वर्तमान समय में आर्थिक प्रगति किसी भी राष्ट्र के विकास का मूल आधार है, और इस विकास यात्रा में व्यापारिक बैंकों (Commercial Banks) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। व्यापारिक बैंक केवल धन जमा करने और ऋण प्रदान करने वाले संस्थान नहीं हैं, बल्कि वे एक आधुनिक अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा के रूप में कार्य करते हैं।
बैंकिंग व्यवस्था के माध्यम से लोगों की बचत को एकत्रित कर उसे उत्पादन, व्यापार, उद्योग और सेवाओं में निवेश के लिए उपलब्ध कराना ही व्यापारिक बैंकों का मुख्य कार्य होता है। ये बैंक न केवल व्यक्तियों और संस्थाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं, बल्कि वे सरकार की आर्थिक नीतियों को लागू करने में भी सहायक भूमिका निभाते हैं।
आज, जब भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है, तब व्यापारिक बैंकों की सशक्त और उत्तरदायी व्यवस्था समाज के प्रत्येक वर्ग तक वित्तीय समावेशन (financial inclusion) सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक बन चुकी है। इस लेख में हम व्यापारिक बैंकों की संरचना, कार्य, महत्व, और उनके द्वारा देश की आर्थिक प्रगति में दिए गए योगदान की विस्तार से चर्चा करेंगे।
ऋण निर्माण अथवा साख निर्माण (Credit Creation) -
ऋण निर्माण (Credit Creation) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से बैंक अपने जमा (Deposits) का एक हिस्सा ऋण (Loan) के रूप में देकर अधिक मात्रा में धन का निर्माण करते हैं। इस प्रक्रिया में बैंक नई मुद्रा नहीं छापते, लेकिन वे मौजूदा जमा राशि से बार-बार ऋण देकर कुल धनराशि को बढ़ा देते हैं।
ऋण निर्माण (Credit Creation) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से वाणिज्यिक बैंक अपनी जमा राशि का एक भाग आरक्षित रखकर शेष भाग को ऋण के रूप में प्रदान करते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में कुल धन की मात्रा बढ़ जाती है। बैंक इस प्रक्रिया में नई मुद्रा नहीं छापते, बल्कि मौजूदा धन का बार-बार उपयोग करके आर्थिक गतिविधियों को गति देते हैं। इसे "मल्टीप्लायर प्रभाव" (Multiplier Effect) भी कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए किसी व्यक्ति ने बैंक में ₹1,000 जमा किए। यदि बैंक को 10% नकद आरक्षित अनुपात (CRR) रखना है, तो वह ₹100 अपने पास रखकर ₹900 का ऋण दे सकता है। यह ₹900 जब किसी अन्य व्यक्ति के खाते में जमा होता है, तो वह बैंक ₹90 रोककर ₹810 का ऋण दे सकता है। यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक ऋण देने की क्षमता समाप्त नहीं हो जाती।
इस प्रक्रिया से ₹1,000 की मूल जमा से लगभग ₹10,000 तक का ऋण सृजित हो सकता है। इस प्रकार, ऋण निर्माण के माध्यम से बैंक न केवल धन का प्रवाह बढ़ाते हैं, बल्कि आर्थिक विकास, निवेश और रोजगार को भी बढ़ावा देते हैं।
ऋण निर्माण की प्रक्रिया (Credit Creation Process) -
व्यापारिक बैंक केवल जमा स्वीकार करने और ऋण देने तक सीमित नहीं होते, बल्कि वे अर्थव्यवस्था में नए धन का निर्माण भी करते हैं। इसे ही "ऋण निर्माण की प्रक्रिया" या "क्रेडिट क्रिएशन" कहा जाता है। यह प्रक्रिया बैंकिंग प्रणाली की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है, जो आर्थिक विकास में प्रमुख भूमिका निभाती है।
- प्रारंभिक जमा (Initial Deposit) - ऋण निर्माण की प्रक्रिया उस समय शुरू होती है जब कोई व्यक्ति बैंक में नकद जमा करता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए किसी ग्राहक ने बैंक में ₹10,000 जमा किए। यह जमा राशि बैंक की देनदारी होती है, लेकिन यह बैंक को ऋण देने की क्षमता भी प्रदान करती है।
- नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio - CRR) - रिज़र्व बैंक द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि बैंक को अपने कुल जमा का कितना प्रतिशत रिज़र्व के रूप में रखना होगा। इसे नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है। अगर CRR 10% है, तो: ₹10,000 का 10% = ₹1,000 रिज़र्व रखा जाएगा शेष ₹9,000 बैंक ऋण के रूप में देगा
- ऋण देना और नया जमा (Loan & Re-deposit) - जब बैंक ₹9,000 का ऋण देता है, तो वह नकद नहीं देता, बल्कि ग्राहक के खाते में यह राशि डालता है। ग्राहक इस राशि का उपयोग वस्तुएँ या सेवाएँ खरीदने में करता है, और अंततः यह पैसा किसी अन्य व्यक्ति के बैंक खाते में जमा हो जाता है। अब यह ₹9,000 एक नया डिपॉजिट बन गया है।
- ऋण निर्माण की श्रृंखला (Credit Creation Cycle) - अब यह नया डिपॉजिट फिर से बैंक द्वारा उसी नियम के तहत प्रयोग किया जाता है: ₹9,000 का 10% = ₹900 रिज़र्व शेष ₹8,100 ऋण के रूप में जारी। यह प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है। हर बार बैंक थोड़ा-सा पैसा रिज़र्व में रखकर शेष राशि ऋण के रूप में प्रदान करता है। यह क्रमशः नए डिपॉजिट और नए ऋणों की श्रृंखला उत्पन्न करता है।
- क्रेडिट गुणक (Credit Multiplier) - इस पूरी प्रक्रिया में क्रेडिट गुणक (Credit Multiplier) की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। यह बताता है कि प्रारंभिक जमा से कुल कितना ऋण उत्पन्न किया जा सकता है।
Credit Multiplier = 1 / CRR
यदि CRR = 10% (0.10),
तो Multiplier = 1 / 0.10 = 10
इसका अर्थ है कि ₹10,000 के प्रारंभिक जमा से ₹1,00,000 तक का कुल ऋण निर्मित किया जा सकता है।
ऋण निर्माण की यह प्रक्रिया दर्शाती है कि कैसे व्यापारिक बैंक, सीमित प्रारंभिक नकद जमा के आधार पर, अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को कई गुना बढ़ा सकते हैं। यह प्रणाली निवेश, उत्पादन, रोजगार और आय में वृद्धि में मदद करती है।
बैंक वास्तव में "धन छापते" नहीं हैं, लेकिन जमा और ऋण की प्रक्रिया के माध्यम से नया धन उत्पन्न करते हैं, जो आर्थिक गतिविधियों को गति देता है।
CRR का अर्थ - CRR एक साधन है जिससे RBI बैंकिंग सिस्टम की तरलता बनाए रखता है, मुद्रास्फीति नियंत्रित करता है, और मौद्रिक नीति को लागू करता है। यह बैंकिंग प्रणाली में नकद उपलब्धता सुनिश्चित करने सहित अर्थव्यवस्था की स्थिरता में अहम भूमिका निभाता है। वर्तमान में यह दर 3%–4.5% के बीच चल रही है, और जरूरत के अनुसार इसे बढ़ाया या घटाया जाता है।
प्रकिया संक्षिप्त में -
चरण | प्रक्रिया | प्रभाव | |
---|---|---|---|
1 | नकद जमा | CRR बनाए रखने योग्य आधार | |
2 | CRR | बैंक तरलता सुनिश्चित | |
3 | ऋण | व्युत्पन्न जमा का निर्माण | |
4 | पुनः जमा | ऋण क्षमता का निर्माण | |
5 | क्रेडिट गुणक | धन आपूर्ति का गुणा |
ऋण निर्माण प्रक्रिया चार्ट (Bank Credit Creation diagram/Flow chart) -
[1] प्रारंभिक नकद जमा (Initial Cash Deposit)
↓
[2] बैंक कुल जमा का एक भाग आरक्षित रखता है (CRR)
↓
[3] शेष राशि ऋण के रूप में प्रदान करता है (Loan Given)
↓
[4] ग्राहक इस ऋण का उपयोग करता है (Spending)
↓
[5] खर्च की गई राशि किसी अन्य व्यक्ति के खाते में जमा होती है (Re-deposit)
↓
[6] नया डिपॉजिट → बैंक फिर से CRR रखता है
↓
[7] शेष धन फिर ऋण के रूप में दिया जाता है
↓
[8] प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है (Cycle Continues)
↓
[9] कुल क्रेडिट = प्रारंभिक जमा × क्रेडिट मल्टीप्लायर
ऋण निर्माण प्रक्रिया टेबल (Credit Creation table) -
अगर कोई व्यक्ति व्यापारिक बैंक में ₹1000 प्रारम्भिक तौर पर जमा कराता है तो बैंक द्वारा निम्नांकित प्रकार से साख का निर्माण किया जाता है।
चरण | प्रारंभिक जमा (₹) | रिज़र्व (10%) (₹) | ऋण दिया गया (₹) | अगला नया जमा (₹) |
---|---|---|---|---|
1 | 1,000 | 100 | 900 | 900 |
2 | 900 | 90 | 810 | 810 |
3 | 8100 | 81 | 729 | 729 |
4 | 729 | 72.96 | 656.1 | 656.1 |
5 | 656.1 | 65.61 | 590.49 | 590.49 |
6 | 590.49 | 59.05 | 531.44 | 531.44 |
7 | 531.44 | 53.14 | 478.29 | 478.29 |
8 | 478.29 | 47.82 | 430.46 | 430.46 |
9 | 430.46 | 43.04 | 387.42 | 387.42 |
10 | 387.42 | 38.74 | 348.68 | 348.68 |
बैंक साख निर्माण क्षमता (Bank Credit creation Capacity) -
बैंक साख निर्माण क्षमता से तात्पर्य उस अधिकतम साख (ऋण) राशि से है, जिसे वाणिज्यिक बैंक मौजूदा संसाधनों, नियमों और पर्यावरणीय कारकों के आधार पर उत्पन्न कर सकते हैं।
बैंक साख निर्माण के प्रमुख घटक:
- नकद आरक्षित और जमा (Reserves & Deposits) - बैंकों को CRR/SLR के अंतर्गत एक न्यूनतम नकद या प्रतिभूतियाँ रिज़र्व रखना होता है। जो रकम इसके ऊपर बचती है—उसे अतिरिक्त रिज़र्व कहते हैं जिसे बैंक लोन देने के लिए उपयोग कर सकता है ।
- CRR एवं SLR - CRR (Cash Reserve Ratio) बैंक की जमा राशि का वह हिस्सा होता है जिसे RBI के पास नकद या बैंक बैलेंस में रखना आवश्यक है।SLR (Statutory Liquidity Ratio) में बैंक को सोना, नकद या सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदकर रखना होता है।इन अनुपातों में कमी आने पर बैंक के पास अधिक उधारी-योग्य धन उपलब्ध होता है ।
- डिपॉजिट की कुल राशि - बैंक जितनी अधिक प्राथमिक जमा (जिन्हें ग्राहक वास्तविक नकद के रूप में बैंक में डालते हैं) को संचय करता है, उसके पास उतनी अधिक साख निर्माण की क्षमता होती है ।
- पाकेट प्रवृत्ति (Currency drain) - यदि जनता बैंक से जमा निकालकर नकद रखने लगती है, तो बैंक के पास उधारी के लिए कम धन बचता है—इससे क्रेडिट निर्माण क्षमता कम हो जाती है ।
नियामक एवं बाहरी सीमाएँ:
- पूंजी पर्याप्तता (Capital Adequacy) - Basel III जैसे नियमन के अनुसार बैंक को न्यूनतम पूंजी अनुपात बनाए रखना अनिवार्य है, और यह ऋण प्रदान करने की सीमा निर्धारित करता है ।
- मौद्रिक नीति - RBI की नीतियाँ—Repo दर, CRR/SLR में बदलाव, ओपन मार्केट ऑपरेशन्स जैसे उपाय—बैंक की साख निर्माण क्षमता पर सीधा प्रभाव डालती हैं ।
- ऋण की मांग और गुणवत्ता - बाजार में ऋण लेने वाले ग्राहक की विश्वसनीयता, योग्य प्रतिभूतियाँ और ऋण-वापसी की क्षमता यह तय करती है कि बैंक कितनी साख देना इच्छुक है ।
- मौद्रिक व आर्थिक स्थिति - मंदी, उच्च ब्याज दरें, या अविश्वसनीयता जैसी परिस्थितियाँ बैंक की जोखिम क्षमता और साख निर्माण को सीमित कर देती हैं ।
क्या बैंक साख निर्माण क्षमता असीमित होती है?
नहीं। बैंक की क्षमता निम्न बातों से सीमित होती है:
- नकदी आधारित जमा की सीमा
- CRR/SLR अनुपात
- पूंजी पर्याप्तता नियम
- बाजार की मांग
- प्रतिभूतियों की उपलब्धता
- जनता की नकद प्रवृत्ति
- केंद्रीय बैंक की नीतियाँ ।
तुलना:
पारंपरिक रूप से यह माना जाता था कि ऋण = जमा × (1 – CRR), और फिर एक क्रेडिट गुणक द्वारा व्यापक प्रभाव पैदा होता था। लेकिन वास्तविकता में:
आधुनिक बैंकिंग प्रणाली में ऋण देने से डिपॉजिट बनते हैं, ना कि पहले जमा हो और फिर उधार शुरू हो बैंक अपने पास नकद जमा नहीं होने पर भी लोन दे सकते हैं—वे ऋण देने के बाद रिज़र्व जुटाते हैं ।असली सीमा नियामक पूंजी, प्रॉफिटेबिलिटी, और उधार मांग हैं ।
बैंक साख निर्माण क्षमता एक सीमित शक्ति है जो नीति नियम, पूंजी आवश्यकताएँ, जमा राशि, नकदी प्रवृत्ति, और बाजार माहौल जैसे कारकों से बंधी होती है। आधुनिक बैंकिंग में यह क्षमता केवल जमा पर निर्भर नहीं करती; बल्कि बैंक पहले ऋण देते हैं, जमा तो बनते हैं—और वास्तविक नियंत्रण अंततः पूंजी व लाभ के द्वारा होता है।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न -
प्रश्न - वाणिज्यिक बैंक साख का निर्माण कैसे करते है?
उत्तर - वाणिज्यिक बैंक साख निर्माण करने हेतु ग्राहक द्वारा जमा की गई राशि का एक हिस्सा (CRR/SLR के अनुसार) रिज़र्व में रखा जाता है, शेष राशि ऋण के रूप में नए “डिपॉजिट” के रूप में जारी होती है। इससे बैंक सिस्टम में धन का चक्रवृद्धि प्रभाव होता है, जिससे कुल मुद्रा आपूर्ति बढ़ती है।
प्रश्न - बैंक साख क्या है?
उत्तर - बैंक साख (Bank Credit) वह राशि है जिसे वाणिज्यिक बैंक ग्राहक को ऋण, ओवरड्राफ्ट, क्रेडिट लाइन या अन्य माध्यमों से देता है। यह बैंक द्वारा उपलब्ध कराई गई वित्तीय शक्ति है, जिसे ग्राहक बाद में ब्याज सहित चुकाते हैं। इसका निर्णय ग्राहक की कुशलता और बैंक की संसाधन क्षमताओं पर आधारित होता है।
प्रश्न - वाणिज्यिक बैंक साख निर्माण कैसे करते हैं?
उत्तर - जब बैंक ऋण प्रदान करता है, तो वह सीधे उधारकर्ता के खाते में नए डिपॉजिट के रूप में राशि लिख देता है—इससे नया धन (Money) सृजित होता है। यह ऋण = डिपॉजिट का सिद्धांत है, और बैंक बाद में आवश्यक आरक्षित भाग जुटाता है। वास्तविक सीमा होती है पूंजी नियम एवं लाभ‑क्षमता, न कि केवल आरक्षित पूंजी।
प्रश्न - बैंक साख सृजन की प्रक्रिया को समझाने के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करें।
उत्तर: मान लीजिए कि बैंक में ₹10,000 जमा होते हैं और CRR 10% है। इसका अर्थ है कि बैंक को ₹1,000 रिज़र्व के रूप में रखना होगा। बैंक के पास ₹9,000 अतिरिक्त रिज़र्व हैं, जिन्हें वह ऋण के रूप में प्रदान कर सकते हैं। जब उधारकर्ता यह ₹9,000 खर्च करता है, तो यह राशि अन्य बैंक में जमा होती है, जिससे नया डिपॉजिट उत्पन्न होता है। इस प्रक्रिया से कुल मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि होती है।
प्रश्न - एक व्यापारिक बैंक साख का सृजन कैसे करता है समझाइए।
उत्तर - जब बैंक ऋण प्रदान करता है, तो वह उधारकर्ता के खाते में नया डिपॉजिट बनाकर मुद्रा सृजन करता है। इस प्रक्रिया से ऋण = डिपॉजिट सिद्धांत स्थापित होता है। यह आंशिक आरक्षित बैंकिंग प्रणाली पर आधारित है, जहाँ बैंक ऋण देते समय आरक्षित जुटाता है ।
- ऋण खाते में क्रेडिट = नए डिपॉजिट।
- बैंक बाद में आरक्षित पूंजी जुटाता है, न कि पहले।
- वास्तविक नियंत्रण पूंजी अनुपात और लाभप्राप्ति से होता है।
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