्जी बनाने के लिए किया जाता है। मूंग की वड़ी के साथ प्याज, टमाटर और अन्य सब्जियां मिलाकर सब्जी बनाई जा सकती है। 

मूंग को भिगोकर खाना -


आजकल डॉक्टर कई लोगों को आखा धान खाने की सलाह देते हैं। कई लोग शौक से तो कई स्वास्थ्य के कारणों को ध्यान में रखते हुए मूंग के दानों को शाम के समय भिगोकर सुबह नाश्ते के रूप में खाते हैं। ऐसे लोग शाम के समय एक मुट्ठी मूंग के बीज लेकर भिगो देते हैं और सवेरे नर्म हो जाने के बाद आराम से खाते हैं। ऐसे भिगोये हुए मूंग को स्वादिष्ट बनाने के लिए इस पर कुछ मसाले छिड़क दिए जाते हैं। आजकल कई हास्टल में जहां बच्चे पढ़ने के लिए रहते हैं वहाँ मूंग दाल की खिचड़ी के साथ मूंग मसाला भी नाश्ते के रुप में दिया जाता है ताकि बच्चे सवेरे पोष्टिक नाश्ता ले सके। 

कुछ लोग अंकुरित मूंग खाना पसंद करते हैं। जो लोग अंकुरित मूंग खाना पसंद करते हैं उन्हें मूंग भिगो देने के बाद अंकुरित होने में समय लगता है। मूंग का अंकुरण होने में समय लगता है। ऐसे में मूंग को अंकुरित होने के लिए किसी बर्तन में डालकर सवेरे पानी में भिगो दीजिए। जब पूरी तरह से भीग जाए तब उसे बर्तन से निकालकर किसी नर्म कपड़े में डालकर लपेट देना चाहिए और कपड़े को थोड़ा-थोड़ा भिगोते रहे। ऐसा करने से मूंग में बदबू नहीं आएगी और 12 घंटे बाद मूंग अंकुरित हो जायेगे। मूंग पूरी तरह से अंकुरित होने के बाद इसमे एक इंच की जड़ निकल आती हैं और इसकी पौष्टिकता भी बढ़ जाती है। अंकुरित मूंग अपनी पौष्टिकता के कारण सबसे उत्तम नाश्ता है। 
सवेरे नाश्ते में लिया गया मूंग सर्वाधिक उपयुक्त होता है क्योंकि सुबह रातभर का पेट खाली होता है। रात का खाना सुबह तक पाचन हो जाता है, इसलिए सवेरे अच्छा और पोष्टिक नाश्ता खाना चाहिए। मूंग बहुत पोष्टिक होता है साथ ही सुबह खाने से इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाता है। सुबह आप मूंग का नाश्ता ले लेते हैं तो पाचन तंत्र मजबूत होने के साथ दिनभर भूख भी नहीं लगती है, बस एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप दिनभर पानी भरपूर मात्रा में पीए ताकि शरीर में पानी की कमी ना हो। 

अन्य प्रश्न -


प्रश्न - मूंग दाल का सेवन करने की सलाह क्यों दी जाती है?

उत्तर: मूंग मे कई पोष्टिक तत्व पाए जाते हैं जो मानव शरीर के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। इसमे संक्रमण से लड़ने की ताकत के साथ ही इम्यून सिस्टम को बेहतर करने का गुण होता है, इसी कारण अस्पताल में भी मरीजों को मूंग की खिचड़ी दी जाती हैं। 

प्रश्न मूंग वड़ा और मूंग पकौड़े में क्या अंतर है?

उत्तर: वड़ा नर्म होता है जबकि पकौड़ा कुरकुरा होता है। 

प्रश्न - चीलड़ा क्या होता है?

उत्तर: मूंग अथवा मोठ के आटे (पीसी हुई दाल) से तवे पर बनाई जाने वाली रोटी को चीलड़ा कहा जाता है। 

प्रश्न - मूंग अंकुरित होने में कितना समय लगता है?

उत्तर: मूंग के अंकुरित होने का समय तापमान पर निर्भर करता है जो 12 घंटे से 3 दिन तक का हो सकता है। 

प्रश्न - मूंग की रेट क्या है?

उत्तर: मूंग की थोक रेट 80/- रुपये प्रति किलो तक है। 

प्रश्न - मूंग की फसल की बुवाई कब होती हैं?

उत्तर: मूंग की फसल साल में दो बार होती है। ग्रीष्मकालीन मूंग की फ़सल की बुवाई 15 मार्च से 15 अप्रैल के मध्य और खरीफ की फसल की बुवाई 15 जून से 15 जुलाई के बीच की जानी चाहिए। 

प्रश्न - मूंग की फसल के लिए कैसी भूमि उपयुक्त है?

उत्तर: मूंग की फसल के लिए दोमट और बलुई मिट्टी उपयुक्त है। 

प्रश्न - मूंग की फसल में दीमक लगने पर क्या करे?

उत्तर: दीमक से बचने के लिए सामन्यतः फसल की बुवाई से पूर्व खेत में क्लोरोपायरीफोस का छिड़काव किया जाना चाहिए। 

प्रश्न - मूंग पर फूल आए है फली नहीं लगी है, क्या करे?

उत्तर: ऐसा पीत चितेरी रोग जो येलो मौजेक वायरस के कारण होता है। इसने फलियां देरी से लगने के साथ बहुत कम लगती और पौधे से पत्ते पीले होकर गिरने लगते हैं। ऐसा होने पर आक्सीडेमेटान मेथाइल 0.1% या डायमेथोएट 0.3% प्रति हेक्टेयर 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर 3 से 4 बार छिडकाव करें।

प्रश्न - मूंग के पौधों की पत्तियाँ का आकार बड़ा होने के साथ पत्तियाँ मुड़ने लग गई, क्या करे?

उत्तर: ऐसा पर्ण व्यांकुचन रोग के कारण होता है इसे लीफ क्रिंकल रोग के कारण होता है। यह रोग पौधा उगने के 15 दिन बाद फैलता है, जो बीज़ द्वारा या सफेद मक्खी से फैलता है। इस रोग का पता चलते ही संक्रमित पौधो को जड़ से उखाड़ कर जलाकर नष्ट कर देना चाहिए। 

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