प्रधानमंत्री किसान फसल बीमा योजना (PMFBY) दुनिया की सबसे सफलतम कृषि बीमा योजनाओं में से एक है। यह योजना किसानों को प्राकृतिक आपदाओं, कीट, रोग और मौसम से होने वाले फसल नुकसान से सुरक्षा प्रदान करती है। सरकार द्वारा सब्सिडी के साथ न्यूनतम लागत पर बीमा कवर उपलब्ध कराना इस योजना की विशेषता है, जिससे छोटे और सीमांत किसान भी इसका लाभ उठा सकते हैं। इस योजना के माध्यम से किसानों को वित्तीय सुरक्षा मिलती है और उनकी आय में स्थिरता आती है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ने देश में कृषि बीमा के क्रियान्वयन में सफलता हासिल की है। किसानों को समय पर मुआवजा मिलने से उनकी मुश्किलें कम हुई हैं और खेती में जोखिम कम हुआ है। योजना ने किसानों में भरोसा बढ़ाया है और उन्हें प्राकृतिक आपदाओं के दौरान आर्थिक सुरक्षा प्रदान की है। इस प्रकार, PMFBY ने न केवल किसानों को लाभ पहुंचाया है बल्कि देश में फसल बीमा के क्षेत्र में सरकार की उपलब्धि को भी उजागर किया है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के लिए लाभकारी होने के बावजूद लगातार घोटालों की वजह से आलोचना का सामना कर रही है। इन घोटालों ने न केवल सरकार की योजनाओं पर भरोसा कम किया है बल्कि किसानों में भी बेरुखी पैदा की है। सरकार के महात्वाकांक्षी प्रयासों के बावजूद योजना को पूरी तरह धरातल पर उतारना चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। ऐसे हालात में किसानों को समय पर मुआवजा और योजना की पारदर्शिता सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक हो गया है।
प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना का अर्थ -
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) भारत सरकार की एक प्रमुख कृषि बीमा योजना है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2016 में किसानों को फसल क्षति से होने वाले आर्थिक जोखिम से बचाने के लिए की गई। इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं जैसे सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि, अतिवृष्टि, कीट एवं रोगों के कारण होने वाले नुकसान की स्थिति में किसानों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है। PMFBY किसानों की आय में स्थिरता लाने, कृषि को जोखिममुक्त बनाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल मानी जाती है।
इस योजना के अंतर्गत बुवाई से पहले होने वाले नुकसान, खड़ी फसल को होने वाले नुकसान तथा कटाई के बाद होने वाले नुकसान को भी कवर किया जाता है। किसानों को खरीफ फसलों के लिए केवल 2 प्रतिशत, रबी फसलों के लिए 1.5 प्रतिशत और वाणिज्यिक या बागवानी फसलों के लिए 5 प्रतिशत प्रीमियम देना होता है। शेष प्रीमियम राशि केंद्र और राज्य सरकारें वहन करती हैं, जिससे किसानों पर आर्थिक बोझ कम होता है और वे आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।
PMFBY की एक विशेषता यह है कि इसमें बीमा राशि पर कोई ऊपरी सीमा नहीं है और वास्तविक नुकसान के आधार पर मुआवजा दिया जाता है। योजना में क्षेत्र-आधारित फसल आकलन प्रणाली अपनाई गई है तथा सैटेलाइट, ड्रोन और डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से नुकसान का आकलन और दावा निपटान किया जाता है। इससे पारदर्शिता बढ़ी है और भुगतान प्रक्रिया अपेक्षाकृत तेज हुई है। कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करती है।
केंद्र और राज्य सरकारों का सहयोग -
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) में केंद्र और राज्य सरकारों का सहयोग इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है। इस योजना के तहत किसानों से बहुत कम प्रीमियम लिया जाता है—खरीफ फसलों के लिए 2 प्रतिशत, रबी फसलों के लिए 1.5 प्रतिशत और वाणिज्यिक व बागवानी फसलों के लिए 5 प्रतिशत। इसके अतिरिक्त प्रीमियम का शेष भाग केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर वहन करती हैं। सामान्य राज्यों में यह भार 50:50 के अनुपात में साझा किया जाता है, जबकि पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए केंद्र और राज्य का अनुपात 90:10 रखा गया है, जिससे इन क्षेत्रों के किसानों को अधिक सहायता मिल सके।
| बीमा | विवरण | विशेष |
|---|---|---|
| किसान प्रीमियम | प्रीमियम खरीफ 2%, रबी 1.5%, वाणिज्यिक/बागवानी 5% | - |
| प्रीमियम साझेदारी | सामान्य राज्य: 50:50, पूर्वोत्तर/हिमालयी: 90:10 | - |
| केंद्र योगदान | सीमा गैर-सिंचित 30%, सिंचित 25% | - |
| शेष प्रीमियम | राज्य सरकार वहन करती है | - |
| भुगतान सुरक्षा | राज्य देरी पर भी केंद्र हिस्से से दावा भुगतान | - |
| एस्क्रो व्यवस्था | खरीफ 2025-26 से राज्य अग्रिम एस्क्रो जमा अनिवार्य | - |
| राज्य भूमिकाएं | क्षेत्र/फसल अधिसूचना, बीमा कंपनी चयन, डेटा संग्रह | - |
| केंद्र भूमिकाएं | तकनीकी सुधार, डिजिटल प्लेटफॉर्म, सब्सिडी, निगरानी | - |
| समग्र प्रभाव | केंद्र-राज्य सहयोग का सशक्त मॉडल | - |
प्रीमियम शेयरिंग की व्यवस्था को संतुलित रखने के लिए केंद्र सरकार ने अपनी हिस्सेदारी की सीमा भी तय की है। गैर-सिंचित क्षेत्रों में केंद्र अधिकतम 30 प्रतिशत और सिंचित क्षेत्रों में 25 प्रतिशत तक योगदान देता है, शेष राशि राज्य सरकार वहन करती है। यदि किसी कारण से राज्य सरकार समय पर अपनी हिस्सेदारी जमा नहीं कर पाती, तो भी किसानों को केंद्र की हिस्सेदारी से दावा भुगतान सुनिश्चित किया जाता है। खरीफ 2025-26 से यह अनिवार्य किया गया है कि राज्य सरकारें अपनी हिस्सेदारी पहले से एस्क्रो खाते में जमा करें, ताकि भुगतान में देरी न हो।
कार्यान्वयन के स्तर पर भी केंद्र और राज्य दोनों की स्पष्ट भूमिकाएं हैं। राज्य सरकारें अधिसूचित क्षेत्रों और फसलों का चयन, बीमा कंपनियों की नियुक्ति और फसल नुकसान से जुड़े आंकड़ों का संग्रह करती हैं। वहीं केंद्र सरकार तकनीकी सुधार, डिजिटल प्लेटफॉर्म, सब्सिडी वितरण और दावा निपटान की निगरानी करती है। हालांकि कुछ राज्य वित्तीय सीमाओं के कारण अस्थायी रूप से योजना से बाहर भी हुए हैं, फिर भी PMFBY केंद्र-राज्य सहयोग का एक सशक्त उदाहरण बनी हुई है।
मुवावजे की प्रक्रिया -
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के अंतर्गत मुआवजा (दावा) प्रक्रिया को किसानों के लिए सरल, पारदर्शी और डिजिटल बनाया गया है। इसका उद्देश्य फसल नुकसान की स्थिति में किसानों को समय पर आर्थिक सहायता देना है। पूरी प्रक्रिया को पाँच स्पष्ट चरणों में विभाजित किया गया है, ताकि किसान आसानी से दावा कर सकें और भुगतान सीधे उनके बैंक खाते में पहुंचे। PMFBY में मुआवजा प्राप्त करने के 5 चरण निम्नानुसार है -
- नुकसान की सूचना देना - फसल को प्राकृतिक आपदा, कीट या रोग से नुकसान होने पर किसान को 72 घंटे के भीतर स्थानीय कृषि अधिकारी, बीमा कंपनी या टोल-फ्री नंबर/पोर्टल पर सूचना देनी होती है। समय पर सूचना देना दावा प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण चरण है।
- फसल कटाई प्रयोग (CCE) - सूचना मिलने के बाद कृषि विभाग की टीम क्षेत्र में जाकर फसल कटाई प्रयोग करती है। इसमें नमूना कटाई के माध्यम से वास्तविक उत्पादन और नुकसान का आकलन किया जाता है।
- नुकसान का आकलन - CCE रिपोर्ट के साथ-साथ सैटेलाइट इमेजरी, ड्रोन और मौसम डेटा का उपयोग कर क्षेत्र-आधारित नुकसान प्रतिशत का निर्धारण किया जाता है। आमतौर पर 25 प्रतिशत से अधिक नुकसान होने पर दावा बनता है।
- दावा स्वीकृति - बीमा कंपनी सभी आंकड़ों और रिपोर्ट के आधार पर दावे की जांच करती है। निर्धारित समय-सीमा, सामान्यतः 30 दिनों के भीतर, दावा स्वीकृत या अस्वीकृत किया जाता है।
- भुगतान - दावा स्वीकृत होने पर मुआवजा राशि सीधे किसान के बैंक खाते में DBT के माध्यम से भेज दी जाती है। किसान SMS या पोर्टल पर स्टेटस भी देख सकता है।
PMFBY की यह पाँच-चरणीय दावा प्रक्रिया किसानों को तेज, पारदर्शी और भरोसेमंद मुआवजा सुनिश्चित करती है। सही समय पर सूचना और दस्तावेज देने से किसान योजना का पूरा लाभ उठा सकते हैं।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में घोटाले?
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा देने के लिए बनाई गई थी, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कई राज्यों में गंभीर घोटाले सामने आए हैं। इन घोटालों में फर्जी किसान पंजीकरण, गैर-कृषि या बंजर भूमि पर बीमा, और अधिकारियों व बीमा कंपनियों की मिलीभगत जैसे मामले शामिल हैं। इससे न केवल किसानों का भरोसा कमजोर हुआ, बल्कि सरकारी वित्त को भी भारी नुकसान पहुंचा।
राजस्थान में PMFBY के तहत लगभग 2.5 लाख संदिग्ध मामलों की पहचान हुई, जहां फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बीमा क्लेम किए गए। इससे करीब 122 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। उत्तर प्रदेश में बंजर भूमि, नदी क्षेत्र और पहाड़ी जमीनों पर भी फसल बीमा कराया गया। हस्ताक्षर जालसाजी और फर्जी खातों के माध्यम से लगभग 40 करोड़ रुपये की अनियमितता सामने आई, जिस पर जांच एजेंसियों ने कार्रवाई शुरू की।
| राज्य | घोटाला प्रकार | सरकारी वित्तीय नुकसान |
|---|---|---|
| राजस्थान | फर्जी किसान पंजीकरण, 2.5 लाख संदिग्ध मामले | ₹122 करोड़ |
| उत्तर प्रदेश | बंजर/नदी भूमि पर फर्जी क्लेम, हस्ताक्षर जालसाजी | ₹40 करोड़ |
| महाराष्ट्र | 5.9 लाख फर्जी किसान, प्रीमियम भुगतान पर धोखा | ₹6,000 करोड़ (संभावित) |
| हरियाणा | फर्जी दावे और अनियमित भुगतान | ₹300 करोड़ |
| मध्य प्रदेश | गैर-कृषि भूमि पर क्लेम, मिलीभगत | ₹1.63 करोड़ (बावड़ी ब्लॉक) |
महाराष्ट्र में यह घोटाला सबसे बड़े स्तर पर सामने आया, जहां करीब 5.9 लाख फर्जी किसानों के नाम पर बीमा कराया गया और संभावित रूप से लगभग 6,000 करोड़ रुपये का नुकसान आंका गया। हरियाणा में फर्जी दावों और अनियमित भुगतान से लगभग 300 करोड़ रुपये की क्षति हुई। मध्य प्रदेश के बावड़ी ब्लॉक में गैर-कृषि भूमि पर क्लेम और स्थानीय स्तर पर मिलीभगत से करीब 1.63 करोड़ रुपये का नुकसान दर्ज किया गया। ये उदाहरण दर्शाते हैं कि यदि सख्त निगरानी, भूमि रिकॉर्ड से सत्यापन और डिजिटल ऑडिट को मजबूती न दी जाए, तो PMFBY जैसी कल्याणकारी योजना भी भ्रष्टाचार की चपेट में आ सकती है।
कैसे मारी जाती है, सेंध?
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कुछ लोग डिजिटल कमियों, फर्जी दस्तावेजों और मिलीभगत से सरकारी सब्सिडी व मुआवजा राशि पर अवैध कब्जा करते हैं।
- फर्जी बटाईदार पंजीकरण - घोटालेबाज असली किसान की खतौनी या भूमि रिकॉर्ड की कॉपी हासिल कर लेते हैं। फिर 10 रुपये के स्टांप पर फर्जी एफिडेविट बनाकर खुद को बटाईदार दर्शाते हैं। इस आधार पर वे एक ही जमीन पर बार-बार फसल बीमा कराते हैं। असली किसान को इसकी जानकारी तक नहीं होती, लेकिन दावा राशि सीधे फर्जी खातों में चली जाती है।
- बंजर और गैर-कृषि भूमि पर क्लेम - नदी, पहाड़, वन क्षेत्र, चकरोड या पूरी तरह बंजर जमीन को कागजों में कृषि भूमि दिखाया जाता है। जहां चकबंदी या डिजिटल भूमि रिकॉर्ड अपडेट नहीं होते, वहां इस गड़बड़ी को पकड़ना मुश्किल हो जाता है। ऐसी जमीन पर फसल नुकसान दिखाकर भारी मुआवजा निकाल लिया जाता है।
- एक ही खेत पर बहु-बीमा - एक ही गांव या खेत का डेटा अलग-अलग नामों और दस्तावेजों से 5–10 बार पोर्टल पर अपलोड किया जाता है। इससे एक ही फसल पर कई पॉलिसियां बन जाती हैं। नुकसान दिखाकर हर पॉलिसी से अलग-अलग दावा निकाल लिया जाता है, जिससे करोड़ों का भुगतान हो जाता है।
- बीमा कंपनी कर्मचारियों की सांठगांठ - कुछ मामलों में बीमा कंपनियों के जिला स्तर के कर्मचारी और स्थानीय अधिकारी मिलकर फर्जी फॉर्म अपलोड करते हैं। फसल कटाई प्रयोग (CCE) की रिपोर्ट में जानबूझकर नुकसान बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है, ताकि दावा आसानी से स्वीकृत हो जाए।
- जनसेवा केंद्रों (CSC) का दुरुपयोग - CSC से किसानों का आधार, बैंक और भूमि डेटा निकालकर बिना उनकी सहमति के बीमा पॉलिसी और दावा दर्ज कर दिया जाता है। कई बार फसल को नुकसान न होने पर भी सिस्टम में नुकसान दिखाकर भुगतान ले लिया जाता है।
सख्त सत्यापन, भूमि रिकॉर्ड से लिंकिंग, डिजिटल सहमति और कड़ी कार्रवाई से ही PMFBY में हो रही सेंध पर प्रभावी रोक संभव है।
फसल बीमा योजना से सरकारों को नुकसान -
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) का उद्देश्य किसानों को फसल नुकसान से आर्थिक सुरक्षा देना है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में केंद्र और राज्य सरकारों को भारी वित्तीय नुकसान भी उठाना पड़ा है। इस योजना में किसानों से कम प्रीमियम लिया जाता है, जबकि शेष प्रीमियम का बड़ा हिस्सा केंद्र और राज्य सरकारें वहन करती हैं। सामान्य राज्यों में यह बोझ 50:50 के अनुपात में और पूर्वोत्तर राज्यों में 90:10 के अनुपात में साझा किया जाता है। बड़े पैमाने पर सब्सिडी दिए जाने के कारण सरकारी खर्च तेजी से बढ़ा है।
पिछले लगभग आठ वर्षों में PMFBY पर सरकारों का कुल खर्च करीब 75,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कई रिपोर्टों में यह सामने आया है कि बीमा कंपनियों को लाभ अधिक मिला, जबकि किसानों को अपेक्षाकृत कम दावा राशि प्राप्त हुई। इसके अलावा, फर्जी पंजीकरण और गलत दावों के कारण सरकारी खजाने को सीधा नुकसान हुआ। राजस्थान में लगभग 122 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश में करीब 40 करोड़ रुपये और महाराष्ट्र में अनुमानित 6,000 करोड़ रुपये के घोटालों के उदाहरण सामने आए हैं। हरियाणा और अन्य राज्यों में भी सैकड़ों करोड़ रुपये की अनियमितताएं उजागर हुई हैं।
इस योजना से सरकारों को अप्रत्यक्ष नुकसान भी हुआ है। कई राज्य समय पर अपनी सब्सिडी हिस्सेदारी नहीं दे पाते, जिससे केंद्र पर अतिरिक्त वित्तीय दबाव पड़ता है और कुछ राज्य योजना से बाहर भी हो जाते हैं। फर्जी दावों और घोटालों से किसानों का भरोसा कमजोर होता है, भागीदारी घटती है और कृषि ऋण व्यवस्था भी प्रभावित होती है। इस प्रकार, PMFBY में सुधार और सख्त निगरानी सरकारों के लिए आवश्यक हो गई है।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न -
प्रश्न: PMFBY का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: किसानों को प्राकृतिक आपदाओं, कीट और मौसम से होने वाले फसल नुकसान पर वित्तीय सुरक्षा देना और कृषि जोखिम को कम करना।
प्रश्न: PMFBY में किसान कितना प्रीमियम देते हैं?
उत्तर: खरीफ में 2%, रबी में 1.5% और वाणिज्यिक/बागवानी फसलों में 5% प्रीमियम किसान देते हैं।
प्रश्न: PMFBY में मुआवजा कैसे मिलता है?
उत्तर: फसल नुकसान के बाद CCE, सैटेलाइट और डिजिटल आकलन के आधार पर स्वीकृत राशि DBT से सीधे खाते में मिलती है।
प्रश्न: PMFBY में सबसे बड़ी समस्या क्या है?
उत्तर: फर्जी पंजीकरण, गलत दावे और कुछ मामलों में बीमा कंपनियों व अधिकारियों की मिलीभगत सबसे बड़ी समस्या है।
प्रश्न: PMFBY में सुधार के लिए क्या जरूरी है?
उत्तर: भूमि रिकॉर्ड से लिंकिंग, सख्त सत्यापन, डिजिटल सहमति, समयबद्ध भुगतान और घोटालों पर कड़ी कार्रवाई जरूरी है।


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