आधुनिक समय में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था मुद्रा पर आधारित है। मुद्रा के माध्यम से ही बाजारों का संचालन किए जाने के साथ समाज के विभिन्न वर्गों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाते है। मुद्रा की आपूर्ति से नए रोजगार सृजन के साथ नवसृजन किया जाता हैं।
मुद्रा की मांग के अनुसार ही बाजारों में मुद्रा की आपूर्ति की जाती है। मुद्रा विनियम का मापन होता हैं, मुद्रा के भीतर बाजार को नियंत्रित करने की शक्ति होती हैं इसी कारण मुद्रा मांग के अनुसार आपूर्ति कर बाजार को नियंत्रित किया जाता है।
मुद्रा मांग
मुद्रा मांग (Demand for Money) का अर्थ है—व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकार द्वारा लेन-देन, बचत या सट्टा (speculative) उद्देश्यों के लिए मुद्रा (Cash और बैंक जमा) रखने की इच्छा। यह मांग विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है, जैसे व्यक्ति की आय, ब्याज दर, वस्तु व सेवाओं की कीमतें, तथा आर्थिक अनिश्चितता। मुद्रा की मांग दो प्रकार की होती है—लेन-देन हेतु मांग (जिसे व्यक्ति दैनिक जरूरतों के लिए रखता है) और सट्टा मांग (ब्याज दर में संभावित बदलाव को ध्यान में रखते हुए)। मुद्रा की मांग और आपूर्ति में असंतुलन से मुद्रास्फीति या मंदी हो सकती है।
मुद्रा मांग के कारण
मुद्रा की बाजार मांग निम्नलिखित कारणों से की जा सकती हैं ।
- लेन-देन की आवश्यकता: आर्थिक जीवन में हर व्यक्ति को वस्तुओं और सेवाओं की खरीदारी करनी होती है। इसके लिए नकद या बैंक बैलेंस की जरूरत होती है। जैसे-जैसे व्यक्ति की आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ती हैं, वैसे-वैसे लेन-देन हेतु मुद्रा की मांग भी बढ़ती है।
- सावधानी हेतु मांग: जीवन में कई बार अनिश्चित घटनाएँ घटती हैं, जैसे अचानक बीमारी, नौकरी छूटना या आपदा आ जाना। ऐसी परिस्थितियों में तत्काल खर्च के लिए लोग कुछ मुद्रा अपने पास सुरक्षित रखते हैं। इसे सावधानी हेतु मांग कहते हैं।
- सट्टा उद्देश्य (Speculative Motive): जब लोगों को लगता है कि भविष्य में शेयर बाजार या ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव हो सकता है, तो वे निवेश करने की बजाय मुद्रा अपने पास रोककर रखते हैं। इस प्रकार की मांग सट्टा उद्देश्य से की जाती है, ताकि वे सही समय पर निवेश कर लाभ कमा सकें।
- आय का स्तर: व्यक्ति की आय जितनी अधिक होगी, उसकी खर्च करने की क्षमता उतनी ही अधिक होगी। इससे वह ज्यादा मुद्रा अपने पास रखना पसंद करेगा, जिससे मुद्रा की मांग बढ़ेगी। अमीर लोग आम तौर पर अधिक नकद रखते हैं।
- मूल्य स्तर (Price Level): जब महंगाई बढ़ती है, तो सामान और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। इससे लोगों को वही वस्तुएँ खरीदने के लिए अधिक मुद्रा की आवश्यकता होती है। इस कारण मुद्रा की मांग महंगाई के साथ-साथ बढ़ती है।
- ब्याज दर (Interest Rate): यदि बाजार में ब्याज दरें कम हैं, तो लोगों को बैंक में पैसा रखने से बहुत लाभ नहीं होता। ऐसे में वे मुद्रा को नकद के रूप में अपने पास रखना बेहतर समझते हैं। इसके विपरीत, जब ब्याज दरें अधिक होती हैं, तो लोग नकद रखने की बजाय उसे बैंक या निवेश में लगाना पसंद करते हैं।
उपर्युक्त सभी कारणों से मुद्रा की मांग की जाती हैं।
मुद्रा की पूर्ति -
मुद्रा की पूर्ति (Money Supply) का अर्थ है—किसी देश की अर्थव्यवस्था में एक निश्चित समय पर उपलब्ध कुल मुद्रा की मात्रा। इसमें जनता के पास मौजूद नकद (Cash), बैंक जमा (जैसे चालू और बचत खाते), और अन्य तरल साधन शामिल होते हैं जिन्हें तत्काल खर्च किया जा सकता है।
सरल शब्दों में, मुद्रा की पूर्ति वह कुल मात्रा है जितनी मुद्रा किसी देश में लेन-देन, बचत या निवेश के लिए उपलब्ध होती है। यह पूर्ति मुख्य रूप से देश का केंद्रीय बैंक (जैसे भारत में RBI) और वाणिज्यिक बैंक मिलकर करते हैं।
मुद्रा पूर्ति के माप -
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 1961 में गठित की गई "मुद्रा और बैंकिंग पर समिति" (Committee on Currency and Finance) की सिफारिशों के आधार पर भारत में पहली बार मुद्रा पूर्ति को मापने के लिए औपचारिक मापदंड निर्धारित किए।
मुद्रा की पूर्ति के माप (Measures of Money Supply) को विभिन्न श्रेणियों में बाँटा गया है, जिन्हें M1, M2, M3, और M4 कहा जाता है। ये श्रेणियाँ अलग-अलग तरलता (liquidity) के आधार पर बनाई गई हैं:
यहाँ पर चारों मापों का विस्तार से वर्णन किया गया है:
- M1 (संकीर्ण मुद्रा / Narrow Money):
M1 = चलन में मुद्रा + मांग जमा + RBI के पास अन्य जमा
चलन में मुद्रा: वह नकद राशि जो जनता के पास होती है (नोट और सिक्के)
मांग जमा: बैंक खातों में ऐसी जमा जिसे बिना सूचना के कभी भी निकाला जा सकता है, जैसे चालू खाता
RBI के पास अन्य जमा: जैसे सरकारी संस्थाओं के खाते
विशेषता:
M1 सबसे अधिक तरल (liquid) होती है, यानी तुरंत खर्च करने योग्य।
इसका उपयोग दैनिक लेन-देन में किया जाता है।
- M2:
M2 = M1 + डाकघर बचत खाते की जमा (Post Office Savings Deposits)
इसमें M1 के साथ डाकघर में रखी गई वह बचत भी शामिल होती है जिसे जरूरत पड़ने पर निकाला जा सकता है।
इसमें तरलता M1 से थोड़ी कम होती है, लेकिन फिर भी काफी हद तक उपलब्ध रहती है।
- M3 (विस्तृत मुद्रा / Broad Money):
M3 = M1 + बैंक समय जमा (Time Deposits)
बैंक समय जमा: ऐसी जमा राशि जिसे कुछ निश्चित अवधि के लिए बैंक में रखा गया हो, जैसे फिक्स्ड डिपॉजिट।
M3 को सबसे व्यापक और सबसे अधिक उपयोगी माप माना जाता है।
यह मुद्रा पूर्ति का सबसे सामान्य और विश्वसनीय संकेतक होता है।
भारत में मौद्रिक नीति विश्लेषण में M3 का विशेष महत्व है।
- M4:
M4 = M3 + डाकघर की कुल जमा (National Saving Certificates को छोड़कर)
इसमें डाकघर में रखी गई सभी प्रकार की जमा राशि (Savings + Time Deposits) को भी शामिल किया जाता है।
सारांश रूप में तुलना
माप | घटक | तरलता |
---|---|---|
M1 | चलन में मुद्रा (नोट और सिक्के) + मांग जमा (चालू खाते) + आरबीआई के पास जमा | सबसे अधिक |
M2 | M1 +डाकघर बचत खाते की जमा | उच्च |
M3 | M1 + बैंक समय जमा (जैसे FD) | मध्यम |
M4 | M3 + डाकघर की कुल जमा (NSC को छोड़कर) | सबसे कम |
मुद्रा पूर्ति को प्रभावित करने वाली प्रमुख एजेंसियाँ (Agencies Affecting Money Supply)
वे संस्थाएँ हैं जो देश की मौद्रिक नीति, बैंकिंग प्रणाली और वित्तीय प्रवाह को नियंत्रित करती हैं। भारत में निम्नलिखित प्रमुख एजेंसियाँ मुद्रा पूर्ति को प्रभावित करती हैं:
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) - मुख्य एजेंसी जो भारत की मौद्रिक नीति निर्धारित करती है। मुद्रा निर्गमन, रेपो दर, रिवर्स रेपो दर, CRR, SLR, और खुली बाजार क्रियाओं (OMO) के माध्यम से मुद्रा पूर्ति को नियंत्रित करता है।
- भारत सरकार (Government of India) - बजट व्यय, कर नीति, और उधारी द्वारा मुद्रा की मांग और पूर्ति को प्रभावित करती है। जब सरकार बजट घाटे को पूरा करने के लिए RBI से उधार लेती है, तो मुद्रा आपूर्ति बढ़ती है।
- वाणिज्यिक बैंक (Commercial Banks) - क्रेडिट सृजन (Credit Creation) के माध्यम से मुद्रा पूर्ति को बढ़ाते हैं।जितना अधिक ऋण ये जनता को देते हैं, उतनी अधिक मुद्रा प्रणाली में प्रवाहित होती है।
- विदेशी निवेशक और विदेशी संस्थाएँ - FDI (Foreign Direct Investment) और FII (Foreign Institutional Investors) के माध्यम से विदेशी मुद्रा का प्रवाह होता है। विदेशी मुद्रा को रुपये में परिवर्तित करने से मुद्रा आपूर्ति बढ़ती है।
- डाकघर और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ (NBFCs) - ये संस्थाएँ भी जमा और ऋण सेवाएँ देती हैं जिससे मुद्रा के प्रवाह पर प्रभाव पड़ता है, विशेष रूप से M2 और M4 मापदंडों में।
- अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ (जैसे IMF, World Bank) - ये संस्थाएँ भारत को ऋण या सहायता देती हैं जिससे मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि हो सकती है।
उपर्युक्त सभी कारकों से मुद्रा की आपूर्ति बाजारों में निश्चित होती हैं।
मुद्रा का संचलन वेग (Velocity of Money Circulation)
मुद्रा संचलन वेग से तात्पर्य उस दर से है जिसके साथ अर्थव्यवस्था में मुद्रा एक अवधि में विभिन्न लेन-देन में उपयोग की जाती है। यह दर्शाता है कि एक मुद्रा इकाई कितनी बार हाथ बदलती है या कितनी बार इसका उपयोग वस्तुओं और सेवाओं की खरीद में होता है।
परिभाषा:
मुद्रा का संचलन वेग वह अनुपात है जो अर्थव्यवस्था के कुल नाममात्र व्यय (या सकल घरेलू उत्पाद, GDP) को मुद्रा आपूर्ति (Money Supply) से विभाजित करके प्राप्त होता है।
सूत्र: V = PQ/M
जहाँ:
(V) = मुद्रा का संचलन वेग
(P) = मूल्य स्तर (Price Level)
(Q) = वास्तविक उत्पादन (Real Output, अर्थात् वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा)
(PQ) = नाममात्र GDP (Nominal GDP)
(M) = मुद्रा आपूर्ति (Money Supply, जैसे M1, M2)
उदाहरण:
मान लीजिए किसी अर्थव्यवस्था का नाममात्र GDP (PQ) 10,000 करोड़ रुपये है और मुद्रा आपूर्ति (M) 2,000 करोड़ रुपये है। तब:
V = 10,000/ 2,000 = 5
इसका अर्थ है कि प्रत्येक रुपये का उपयोग औसतन 5 बार लेन-देन में हुआ।
प्रभावित करने वाले कारक:
आर्थिक गतिविधियाँ: अधिक व्यापार और खपत होने पर संचलन वेग बढ़ता है।
ब्याज दरें: उच्च ब्याज दरें मुद्रा को बचत में रखने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, जिससे वेग कम हो सकता है।
मुद्रा के प्रति विश्वास: यदि लोग मुद्रा पर भरोसा करते हैं, तो वे इसे अधिक उपयोग करते हैं, जिससे वेग बढ़ता है।
तकनीकी प्रगति: डिजिटल भुगतान और तेज लेन-देन से संचलन वेग बढ़ सकता है।
मुद्रास्फीति: उच्च मुद्रास्फीति में लोग जल्दी खर्च करते हैं, जिससे वेग बढ़ता है।
महत्व:
आर्थिक नीति: केंद्रीय बैंक (जैसे RBI) मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करते समय संचलन वेग को ध्यान में रखते हैं।
मुद्रास्फीति और उत्पादन: संचलन वेग में परिवर्तन मुद्रास्फीति या आर्थिक मंदी का संकेत दे सकता है।
मौद्रिक सिद्धांत: यह मात्रा सिद्धांत (Quantity Theory of Money) का हिस्सा है, जो मुद्रा आपूर्ति और मूल्य स्तर के बीच संबंध को समझाता है।
सीमाएँ:
सं Sexual Assault: यह मापना मुश्किल हो सकता है क्योंकि सभी लेन-देन पारदर्शी नहीं होते।
यह मानता है कि वेग स्थिर है, जो वास्तविकता में बदलता रहता है।
विभिन्न मुद्रा आपूर्ति माप (M1, M2) अलग-अलग वेग दे सकते हैं।
भारत में संदर्भ:
भारत में, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) और आर्थिक सर्वेक्षण समय-समय पर मुद्रा आपूर्ति और GDP के आँकड़ों के आधार पर संचलन वेग का विश्लेषण करते हैं। डिजिटल भुगतान (जैसे UPI) के बढ़ने से हाल के वर्षों में भारत में मुद्रा का संचलन वेग बढ़ा है।
यदि आप इस विषय पर अधिक विस्तार चाहते हैं, जैसे भारत में हाल के आँकड़े या विशिष्ट उदाहरण, तो कृपया बताएँ!
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