शिक्षा प्राप्ति मनुष्य के लिए एक आवश्यक अंग है। शिक्षा कि प्राप्ति वर्तमान समय में मनुष्य के लिए उतनी ही आवश्यक हो गई है, जितनी मनुष्य को जीने के लिए ऑक्सीजन कि आवश्यकता होती है। शिक्षा के अभाव में मनुष्य का जीवन निरीह पशु के समान है, अतः शिक्षा ही मनुष्य और पशु में भेद करती हैं। शिक्षा कि उपयोगिता और आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए कहा जाता है -
शिक्षा से तात्पर्य ज्ञान,नैतिकता, सद्व्यवहार, तकनीक कौशल और कार्य सिद्धि कि विद्या प्राप्ति कि प्रकिया से है। ऐसी विद्या या ज्ञान कि प्राप्ति जो कार्यसिद्धि को आसान कर दे, ऐसे ज्ञान को शिक्षा कहा जाता है। शिक्षा प्राप्ति के दौरान मनुष्य विभिन्न प्रकार कि कला कौशल और विधियां सीखकर अपने व्यवसाय को आसान और उन्नत करता है। व्यावसायिक कौशल के सह शिक्षा प्राप्ति से मनुष्य अपने आचरण को इस प्रकार का बनाता है, जिससे समाज के साथ उचित सामंजस्य स्थापित कर अपने कौशल का विस्तार और विकास कर सके।
शिक्षित बेरोजगारी -
शिक्षा के उपार्जन के पश्चात, शिक्षित वर्ग को उनकी योग्यता के अनुरुप रोजगार कि प्राप्ति नहीं होना शिक्षित बेरोजगारी कहलाता है। हालांकि शिक्षित वर्ग में योग्यता के अनुरुप नौकरी खोजने के बावजूद भी उनकी योग्यता के अनुरुप वेतन ना मिलना इसमे सम्मिलित नहीं किया जाए तब भी रोजगार का ना मिलना शिक्षित बेरोजगारी है। आप आसानी से कह सकते हैं कि अगर कोई इंजीनियरिंग करने के बाद भी उसे अपनी योग्यता (इंजीनियर संबंधित) कोई काम नहीं मिले तो इसे शिक्षित बेरोजगारी कहा जाएगा। अगर उसे अपनी योग्यता के अनुरुप कोई काम मिल जाए किन्तु वेतन योग्यता के अनुरुप (मिलना 30,000 चाहिए किन्तु मिलता 12,000 है) नहीं हो तो इसे बेरोजगारी कि श्रेणी में नहीं रखा जाता है।
भारत में शिक्षा प्राप्ति के उपरांत भी रोजगार प्राप्त होने की कोई गारंटी नहीं है। आज असंख्य स्नातक रोजगार के अभाव में ऐसे कार्य कर रहे हैं, जिसके लिए पढ़ाई लिखाई की आवश्यकता हो तो भी स्नातक नहीं हो सकती है। स्नातक के उपरांत किसी कार्यालय में स्वीपर या चपरासी का काम करना पड़ रहा है।
शिक्षित बेरोजगारी के कारण -
पिछले कुछ वर्षो में भारत में शिक्षित बेरोजगारी जिस रफ्तार के साथ बढ़ी है, उसने अन्य सभी प्रकार की बेरोजगारी को पीछे छोड़ दिया है। भारत कि कुल बेरोजगारी में सबसे बड़ी बेरोजगारी बन गई है, शिक्षित बेरोजगारी।
एक तरफ युवा वर्ग बरसों महंगी शिक्षा प्राप्त करने में लाखो खर्च कर रहा है तो दूसरी तरफ इनके हाथ कुछ नहीं लग रहा है, वो शिक्षा लेकर करता है तो बस नौकरी कि तलाश।
- अवसर कि उपलब्धता - भारत में विकसित देशों के मुकाबले में निवेश कि दर अपेक्षाकृत कम हैं, ऐसे में शिक्षित वर्ग को इच्छित रोजगार प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। दूसरी तरफ भारत कि जनसंख्या वृद्धि दर और शिक्षा प्राप्ति कि बढ़ती दर भी सुअवसरो कि उपलब्धी में बाधा बन रही है।
- दक्षता - भारत में शिक्षा देने वाले संस्थान (महाविद्यालय, विश्वविद्यालय और तकनीकी और कौशल शिक्षण संस्थान) व्यावहारिक शिक्षा के स्थान पर किताबी शिक्षा प्रदान करते हैं। संस्थानों द्वारा प्रदान कि जाने वाली शिक्षा व्यावहारिक ज्ञान और कार्य कि दक्षता के अभाव में डिग्रीधारी तो बनाती है, किंतु रोजगार देने कि बजाय बेरोजगारों कि भीड़ की तरफ धकेलती है।
- वेतन और भत्ते - शिक्षित वर्ग कि अपेक्षा डिग्रीधारी बनने के बाद बढ़ जाती है। सामन्यतः शिक्षित युवा, अशिक्षित कि अपेक्षाकृत अधिक वेतन भत्तों कि मांग करता हैं। ऐसे में नियोक्ता शिक्षित वर्ग को कम तवज्जो देता है। इसी कारण उसे कई बार तो वेतन कि मांग के अवसर तक प्राप्त नहीं होते, उससे पूर्व ही वह नौकरी कि दौड़ से बाहर हो जाता है। प्रतिस्पर्धा के दौड़ में उसके पास अतरिक्त योग्यता, योग्यता अनुरुप वेतन दिलाना तो दूर नौकरी के समान अवसर देने में भी बाधा बन जाती है।
- कार्य रूपरेखा (job profile) - क्या करना है, कैसे करना है? कार्य सरंचना ही कार्य रूपरेखा है, जो कार्य एक निश्चित कर्मचारी द्वारा निश्चित समय में करना है। शिक्षित वर्ग को उसकी दक्षता के अनुरुप जब कार्य नहीं मिलता है, तो उसके पास एक ही काम शेष रह जाता है, कार्य कि तलाश। एक इलेक्ट्रिक इंजीनियर को जब तक उसकी योग्यता अनुसार इलेक्ट्रिक फिल्ड में कार्य नहीं मिलता तब तक वह दूसरा कार्य नहीं कर पाता और बेरोजगारों कि फौज का हिस्सा मात्र बनकर रह जाता है।
- कार्य कौशल - आजकल इतने महाविद्यालय और विश्वविद्यालय खुल गए हैं, जो कौशल कि जगह किताबी ज्ञानी पैदा कर है, जो डिग्रीधारी जिस विषय में डिग्री प्राप्त कर रहे हैं, उससे संबंधित उन्हें ज्ञान ही नहीं होता। कार्य कुशलता के अभाव में नियोक्ता उन्हें नियुक्त करने से कतराते है, जिससे शिक्षित वर्ग को रोजगार प्राप्त नहीं होता है।
- सरकारी नौकरी से लगाव - आजकल सरकारी नौकरी से लगाव भी भारत में शिक्षित बेरोजगारी पैदा कर रहा है। सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगिता इतनी कठिन हो गई है कि स्नातक होने के बाद वर्षों तक युवा सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग लेते रहते हैं, ऐसे में उतने समय तो बेरोजगार रहते ही है, साथ ही ऐसी तैयारी करने वाले युवाओं में से मात्र 20% सरकारी नौकरी लग पाते हैं, शेष को निजी क्षेत्र में योग्यता के अनुरुप कार्य इसलिए नहीं मिल पाता है क्योंकि उन्होंने वर्षों अपनी शिक्षा समाप्ति के बाद भी महज किताबे पढ़ी, जिससे व्यावहारिक ज्ञान कि प्राप्ति नहीं हो पाती है।
- प्रशिक्षण और व्यावहारिकता का अभाव - भारतीय शिक्षा व्यवस्था में प्रशिक्षण और व्यवहारिक ज्ञान का अभाव होता है, क्योंकि शिक्षण संस्थानों के पास आवश्यक संसाधन, प्रयोगशालाओं और शिक्षकों कि कमी होती है। वहीं दूसरी ओर, शिक्षा के दौरान दिया जाने वाला प्रशिक्षण भी नाममात्र का ही होता है। ऐसे में दक्षता और कार्य कौशल कि कमी उन्हें इच्छित रोजगार दिलाने में कामयाब नहीं हो पाती है।
उपर्युक्त सभी कारणों के चलते उन्हें रोजगार प्राप्त नहीं हो पाता है। शिक्षित बेरोजगारों कि हालत तो ऐसी हो गई है कि उन्हें अशिक्षित वर्ग से भी नीचे रखा जाता है। उनकी अशिक्षित से अधिक वेतन, भत्ते और सुविधाओं कि मांग के चलते नियोक्ता वर्ग उनमे रुचि ही नहीं दिखा रहा है।
आजकल शिक्षित बेरोजगार अपनी विशिष्ट शिक्षा के चलते विशिष्ट और योग्यता के अनुसार कार्य कि मांग करता है जिसके कारण पारम्परिक कार्य से भी दूर हो जाते हैं, जिससे उन्हें बाजार के साथ पारंपरिक कार्य ना कर पाने के कारण दोहरी मार पड़ रही है।
शिक्षित बेरोजगारी को दूर करने के उपाय -
रोज़गार देना और बेरोजगारी को दूर करना सरकार के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है। सरकार प्रयास करती है कि सभी को रोजगार प्रदान किए जाए, किन्तु सरकारी खजाने पर पड़ने वाले भार को किस प्रकार से कम किया जाए? सरकार कि यह चिंता इसके आड़े आ जाती है। सरकार का प्रयास होता है कि सरकारी के साथ लोग अपना स्वयं का भी कार्य करे। वर्तमान में शिक्षित वर्ग को महज सरकारी बाबू बनने से आगे सोचना होगा। उन्हें रोजगार कि मांग करने कि बजाय रोजगारों का सृजन करना होगा। सरकार को भी चाहिए कि रोजगारों का सृजन करने वालों का सहयोग करे। सरकार और समाज के मिले-जुले प्रयासों से ही बेरोजगारी की विकट समस्या का निदान संभव हो सकता है। इसलिए इसे दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए -
- रोजगारपरक शिक्षा - विद्यालयों और महाविद्यालयों को किताबी शिक्षा से आगे बढ़कर समय कि मांग के अनुरुप ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे वह रोजगार प्राप्त भी कर सके और रोजगारों का सृजन भी कर सके। उदाहरण के तौर पर आईटीआई।
- स्वरोजगार और उद्यमिता कि शिक्षा - किताबी शिक्षा से ऊपर उठकर शैक्षिक संस्थान इस प्रकार का पाठ्यक्रम तैयार करे जो स्वरोजगार के साथ ही उद्यमिता को बढावा दे सके। उदाहरण के लिए महिलाओं को कटाई सिलाई-कटाई और पुरूषों को ट्रेंड शिक्षा जिससे भारी काम कर सके।
- तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास - युवाओ को स्वरोजगार के उदेश्य कि प्राप्ति के लिए तकनीकी शिक्षा दी जाए ताकि वो शिक्षा प्राप्ति के पश्चात स्वयं का रोजगार शुरु कर सके। दूसरी ओर, सरकार को आवश्यकता है कि शिक्षा मात्र औपचारिक ना हो कौशल के विकास संबंधी हो ताकि वो स्वरोजगार के उदेश्य से शुरु किये गये कार्यो को भली-भांति कर सके।
- विनियोग शिक्षा और विनियोग प्रवृत्ति को बढावा - बिना वित्त के उद्योगों कि स्थापना संभव नहीं है, सरकार कि भी विनियोग कि एक सीमा है। ऐसे में सरकार उद्योगों को वित्त पूर्ति के लिए समाज को विनियोग के लिए प्रेरित करे, इसके लिए विनियोजन संबंधी शिक्षा दिए जाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
- परंपरागत ग्रामीण उद्योगों को बढावा देना - पहले ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के अपने परंपरागत व्यावसाय होते थे। वर्तमान में, ऐसे कार्यो को बहुराष्ट्रीय कंपनियां हथिया रहीं हैं। साथ ही ग्रामीण उद्योग समाप्ति कि कगार पर हैं, सरकार इन्हें पुनर्जीवित कर आगे बढ़ाने का प्रयास करे ताकि आने वाली पीढ़ी को रोजगार प्राप्त हो सके।
उपर्युक्त सभी क्रियाकलापों को बढावा देने के लिए सरकार को योजना बनानी चाहिए। रोजगार देने का कार्य राज्य के साथ नागरिको को सौपने कि जिम्मेदारी को बढावा देना चाहिए। निजी क्षेत्र के उद्योगों के लिए इस प्रकार के नियम बनाये जाए जिससे किसी का शोषण नहीं हो और कामगारों को उनके काम के अनुरुप वेतन कि प्राप्ति हो सके।
अपना रोजगार शुरु करने वाले लोगों को सरकार प्रशिक्षण, औजार और शुरुआती पूंजी को आसान दरों और शर्तों पर उपलब्ध कराए। सरकार के इस प्रकार के उपाय लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करेंगे।
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