निर्जला एकादशी : सभी व्रत पर एक भारी, सभी का पुण्य। Nirjla Ekadashi

निर्जला एकादशी : सभी व्रत पर एक भारी, सभी का पुण्य। Nirjla Ekadashi

हिंदू धर्म में व्रत और उपवास का बहुत महत्व है। कई प्रकार के उपवास और व्रत सालभर किए जाते हैं। पुरुष और महिलाएं दोनों ही व्रत उपवास करते हैं। व्रत से अभिप्राय विशेष प्रतिज्ञा, संकल्प और पवित्र अनुष्ठान अथवा प्रार्थना किए जाने से हैं। हिंदू संस्कृति में भक्तों/उपासकों द्वारा विशेष रूप से भोजन और पेय को विशिष्ट समय तक ग्रहण ना कर तरफ तपस्या किया जाना व्रत कहलाता है।

निर्जला एकादशी : सभी व्रत पर एक भारी, सभी का पुण्य। Nirjla Ekadashi


निर्जला एकादशी ज्येष्ठ महीने की शुक्ल एकादशी को कहा जाता है। इस दिन व्रत करने का महाभारत के समय से बड़ा महत्व हैं। साल में एक दिन यानी सिर्फ निर्जला एकादशी को व्रत कर सभी पापो से मुक्त हो स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती हैं।

निर्जला एकादशी क्या होती है?


ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस दिन हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार बिना अन्न और जल के व्रत किया जाता है। बिना जल के व्रत किए जाने के कारण ही इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस दिन निर्जल व्रत करते हुए भगवान विष्णु की स्तुति की जाती है।

निर्जला एकादशी को पाण्डव एकादशी और भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है। इसे गाँव में लोग आम्बा (आम) एकादशी कहते हैं। इस दिन आम और इमली का अधिक सेवन करने के साथ दान भी किया जाता है, इस कारण इसे आंबा एकादशी कहते हैं।

कैसे करते हैं, निर्जला एकादशी का व्रत?


निर्जला एकादशी का व्रत दशमी की रात्रि से ही शुरु हो जाता है। दशमी की रात्रि को उपासक खाना खाकर सो जाते है। एकादशी के दिन में बिल्कुल भी खाना नहीं खाया जाता हैं। खाना द्वादशी की सुबह स्नान करने के उपरांत पीले रंग के वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु की पूजा कर खाया जाता है। इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है, इसी कारण इसे आम्बा (पीला रंग) एकादशी भी कहते हैं। पीले रंग का विशेष महत्व होने से पीली वस्तुओं का ही दान किया जाता हैं। एकादशी के दिन को अगर पूरे दिन पानी नहीं पिया जाये और निर्जल व्रत रखा जाये तो सालभर के सभी व्रत का पुण्य प्राप्त होता हैं।

राजस्थान में इस समय बहुत तेज गर्मी होती है, सामन्यतः निर्जला एकादशी के जून में आने के कारण। 50° सेल्सियस तापमान में दिनभर निर्जल रहना बहुत मुश्किल काम होता है, ऐसे में एकादशी के दिन दोपहर में पीपल के वृक्ष का पूजन कर इमली पानी में घोल पानी पी लिया जाता है। दिन में 2-3 बार इमली का पानी पी लिया जाता है और आम के फल का सेवन भी किया जाता है। वट में पानी डालने के लिए उपयोग में लिया जाने वाला मटका दान कर दिया जाता है।

निर्जला एकादशी की कथा -


जैसा कि पहले ही बता दिया कि निर्जला एकादशी को पाण्डव एकादशी और भीमसेन एकादशी कहा जाता है। ऐसे में निर्जला एकादशी की कथा पाण्डव भीमसेन से ही जुड़ी हुई है। आइए सुनिए कथा -

पाण्डव भीमसेन वेद व्यासजी से प्रार्थना करने लगे- हे पितामह! मेरे सभी भ्राता युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल सहदेव और माता कुंती, द्रौपदी सब एकादशी का व्रत करते हैं और मुझे भी व्रत करने को कहते हैं, परंतु महाराज मैं उदर क्षुधा (भूख) को सहन नहीं कर सकता इसलिए उनसे कहता हूँ कि मैं पूजा तो कर सकता हूँ, दान भी दे सकता हूँ परंतु भोजन किए बिना नहीं रह सकता हूं। 

भीमसेन की बात को सुनकर व्यासजी कहने लगे हे भीमसेन! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रति मास की दोनों एक‍ा‍दशियों को अन्न ग्रहण मत किया करो। भीम कहते हैं, हे पितामह! मैं स्वीकर कर छङ का हूं कि मैं भूखा नहीं रह सकता। यदि वर्षभर में कोई एक व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूँ, मेरे पेट में वृक अग्नि है इसलिए मैं बिना भोजन किए नहीं रह सकता। भोजन करने के उपरांत ही यह अग्नि शांत होती है, इसलिए पूरे दिन का उपवास तो क्या? मैं तो एक समय भी बिना भोजन के नहीं रह सकता हूं। 

भीमसेन व्यास जी से विनती करने लगे - हे पितामह! आप मुझे कोई ऐसा उत्तम व्रत बताइए जो वर्ष में एक बार ही करना पड़े और स्वर्ग की प्राप्ति हो। व्यासजी कहने लगे कि हे पाण्डुपुत्र भीम! ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति सम्भव है। ठीक इसी प्रकार शास्त्रों में प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की एका‍दशी का व्रत सांसारिक मुक्ति के लिए रखे जाने का संकल्प है।

व्यासजी की बात सुनकर भीमसेन नरक में जाने के नाम से घबरा गए और काँपते हुए कहने लगे कि अब मैं क्या करूँ? प्रत्येक मास की दोनो एकादशी का व्रत तो मैं नहीं रख सकता। हाँ, वर्ष में केवल एक एकादशी का व्रत करने का प्रयत्न जरूर कर सकता हूँ। अत: वर्ष में केवल एक दिन का व्रत करने से यदि मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताइए।

भीमसेन की वात को सुन व्यासजी कहने लगे हे भीमसेन! वृषभ और मिथुन संक्रां‍‍ति के मध्य ज्येष्ठ मास की शुक्ल एकादशी आती है, जिसका नाम निर्जला है। तुम निर्जला एकादशी का व्रत रखो। इस एकादशी के व्रत के दिन स्नान और आचमन के सिवा जल ग्रहण करना वर्जित है। आचमन में छ: मासे से अधिक जल ग्रहण नही सकते हैं, इससे अधिक ग्रहण पर यह नहीं मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन भी नहीं करना चाहिए, अन्न ग्रहण करने से व्रत नष्ट हो जाता हैं।

यदि ज्येष्ठ मास की शुक्ल एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल का ग्रहण न करे तो उसे सभी 24 एकादशियों के व्रत का पुण्य प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके ब्राह्मणों को दान देना चाहिए। इसके पश्चात भूखे ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर आप भोजन ग्रहण करे। इस एकादशी के व्रत का पुण्य एक वर्ष की सभी एकादशियो के समकक्ष होता है।

व्यासजी कहने लगे कि हे पुत्र! निर्जला एकादशी व्रत के पुण्य और फल का वर्णन स्वयं प्रभु (भगवान) ने किया है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने का पुण्य समस्त तीर्थों और दान-पुण्य से भी अधिक है। मनुष्य सालभर में केवल एक दिन व्रत करके सभी दोषों से मुक्त हो सकता है।

जो मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन व्रत करते हैं उनकी मृत्यु के समय यमदूत आकर अपना उन्हें नहीं घेरते वरन भगवान के पार्षद उसको पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग ले जाते हैं। अत: संसार में सबसे श्रेष्ठ व्रत है। इसलिए यत्न के साथ इस व्रत को करना चाहिए। दिन में 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप और गौदान करना चाहिए।

व्यास जी द्वारा सूझाई स्टेटस गई राह से भीमसेन ने इस व्रत को करना शुरु किया। भीमसेन द्वारा इस व्रत को किए जाने से इसे  'भीमसेन एकादशी' या 'पांडव एकादशी' भी कहते हैं।

जो मनुष्य निर्जला एकादशी के व्रत को करते हैं उनको दान का फल भी मिलता है और जो इस दिन यज्ञ आदि करते हैं उसके फल का वर्णन किया जाना सम्भव नहीं है। निर्जला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की स्तुति से किया जाए तो मनुष्य 'विष्णुलोक' को प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, वो चांडाल के समान हैं और अंत में नरक को जाते हैं। जिसने निर्जला एकादशी के दिन निर्जला व्रत किया है वह चाहे ब्रह्म हत्यारा, मद्यपान करने वाला, चोरी करता हो या गुरु के साथ द्वेष रखता हो मगर इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग को जाता है।

हे कुंतीपुत्र! जो पुरुष या स्त्री श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करते हैं उन्हें अग्रलिखित कर्म करने चाहिए। प्रथम भगवान का पूजा, गौदान, ब्राह्मणों को मिष्ठान्न व दान-दक्षिणा देना तथा जल से भरे कलश का दान जरूर करना चाहिए। निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, उपाहन (जूती) आदि का दान भी अवश्य करना चाहिए। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस कथा को पढ़ते है या श्रवण करते हैं, उन्हें निश्चित रूप से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

निर्जला एकादशी के व्रत के नियम - 


सभी प्रकार के व्रत करने के लिए कुछ नियमो का पालन करना पड़ता है, ऐसे ही निर्जला एकादशी के व्रत के भी कुछ नियम है, जिनका पालन करना आवश्यक होता है। बिना नियमो के पालन किए व्रत खण्डित भी हो सकता है, ऐसे में निम्न नियमो का पालन किया जाना चाहिए - 
  • एकादशी के दिन जल नहीं पीना चाहिए। 
  • स्नान के अतिरिक्त आमचन (कुल्ला) किया जा सकता है। 
  • निर्जला एकादशी को तुलसी के पौधे को जल अर्पित नहीं करना चाहिए, वट और पीपल के वृक्ष को पानी देना चाहिए। 
  • जो लोग गौदान नहीं कर सकते, वो भी पीले वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु की पूजा करे। 
  • पीपल की पूजा करे और जल अर्पित करे। 
आवश्यक होने पर जल ग्रहण किया भी जा सकता है लेकिन उसके लिए उपासक को जल ग्रहण करने से पहले 12 बार 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का जाप कर थाली में जल लेकर घुटने और बाजू को जमीन पर टिकाकार पशुवत जल ग्रहण करना चाहिए। 

निर्जला एकादशी उद्यापन विधि - 


निर्जला एकादशी का व्रत दशमी की रात्रि को शुरु हो द्वादशी के सूर्योदय के साथ समाप्त होता है, ऐसे में इसका उद्यापन (समापन) व्रती को स्नान कर भगवान विष्णु की तिल और अक्षत का प्रसाद ग्रहण करने के बाद भोजन ग्रहण कर करना चाहिए। 

निर्जला एकादशी व्रत का महत्व - 


निर्जला एकादशी को सबसे बड़ी और पुण्य देने वाली एकादशी मानी जाती है। इस दिन व्रत करने के निम्न महत्व है - 
  • इस एकादशी को सर्वाधिक पुण्य प्राप्त होता है। 
  • सभी प्रकार के दोष से मुक्ति प्राप्त होती है। 
  • निर्जला एकादशी के उपवास से मोक्ष की प्राप्ति होती है ह
  • निर्जला एकादशी का व्रत करने से ग्रह दोष दूर होते हैं ह
  • निर्जला एकादशी का व्रत करने से स्वर्ण की प्राप्ति होती है। 
निर्जला एकादशी के दिन व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा स्वर्ग की राह खुलती हैं। 

महत्वपूर्ण प्रश्न - 


प्रश्न - निर्जला एकादशी किसे कहते हैं? 

उत्तर - ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। 

प्रश्न - निर्जला एकादशी कब होती है? 

उत्तर - निर्जला एकादशी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन होती है। 

प्रश्न - निर्जला एकादशी कब है? 

उत्तर - हिन्दू कैलेंडर के ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन, निर्जला एकादशी है। अधिकमास की दशा में बाद वाले ज्येष्ठ की शुक्ल एकादशी। 

प्रश्न - निर्जला एकादशी के अन्य नाम क्या है? 

उत्तर - निर्जला एकादशी के अन्य नाम 'भीमसेन एकादशी' और पाण्डव एकादशी 'है। 

प्रश्न - निर्जला एकादशी को भीमसेन एकादशी क्यों कहते हैं?

उत्तर - व्यास जी की आज्ञानुसार पाण्डव भीमसेन द्बारा ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन व्रत करने के कारण इसे भीमसेन और पाण्डव एकादशी कहा जाता है। 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ